विश्व मंच पर भारत को जो भूमिका निभानी थी यह काम दक्षिण अफ्रीका कर रहा है। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामामोसा ग्लोबल साउथ ही नहीं बल्कि विश्व मंच पर नायक के रूप में उभरे हैं। भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गाजा त्रासदी के संबंध में ऊहापोह के शिकार हैं। इसका कारण व्यावहारिक अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और राष्ट्रीय हित हो सकते हैं। साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के भारत और दक्षिण अफ्रीका शिकार रहे हैं। इन दोनों देशों से यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि वे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करें। दक्षिण अफ्रीका ने हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में इस्राइल को कठघरे में खड़़ा किया। दो दिन की सुनवाई के दौरान पूरी दुनिया ने इस्राइल के खिलाफ नरसंहार के आरोपों पर कानूनी दलीलें देखीं और सुनीं। न्यायालय के फैसले से अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्व जनमत इस्राइल के खिलाफ अपना फैसला सुना चुका है। यह विडंबना है कि इस्राइल को अमेरिका और पश्चिमी देशों का प्रत्यक्ष समर्थन और अरब देशों का मौन समर्थन हासिल है। गाजा में तबाही के १०० दिन पूरे हो गए हैं‚ लेकिन अरब और मुस्लिम देशों ने बयानबाजी के सिवाय कुछ नहीं किया। हमास‚ हिजबुल्लाह और मुस्लिम ब्रदरहुड़ के लिए भी यह एक बड़़ी सीख है कि वे उनके प्रतिरोध को मिल रहे विश्व समर्थन के मद्देनजर अपनी सोच और नीति में बदलाव करें। इन संगठनों को मजहबी संकीर्णता और कट्टरपन से ऊपर उठकर अपनी लड़़ाई को नव–उपनिवेशवाद और दादागिरी के खिलाफ संघर्ष में बदलना चाहिए। सड़़कों पर युवा वर्ग इसलिए उतरा है कि वह युद्ध और खूनखराबे से उद्वेलित है। वह कट्टरपंथी जेहादी विचारधारा के समर्थन में नहीं है।
ऐसे समय जब अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के प्रयास गाजा में विध्वंस रोकने पर केंद्रित होने चाहिए थे‚ अमेरिका और पश्चिमी देशों ने लाल सागर में नया मोर्चा खोल दिया है। एक महत्वपूर्ण जलमार्ग में निर्बाध नौवहन के महत्व से कोई इनकार नहीं कर सकता। यमन के हुती विद्रोही यह मांग कर रहे हैं कि गाजा में मानवीय और राहत सहायता में इस्राइल कोई रुकावट पेश न करे। वास्तव में यह मांग तो अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को करनी चाहिए तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को कोई कारगर कदम उठाना चाहिए था।
लाल सागर में संघर्ष की आशंका के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर ईरान की यात्रा पर जाने वाले हैं। कुछ दिन पूर्व अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने जयशंकर से बातचीत की थी। पश्चिमी मीडि़या में ऐसे समाचार छापे जा रहे हैं मानो जयशंकर ब्लिंकन के दूत के रूप में तेहरान जा रहे हों। पश्चिमी विश्लेषक अरब महासागर में भारत आ रहे एक जहाज पर हुए हमले में ईरान का हाथ बता रहे हैं। कुछ भारतीय विश्लेषकों का मानना है कि भारत को अपने साथ लाने के लिए पश्चिमी देश ईरान का हौव्वाा खड़़ा कर रहे हैं‚ लेकिन भारत अपनी ओर से पूरी सतर्कता बरत रहा है। ईरान स्थित चाबहार बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक महत्व रखता है। अगले कई दशकों तक भारत‚ ईरान और रूस की ओर से कायम किया जा रहा अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बनेगा। जाहिर है कि अमेरिका इस गलियारा परियोजना को लेकर आशंकित है। इसी को ध्यान में रखकर जो बाइड़न ने जी–२० शिखर वार्ता के दौरान भारत‚ मध्य पूर्व और यूरोप गलियारा परियोजना की घोषणा की थी। फिलिस्तीन के घटनाक्रम से अमेरिकी परियोजना पर प्रश्नचिह्न लग गया है। किसी भी अरब देश के लिए आसान नहीं है कि वह उस परियोजना में शामिल हो जिसमें इस्राइल की भागीदारी हो।
फिलिस्तीन के घटनाक्रम के संबंध में भारत और रूस के रवैये में काफी समानता है। लेकिन हाल के दिनों में रूस सुरक्षा परिषद में अमेरिका के खिलाफ तीखी भाषा का प्रयोग कर रहा है। राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन कई बार कह चुके हैं कि सारे झगड़़ा की जड़़ अमेरिका है। यूक्रेन संघर्ष को लेकर पश्चिमी देशों की आलोचना सहने वाले रूस के लिए यह मौका है कि वह इन देशों को कठघरे में खड़़ा करे। महाशक्तियों के इस शक्ति संघर्ष में उलझने की बजाय भारत के लिए यह श्रेयस्कर है कि वह संतुलन कार्य और बीच–बचाव की भूमिका निभाए।
यह विडंबना है कि इस्राइल को अमेरिका और पश्चिमी देशों का प्रत्यक्ष समर्थन और अरब देशों का मौन समर्थन हासिल है। गाजा में तबाही के १०० दिन पूरे हो गए हैं‚ लेकिन अरब और मुस्लिम देशों ने बयानबाजी के सिवाय कुछ नहीं किया