बिहार में बीते शुक्रवार को महागठबंधन की सीटों के बंटवारे की घोषणा कर दी गई. लेकिन इन सीटों को देखें तो ये साफ नजर आ रहा है कि इस महागठबंधन में क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस पर काफी प्रभावी रही हैं.
सीट शेयरिंग मामले में यूपी से महाराष्ट्र तक, बिहार से लेकर तमिलनाडु तक, क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस के ऊपर दबाव डालकर अपनी बात मनवा ली है. यही कारण है कि बिहार में कांग्रेस को 9 सीटें तो मिली हैं, लेकिन ये वो सीटें नहीं जो कांग्रेस चाहती थी.
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कांग्रेस इस बंटवारे से नाखुश है. बिहार में सीटों की साझेदारी की सबसे अहम बात यह रही कि कांग्रेस को हॉट सीट पूर्णिया नहीं दी गई है.
दरअसल कांग्रेस पप्पू यादव के लिए पूर्णिया सीट मांग रही थी, लेकिन लाख कहने के बाद भी उन्हें ये सीट नहीं दी गई. इतना ही नहीं पप्पू की पत्नी रंजीत रंजन की सुपौल सीट को भी आरजेडी ने अपने खाते में डाल लिया है. इस सीट पर साल 2014 में रंजीत रंजन कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत चुकी हैं.
जानकारों की मानें तो इस सीट बंटवारे में भले ही कांग्रेस को नौ सीटें मिली हों, लेकिन इन 9 सीटों में एक भी वो सीट नहीं है जहां से कांग्रेस अच्छा मुकाबला कर सकती थी.
पप्पू यादव के साथ हो गया खेल
इस सीट बंटवारे में पप्पू यादव के साथ खेला ये हो गया कि आरजेडी ने मधेपुरा सीट को भी अपने खाते में डाल लिया. पप्पू मधेपुरा और पूर्णिया दोनों के सांसद रह चुके है. इसके अलावा ये वही सीट है जहां पर जाप का आरजेडी में विलय करने के बाद लालू यादव ने लड़ने का ऑफर दिया था.
कांग्रेस इन सीटों को मांग रही थी
पप्पू यादव के लिए पूर्णिया के अलावा कांग्रेस अजीत शर्मा या उनकी बेटी नेहा शर्मा के लिए भागलपुर, कन्हैया कुमार के लिए बेगूसराय, तारिक अनवर के लिए कटिहार, आकाश सिंह के लिए मुजफ्फरपुर सीट मांग रही थी.
औरंगाबाद-बेगूसराय सीट भी हाथ से गई
इतना ही नहीं औरंगाबाद सीट भी कांग्रेस के हाथ से निकल गई. इस सीट पर कांग्रेस पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ नेता निखिल कुमार को मैदान में उतारना चाहती थी.
इसके अलावा बेगूसराय सीट की चर्चा है. जहां साल 2019 के चुनाव में कन्हैया कुमार सीपीआई उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे थे. अब कांग्रेस को उम्मीद थी साल 2021 में पार्टी में शामिल हुए कन्हैया कुमार को इस बार यहीं से मैदान में उतारा जाएगा, लेकिन आरजेडी ने सीट शेयरिंग के दौरान बेगूसराय को एक बार फिर सीपीआई को दे दिया.
अब जानते हैं किसे कितनी सीटें मिली है
इस बंटवारे के अनुसार लालू और तेजस्वी की आरजेडी 26 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, वहीं कांग्रेस को 2019 लोकसभा चुनाव की तरह ही 9 सीटें मिली हैं और बाकी 5 सीट पर लेफ्ट पार्टियां अपने उम्मीदवार उतारेंगी. लेफ्ट की पांच सीटों में से माले 3, सीपीआई बेगूसराय और सीपीएम खगड़िया से चुनाव लड़ेगी.
कांग्रेस की सीटों को डिटेल जानिये
कांग्रेस को किशनगंज, कटिहार, समस्तीपुर, पटना साहिब, सासाराम, पश्चिमी चंपारण, मुजफ्फरपुर, भागलपुर और महाराजगंज सीट मिली है.
इन सीटों पर जीत हासिल करना कांग्रेस के कितना मुश्किल
किशनगंज: इस सीट पर पिछले तीन चुनावों से कांग्रेस ही जीत रही है. वर्तमान में यहां डा. मोहम्मद जावेद सांसद हैं. उनसे पहले 2009 और 2014 में मो. असरारुल हक विजयी रहे थे. इस सीट पर आखिरी बार साल 1999 के चुनाव में बीजेपी की जीत हुई था. उस वक्त बीजेपी के शाहनवाज हुसैन ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी.
भागलपुर: इस सीट आखिरी बार कांग्रेस ने साल 1984 में जीत हासिल की थी. उस वक्त भागवत झा आजाद ने चुनाव लड़ा था. कांग्रेस पार्टी ने इस सीट पर अंतिम बार साल 2009 में अपना प्रत्याशी उतारा था. उस वक्त कांग्रेस को 52121 वोट मिले थे और यहां पार्टी चौथे स्थान पर रही थी.
सासाराम: इस सीट पर कांग्रेस के लिए जीत हासिल करना मुश्किल नहीं होगा. यह कांग्रेस की परंपरागत सीट है. हालांकि पिछले दो चुनावों में कांग्रेस इस सीट पर जीत हासिल नहीं पाई थी लेकिन दूसरे नंबर पर थी. कांग्रेस को यहां आखिरी जीत 2009 में मीरा कुमार ने दिलाई थी.
मुजफ्फरपुर: इस सीट पर कांग्रेस ने साल 1984 में आखिरी जीत हासिल की थी. उस वक्त ललितेश्वर प्रसाद शाही मैदान में उतरे थे. इसी सीट पर कांग्रेस ने साल 2014 में डा. अखिलेश प्रसाद सिंह प्रत्याशी बनाया था, जो की लगभग 16 प्रतिशत वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. साल 2009 के चुनाव की बात करें तो उस वक्त कांग्रेस यहां तीसरे स्थान पर रही थी.
महाराजगंज: इस सीट पर कांग्रेस की आखिरी जीत साल 1984 में हुई थी. उस वक्त पार्टी को जीत कृष्ण प्रताप सिंह ने दिलाई थी. कांग्रेस ने यहां अपना आखिरी प्रत्याशी साल 2009 में उतारा था. उस वक्त पार्टी को 80162 वोट और तीसरा स्थान मिला था.
पश्चिमी चंपारण: इस सीट से कांग्रेस ने आखिरी बार साल 2009 में अपना प्रत्याशी उतारा था. उस वक्त अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव प्रत्याशी थे, उन्हें 70001 वोट मिले थे और कांग्रेस पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी. इस सीट पर कांग्रेस को आखिरी जीत साल 1984 में मिली थी और यह जीत मनोज कुमार पाण्डेय ने दिलाई थी.
समस्तीपुर: इस सीट पर कांग्रेस आखिरी बार साल 1984 में विजयी रही थी. उस वक्त रामदेव राय सांसद चुने गए थे. इस सीट पर पिछले दो चुनावों से कांग्रेस के डॉ. अशोक राम उप-विजेता बन कर रह जा रहे हैं, जबकि साल 2009 के चुनाव में पार्टी ने तीसरा स्थान हासिल किया था.
पटना साहिब: इस सीट पर पिछले दो चुनाव से कांग्रेस दूसरे स्थान पर टिकी हुई है. साल 2019 में यहां से शत्रुघ्न सिन्हा को प्रत्याशी बनाया गया था, जो बाद में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर आसनसोल से सांसद चुने गए. इस सीट पर आखिरी बार साल 1984 में कांग्रेस जीत मिली थी, उस वक्त प्रकाश चंद्र सांसद चुने गए थे.
कटिहार: इस सीट से पूर्व केंद्रीय मंत्री तारिक अनवर पांच बार सांसद रह चुके हैं. तारिक चार बार कांग्रेस की तरफ से मैदान में उतरे थे और साल 2014 के चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की तरफ से सांसद चुने गए थे. पिछले लोकसभा चुनाव में तारिक कांग्रेस के ही प्रत्याशी लेकिन, जेडीयू के दुलाल चंद गोस्वामी से उन्हें 57203 वोटों के अंतर हरा दिया था.
क्या बिहार में कांग्रेस हो जाएगी कमजोर
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, “कांग्रेस ने तो पहले से ही लालू के आगे आत्मसमर्पण कर रखा है. महागठबंधन में सीटों का बंटवारा उलझनों से भरा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इसमें कांग्रेस को कई ऐसी सीटें दी गई हैं, जिस पर मुक़ाबला आसान नहीं होगा. जबकि पार्टी को कई ऐसी सीटों से दूर कर दिया गया है जहां कांग्रेस अच्छा मुक़ाबला कर सकती थी.”
यूपी में भी हुआ कांग्रेस का बिहार जैसा हाल
कांग्रेस का जैसा हाल बिहार में हुआ है ठीक वैसा ही हाल उत्तर प्रदेश में भी है. कहने के लिए यहां सीट बंटवारा चुका है और कांग्रेस को 17 सीटें भी मिली हैं, लेकिन यहां भी समाजवादी पार्टी कांग्रेस पर दबाव बनाने में कामयाब रही है. इस राज्य में भी कांग्रेस फर्रुखाबाद, भदोही, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती और जालौन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारना चाहती थी लेकिन पार्टी को यह सीटें नहीं मिल सकी हैं.