BJP अपने ही मैदान में एक बड़ा मोर्चा हार गई। उत्तर भारत में पसरे 10 हिंदी भाषी राज्यों में पार्टी ने 55 सीटें गवां दीं। नतीजा- BJP इस लोकसभा चुनाव में अपने बूते बहुमत हासिल नहीं कर सकी।
मंगलवार रात 10 बजे तक BJP कुल 240 सीटों पर आगे या जीत चुकी थी। 2019 में BJP ने 303 सीटें जीती थीं। यानी कुल 64 सीटों का नुकसान हुआ।
2002 से 2012 के बीच गुजरात में हुए 3 विधानसभा चुनाव हों या 2014 से अब तक हुए 3 लोकसभा चुनाव, यह पहली बार है जब नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी को बहुमत नहीं दिला सके।
BJP को बहुमत से पीछे धकेलने वाले 6 बड़े फैक्टर्स…
1. 3 पॉलिटिकल जोन में 68 सीटों का नुकसान : देश को अगर 5 पॉलिटिकल जोन के नजरिए से देखा जाए तो BJP ने नॉर्थ, वेस्ट और नॉर्थ ईस्ट जोन में कुल 65 सीटें गंवाई हैं। जबकि साउथ जोन में 2019 के मुकाबले BJP को कोई बड़ा गेन होता नजर नहीं आ रहा। BJP को इकलौता फायदा ईस्ट में देखने को मिल रहा है, जहां उसकी 3 सीटें बढ़ी हैं।
2. 2019 में जीतीं 95 सीटें गवाईं : 2019 में जिन 303 सीटों में BJP ने जीत हासिल की थी, उनमें से 93 सीटें BJP हार गई या पीछे चल रही है। इसमें सबसे ज्यादा सीटें नॉर्थ जोन की हैं। BJP ने नॉर्थ की 56 सीटें गवाईं हैं, जबकि 4 नई सीटें जीतीं है। वहीं वेस्ट की 16 सीटें गवाईं है और 4 नई सीटें जीतीं हैं। देशभर में BJP ने केवल 33 नई सीटें ही जीतीं हैं।
3. अपने गढ़ हिंदी पट्टी में BJP की 53 सीटें घटी : नॉर्थ जोन यानी हिंदी पट्टी के इलाके में BJP ने 58 सीटें गवाईं हैं। 2019 में इसी इलाके में BJP ने एकतरफा चुनाव जीता था और नॉर्थ जोन की 235 सीटों में से 183 सीटें जीती थीं। 2024 में BJP को सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश और राजस्थान में हुआ। 2019 में BJP ने UP में 62 और राजस्थान में 24 सीटें जीती थीं। जबकि मंगलवार के शुरुआती ट्रेंड्स में BJP को UP में 30 और राजस्थान में 10 सीटों का नुकसान हुआ है।
4. सीटें बरकरार रखने में नाकाम, एंटी-इनकम्बेंसी बड़ा फैक्टर : मोदी ने बतौर PM दो बार कार्यकाल पूरा किया। यानी देश में 10 साल तक मोदी सरकार रही। ऐसे में चुनाव में एक सबसे बड़ा फैक्टर एंटी-इनकम्बेंसी पैदा हो जाता है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई कहते हैं, ‘जिन इलाकों में BJP पीक पर पहुंच गई थी, वहां सीटों को बचाए रखने के लिए BJP को संघर्ष करना पड़ रहा है।’ BJP ने बड़ा प्रयोग करते हुए 2024 के चुनाव में 135 सिटिंग सांसदों का टिकट काट दिया था। हालांकि, ये रणनीति भी बहुत काम नहीं आई।
5. विपक्षी एकजुटता की वजह से शिफ्ट हुआ वोट : 543 में से 441 सीटों पर BJP ने अकेले चुनाव लड़ा। वहीं INDI अलायंस ने 466 सीटों पर एक साथ कैंडिडेट्स उतारे। इसके चलते जो वोट शेयर अलग-अलग बंट रहा था वह एकमुश्त होकर INDI अलायंस को मिला। इसके चलते कांग्रेस, सपा और TMC ने अपनी सीटों पर बढ़त बनाई।
6. दक्षिण भारत में BJP की मेहनत सीटों में तब्दील नहीं हुईः BJP के स्टार कैम्पेनर नरेंद्र मोदी ने चुनावी सीजन के 61 दिन में 22 रैलियां और रोड-शो दक्षिण में किए। साथ ही मोदी ने 1 जनवरी 2024 से लेकर 30 मार्च तक हर तीसरे दिन दक्षिण में दौरा किया। इसके अलावा राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान, जेपी नड्डा, अमित शाह ने भी दक्षिण में प्रचार किया।
वहीं मोदी ने सेंगोल को नए संसद भवन में स्थापित करने से लेकर काशी-तमिल संगमम और सौराष्ट्र-तमिल संगमम की शुरुआत करने तक का दांव खेला, लेकिन इस चुनाव में किसी भी तरह का दांव नहीं चल सका।
उत्तर भारत में BJP की सीटें घटने के बड़े फैक्टर्स…
1. 82 सिटिंग सांसदों की जगह नए चेहरे : 2019 में नॉर्थ जोन की 235 में से 183 सीटों पर BJP ने जीत हासिल की थी, जिनमें से 82 सांसदों को 2024 में मौका नहीं दिया गया। उनकी जगह पार्टी ने नए चेहरों को चुनाव में उतारा। BJP इससे एंटी-इनकम्बेंसी को साधना चाहती थी, लेकिन ऐसा होता दिखा नहीं।
2. राम मंदिर का मुद्दा बेअसर : संघ और BJP के कोर-एजेंडे में शामिल राम मंदिर निर्माण जनवरी 2024 में पूरा हो गया। मोदी ने इसे बड़े पैमाने पर सेलिब्रेट किया, लेकिन राम मंदिर इस चुनाव में बेअसर रहा। इतना कि अयोध्या जिस फैजाबाद सीट में आती है, वह तक BJP हार गई।
3. जाट-किसान में नाराजगी : पश्चिमी UP, हरियाणा और पंजाब में किसानों की नाराजगी भी BJP को झेलनी पड़ी। दरअसल, इन इलाकों के किसान MSP और तीन कृषि कानूनों को लेकर BJP से नाराज थे। इसके चलते एंटी-BJP जैसी लहर बनी।
साथ ही हरियाणा, पंजाब और UP के जाटों में BJP को लेकर काफी नाराजगी रही। इलेक्शन एनालिस्ट अमिताभ तिवारी लिखते हैं, ‘पहलवानों के मामले में और यौन उत्पीड़न के आरोपी बृजभूषण सिंह के खिलाफ BJP की ओर से कोई कार्रवाई न किए जाने के कारण महिलाओं में नाराजगी भी रही। 2019 में हरियाणा की 60% महिलाओं ने BJP को सपोर्ट किया था।
पूर्वी भारत में BJP की मामूली सीटें बढ़ने के बड़े फैक्टर्स…
1. बंगाल में 30 और 70 की लड़ाई : पश्चिम बंगाल में इस बार चुनाव प्रचार का ट्रेंड देखें तो साफ है कि यहां इस बार ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण के मुद्दों ने जोर पकड़ा है। इसका खासा असर पश्चिम बंगाल की राजनीति पर इस बार पड़ता दिख रहा है। ममता बनर्जी का मुख्य वोट बैंक मुस्लिम वोट बैंक रहा है, जो लगभग 27-30 फीसदी के आसपास है। इसका फायदा TMC को मिला, जिसके चलते 29 सीटें TMC को मिलीं।
2. ओडिशा में पटनायक कमजोर : BJD सुप्रीमो नवीन पटनायक 24 साल से ओडिशा के CM बने हुए हैं और 77 साल के हो गए हैं। पिछले दिनों स्टेज पर भाषण देते वक्त जब उनका हाथ थरथराने लगा तो उनके सहकर्मी पांड्यन ने उनका हाथ छिपा दिया। चुनावी सीजन में पटनायक की तबीयत खराब होने की खबरें भी आ रही थीं।
साथ ही नवीन पटनायक के बाद दूसरे नंबर पर पार्टी में वीके पांडियन सबसे बड़े नेता हैं। उन पर लोग बाहरी होने के आरोप लगाते हैं, क्योंकि पांड्यन तमिलनाडु से आते हैं। ये दोनों बातें लोकसभा चुनाव में मुद्दा बनीं। इस कारण पार्टी 11 से एक सीट पर सिमट गई।
दक्षिण भारत में BJP की सीटें न बढ़ने के बड़े फैक्टर्स…
1. पहली बार 90 उम्मीदवार उतारे : पहली बार साउथ जोन की 132 में से 90 सीटों पर BJP ने अपने कैंडिडेट उतारे हैं। वरिष्ठ पत्रकार टीएस सुधीर के मुताबिक, ‘दक्षिण में कैंडिडेट्स के साथ-साथ PM मोदी के नाम पर भी वोट दिया गया है। हालांकि, तेलंगाना में ज्यादातर लोगों ने मोदी के नाम पर BJP को वोट दिया है।’
2. आंध्र में TDP-जनसेना के अलायंस से फायदा, कर्नाटक में नुकसान : आंध्र प्रदेश में BJP ने रीजनल पार्टी TDP और एक्टर पवन कल्याण की पार्टी जनसेना के साथ अलायंस कर चुनाव लड़ा। इसके चलते बीजेपी 6 में से 3 सीटों पर आगे रही। वहीं मोदी मैजिक के साथ-साथ पवन के स्टारडम का फायदा BJP को मिला।
जबकि कर्नाटक में BJP ने JDS के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन उसका BJP को फायदा नहीं हुआ। BJP 8 सीटें हार गईं।
3. सेक्स स्कैंडल से कर्नाटक में नुकसान : कर्नाटक में एक चरण की वोटिंग हो जाने के बाद JDS प्रत्याशी और पूर्व PM देवगौड़ा के पोते प्रज्ज्वल रेवन्ना का नाम एक सेक्स स्कैंडल में सामने आया। इस कारण राज्य की बाकी 14 सीटों पर वोटिंग के दौरान BJP को नुकसान हुआ।
4. दक्षिणपंथ को ‘दक्षिण’ में जगह नहीं : साउथ जोन में ज्यादातर रीजनल पार्टियां सेंटर या लेफ्ट विचारधारा को फॉलो करती हैं। साथ ही कई सालों से यहीं पार्टियां यहां सरकार बना रही हैं और इन्हीं के सांसद चुने जा रहे हैं। इसी से साफ नजर आता है कि दक्षिणपंथ को फॉलो करने वाली BJP का साउथ में जगह बनाना मुश्किल है।
पश्चिमी भारत में BJP की सीटें घटने के बड़े फैक्टर्स…
1. असली-नकली की लड़ाई में फंसी BJP : शिवसेना से टूट कर बनी शिवसेना (शिंदे) और NCP से टूट कर बनी NCP (अजीत) BJP के साथ हाथ मिलाकर राज्य में सरकार चला रही हैं, लेकिन इस चुनाव में शिंदे-फडणवीस-पवार की तिकड़ी नहीं चल सकी। साथ ही शिवसेना और NCP के दोनों धड़ों के बीच चल रही असली-नकली के लड़ाई के बीच BJP फंस कर रह गई। इस कारण BJP के 28 में से 13 उम्मीदवार पीछे रहे।
2. गुजरात में 10 साल बाद एक सीट हारी BJP : गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य है। जब मोदी CM थे तब शाह के साथ मिलकर उन्होंने गुजरात में BJP की जीत की नींव रखी थी वह आज भी कायम है, लेकिन BJP बनासकांठा की एक सीट हार चुकी है।
वरिष्ठ पत्रकार अनिल भारद्वाज कहते हैं कि भले ही अमित शाह दक्षिण भारत में रैली को संबोधित कर रहे हों, लेकिन उनके पास गुजरात की हर खबर रहती है। गुजरात में मोदी-शाह ने जीत का ऐसा मॉडल बनाया है जिसकी काट कांग्रेस के पास नहीं है। मोदी-शाह दोनों ही जानते हैं कि मिसाल हमेशा अपने आप से दी जाती है। यही कारण है कि दोनों ने गुजरात पर पकड़ कमजोर नहीं होने दी है।
पूर्वोत्तर भारत में BJP के मेंटेन होने के फैक्टर…
1. हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण : पूर्वोत्तर के 8 में से 4 राज्य हिंदू बहुल हैं, जबकि नगालैंड, मेघालय और मिजोरम में 80% से ज्यादा आबादी ईसाई है। असम में 34% मुस्लिम हैं। पूरे नॉर्थ-ईस्ट में 37% हिंदू, 42.3% ईसाई और 7.7% मुस्लिम आबादी है। इस चुनाव में BJP के कई बड़े नेता हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा उठाते रहे हैं।
कुछ दिन पहले असम के CM और BJP नेता हिमंत बिस्वा सरमा ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘मैं हिंदू-मुस्लिम की राजनीति करता हूं। जब तक देश में हिंदू-मुस्लिम के कुछ मसले नहीं सुलझेंगे, तब तक देश की राजनीति में हिंदू-मुस्लिम होता रहेगा।’
2. असमिया, गैर-असमिया के मुद्दे को BJP ने भुनाया : BJP असम में असमिया अस्तित्व के मुद्दे को जमकर भुनाती है, जिसका फायदा उसे मिलता है। पॉलिटिकल एनालिस्ट बिश्वेंदु भट्टाचार्य के मुताबिक, असम में असमिया और गैर-असमिया, असमिया बंगाली और गैर-असमिया बंगाली के बीच सालों से संघर्ष की स्थिति रही है। BJP-RSS ने इस मुद्दे को बखूबी भुनाया।’
जबकि पूरे नॉर्थ में चीन और भारत के संबंधों का भी असर रहता है। बिश्वेंदु कहते हैं कि यहां के लोगों का मानना है कि केंद्र और राज्य में मजबूत सरकार होगी तो उनके लिए बेहतर होगा, क्योंकि यहां के राज्यों की सीमाएं चीन से लगती हैं।
3. 10 साल में मोदी का 70 बार आना : PM मोदी ने अपने दोनों कार्यकाल यानी 10 साल में करीब 70 बार नॉर्थ-ईस्ट का दौरा किया है। PM मोदी ने इसका जिक्र मार्च में एक चुनावी रैली में किया था। उन्होंने कहा था, मेरे मंत्री 10 सालों में 680 बार पूर्वोत्तर जा चुके हैं। अभी तक सभी प्रधानमंत्री मिलकर जितनी बार नॉर्थ ईस्ट गए होंगे, उससे कई गुना ज्यादा बार मैं अकेले गया हूं।
4. 7 नए उम्मीदवार, 2 पूर्व CM : नॉर्थ-ईस्ट जोन की 25 में से 18 सीटों पर BJP ने कैंडिडेट उतारे, जिनमें से 7 ऐसी सीटें हैं जहां सिटिंग सांसद की जगह नए चेहरे को मौका दिया गया है। साथ ही बड़े चेहरों को भी चुनाव मैदान में उतारा गया। इनमें केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू, त्रिपुरा के पूर्व CM बिप्लव देव, असम के पूर्व CM सर्वानंद सोनोवाल और त्रिपुरा शाही परिवार की महारानी कृति सिंह देबबर्मा जैसे नाम शामिल हैं।