पूरा देश आज 75वां गणतंत्र दिवस (Republic Day) मना रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कर्तव्य पथ पर तिरंगा फहराएंगी। कर्तव्य पथ पर परेड का भव्य आयोजन किया जाएगा। इस साल फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल है।
भारत के 75वें गणतंत्र दिवस दिवस समारोह की शुरुआत पहली बार शंख और ढोल-नगाड़ों के साथ हुई परेड. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कर्तव्य पथ पर आयोजित 75वें गणतंत्र दिवस समारोह में राष्ट्रीय ध्वज फहराया. इस दौरान 21 तोपों की सलामी भी दी गई.. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों पारंपरिक बग्गी में सवार होकर कर्तव्य पथ पर पहुंचीं. इससे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 75वें गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रीय समर स्मारक जाकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की. कोहरे और ठंड के बीच कर्तव्य पथ पर लोगों की भीड़ उमड़ी है. भारत महिला सशक्तीकरण के भव्य प्रदर्शन के साथ 75वां गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है. कर्तव्य पथ पर 75वें गणतंत्र दिवस की परेड महिला केंद्रित होगी और ‘विकसित भारत’ और ‘भारत-लोकतंत्र की मातृका’ मुख्य विषय है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आज कर्तव्य पथ पर परेड के दौरान अपनी बढ़ती सैन्य शक्ति और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के भव्य प्रदर्शन के साथ 75वें गणतंत्र दिवस का जश्न मनाने में भारत का नेतृत्व कर रही है. इस भव्य समारोह में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हो रहे हैं.
26 जनवरी भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. इसकी कहानी 1950 से शुरू होती है. भारत 26 जनवरी, 1950 को एक संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य बना था. इसी दिन देश को अपना संविधान भी मिला था. बता दें कि भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. आज़ादी के बाद भारत के लिए दूसरा ये ख़ास पल था. इस दिन पूरी दुनिया में हमें एक नई पहचान मिली. संविधान को लागू करने के लिए 26 जनवरी की तारीख को ही चुनने की एक खास वजह भी थी. देश ने पहली बार स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी, 1930 को मनाया गया था. लिहाजा, 26 जनवरी के दिन को ही संविधान सभा द्वारा तैयार किए गए संविधान को लागू किया गया था.
इसकी कहानी की शुरुआत 31 दिसंबर, 1929 को हुई थी. इस दिन कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक प्रस्ताव पास हुआ, जिसमें पूर्ण स्वराज्य की मांग की गई. कांग्रेस के अधिवेशन में यह मांग हुई कि अगर अगर ब्रिटिश सरकार ने 26 जनवरी, 1930 तक भारत को डोमीनियन स्टेट का दर्जा नहीं दिया तो देश को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर दिया जाएगा. 26 जनवरी, 1930 को देश में पहला स्वतंत्रता दिवस भी मनाया गया था. हालांकि, आजादी हमें 15 अगस्त, 1947 को मिली, मगर 26 जनवरी हमारे दिल में हमेशा के लिए जुड़ गया.
देखा जाए तो 1920 में ही भारत के गणतंत्र की शुरुआत हो गई थी. 1920 में भारत में आम चुनाव हुआ था. उन्हें इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल और प्रोविजनल काउंसिल के सदस्यों का चुनाव करने के लिए आयोजित किया गया था. इस चुनाव में राष्ट्रीय चुनाव के साथ-साथ प्रांतीय चुनाव का भी आयोजन करवाया गया था. 9 फरवरी, 1921 को ड्यूक ऑफ कनॉट की उपस्थिति में एक समारोह में दिल्ली में संसद का उद्घाटन किया गया था.
15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद भी ब्रिटिश क्राउन के साथ भारत का जुड़ाव जारी रहा. 1935 के भारत सरकार अधिनियम ने स्वतंत्रता के बाद तीन और वर्षों तक अंतरिम संवैधानिक ढांचे के रूप में कार्य करते हुए देश पर शासन किया. हालांकि, इस दौरान परिवर्तन के पहिए गति में आ गए थे. बाद में संविधान के बनने से हमारे लोकतंत्र का विकास हुआ.
विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र
विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ था. इसमें कुल 22 समितियां थी. प्रारूप समिति (ड्राफ्टिंग कमेटी) सबसे प्रमुख समिति थी, जिसका काम संपूर्ण संविधान का निर्माण करना था. प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर थे. करीब 2 साल, 11 महीने और 18 दिन की मेहनत के बाद दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान तैयार किया गया.
डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सौंप दिया. लेकिन सबसे हैरानी वाली बात ये है कि इसे लागू करने के लिए दो महीने की देरी की गई. आखिर किस वजह से संविधान को लागू करने में इतने दिन लगे? इसका तर्क दिया जाता है कि 26 जनवरी के ‘पूर्ण स्वराज’ के ऐलान के महत्व को कायम रखने के लिए संविधान को दो महीने बाद लागू किया गया. इस तरह 26 नवंबर 1949 की जगह 26 जनवरी 1950 को पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया. 1950 से लेकर आजतक गणतंत्र दिवस देश में बहुत ही शान से मनाया जाता है.
गणतंत्र दिवस समारोह, जिसे नई दिल्ली में एक भव्य सैन्य परेड के साथ चिह्नित किया गया. 1950 में राष्ट्रीय राजधानी में पुराना किला के सामने इरविन एम्फीथिएटर में गणतंत्र दिवस की शुरुआत हुई, जो अब एक परंपरा बन चुकी है.
भारत के गणतंत्र की उत्पत्ति का पता वर्ष 1920 में लगाया जा सकता है, जब पहले आम चुनाव उद्घाटन द्विसदनीय केंद्रीय विधायिका – दो सदनों वाली विधायिका – और प्रांतीय परिषदों के सदस्यों को चुनने के लिए आयोजित किए गए थे. 9 फरवरी, 1921 को ड्यूक ऑफ कनॉट की उपस्थिति में एक समारोह में दिल्ली में संसद का उद्घाटन किया गया था. देश को कम ही पता था कि यह एक महान परिवर्तन का अग्रदूत था जो दशकों बाद सामने आएगा.
संविधान का मूल
नवनिर्मित भारतीय संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है, “हम, भारत के लोग भारत को एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने और इसके सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व प्रदान करने का गंभीरता से संकल्प लेते हैं.”
गणतंत्र दिवस समारोह, जिसे नई दिल्ली में एक भव्य सैन्य परेड के साथ चिह्नित किया गया, ने सैन्य परेड की औपनिवेशिक परंपरा को अपनाया और उसका पुनराविष्कार किया. 1950 में राष्ट्रीय राजधानी में पुराना किला के सामने इरविन एम्फीथिएटर में आयोजित उद्घाटन गणतंत्र दिवस परेड ने एक ऐसी परंपरा के लिए मंच तैयार किया जो वर्षों में विकसित होगी.
26 जनवरी का महत्व न केवल संविधान को अपनाने में है, बल्कि भारत द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य से अपने अंतिम संबंधों को तोड़ने में भी है. गणतंत्र दिवस के रूप में चुना गया यह दिन स्वतंत्रता के लिए वर्षों के संघर्ष की परिणति और एक स्वशासित राष्ट्र बनने के सपने के साकार होने का गवाह बना. 26 जनवरी 1950 से लेकर अब तक गणतंत्र के 75 साल हो गए हैं. इतने सालों में भारत एक मज़बूत लोकतंत्र के रूप में उभरा है.