तेलंगाना विधानसभा चुनाव 2023 का रिजल्ट आ गया है. राज्य में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. पार्टी ने 119 सीटों में से 64 सीटें अपने नाम की है और सरकार बनाने के लिए 60 के जादुई आंकड़े को पार कर गई है. राज्य में के. चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति को 39 सीटें मिली हैं और इस बार राव का सरकार बनाने का हैट्रिक का सपना टूट गया है.
तेलंगाना विधानसभा चुनाव 2023 का रिजल्ट आ गया है. राज्य में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. पार्टी ने 119 सीटों में से 64 सीटें अपने नाम की है और सरकार बनाने के लिए 60 के जादुई आंकड़े को पार कर गई है. राज्य में के. चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति को 39 सीटें मिली हैं और इस बार राव का सरकार बनाने का हैट्रिक का सपना टूट गया है. भाजपा को इस बार थोड़ा फायदा मिलता दिख रहा है और पार्टी ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की है. जबकि AIMIM को 7 और CPI को 1 सीट से संतोष करना पड़ा है.
तेलंगाना चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार केवीआर कामरा रेड्डी ने बीआरएस पार्टी के सीएम उम्मीदवार केसीआर और कांग्रेस के सीएम उम्मीदवार रेवंत रेड्डी को हरा दिया है. निवर्तमान विधानसभा में बीआरएस के 101 सदस्य हैं, एआईएमआईएम के 7, कांग्रेस के 5, बीजेपी के 3. ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के पास एक विधायक है. एक स्वतंत्र है जबकि एक पद रिक्त है.
इस दक्षिणी राज्य में सरकार बनाने के लिए साधारण बहुमत का आंकड़ा 60 सीटें है. चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) 2014 से सत्ता में है, जब तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिया गया था और उसने 2018 का चुनाव भी जीता था और उसे हैट्रिक की उम्मीद थी. कांग्रेस ने लगभग एक दशक पुरानी सत्ताधारी पार्टी को सत्ता से हटाने के उद्देश्य से एक उत्साही चुनाव अभियान चलाया और उसमें कामयाब भी हुई.
इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल में भी यह सामने आया था कि तेलंगाना (Telanagana Vidhan Sabha Chunav Result) में सत्ता विरोधी लहर है और एग्जिट पोल सच साबित हुआ है.
तेलंगाना चुनाव में हारकर भी कैसे ‘बाजीगर’ बन गई बीजेपी? इन आंकड़ों में छिपी ‘माइक्रो जीत’
तेलंगाना विधानसभा चुनाव में बीआरएस सत्ता से बाहर हो गई और कांग्रेस को बहुमत मिल गया। इस चुनाव में दूर खड़े होकर देखेंगे तो लगेगा कि तेलंगाना में भारतीय जनता पार्टी ने बहुत खराब प्रदर्शन किया, लेकिन जब चुनावों के आंकड़ों को बारीकी से देखेंगे तो समझ आएगा कि दक्षिण के इस राज्य में बीजेपी भले ही विजयी ना हुई हो, लेकिन माइक्रो जीत भी जरूर हासिल की है। बीजेपी ने तेलंगाना में 8 सीटों पर जीत हासिल की है और कांग्रेस ने 64 सीटों पर झंडा फहराया है।
8 सीट पर कब्जा, वोट प्रतिशत भी दोगुना
जब आंकड़ों पर नजर डालेंगे तो दिखेगा कि साल 2018 के चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में भगवा पार्टी ने 8 सीट पर कमल खिलाया है। भारतीय जनता पार्टी की राज्य विधानसभा चुनाव में सीट की संख्या अब 8 हो गई है, लिहाजा अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले इस दक्षिणी राज्य में बीजेपी की सीटों की संख्या में ये इजाफा एक सूक्ष्म विजय कही जा सकती है। इसके साथ ही 2023 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपना वोट प्रतिशत भी लगभग दोगुना कर लिया है। भाजपा का मत प्रतिशत 2018 में 7 प्रतिशत था, जो इस विधानसभा चुनाव में बढ़कर 13.88 प्रतिशत हो गया है।
बीजेपी के रेड्डी ने सीएम केसीआर को हराया
इतना ही नहीं भारतीय जनता पार्टी ने इससे पहले हुए दो उपचुनाव जीते थे, जिससे निवर्तमान विधानसभा में उसके सदस्यों की संख्या तीन हो गई थी। भाजपा नेता के.वेंकट रमण रेड्डी ने कामारेड्डी में मुख्यमंत्री और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) प्रमुख के.चंद्रशेखर राव और तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी (टीपीसीसी) प्रमुख रेवंत रेड्डी को हराकर एक बड़ा उलटफेर किया। रेड्डी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी के.चंद्रशेखर राव को 6,741 वोटों के अंतर से हराया। हालांकि, दूसरी तरफ भाजपा के सभी तीन सांसद चुनाव हार गए हैं।
BJP के टी राजा लगातार तीसरी बार जीते
विवादों में रहे विधायक टी.राजा सिंह हैदराबाद से एकमात्र भाजपा उम्मीदवार हैं, जिन्होंने 2018 विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी और इस बार भी उन्होंने अपनी यह उपलब्धि दोहराई है। उन्होंने लगातार तीसरी बार अपनी गोशामहल सीट बरकरार रखी। भाजपा के मुखर सांसद और पूर्व राज्य प्रमुख बी.संजय कुमार अपने बीआरएस प्रतिद्वंद्वी गंगुला कमलाकर रेड्डी से 3,163 वोटों से हार गए। निजामाबाद के सांसद डी.अरविंद अपने बीआरएस प्रतिद्वंद्वी के.संजय से 10 हजार से अधिक मतों से हार गए। वहीं सोयम बापुराव भी बीआरएस उम्मीदवार अनिल जादव से हार गए।
कर्नाटक की हार से बदले तेलंगाना में समीकरण
भाजपा ने तेलंगाना की सत्ता में आने पर पिछली जाति के नेता को मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था, जो लगता है कि मतदाताओं को रास नहीं आया। पहले भाजपा को बीआरएस के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखा जा रहा था, लेकिन इस साल मई में कर्नाटक चुनावों में भाजपा की हार और कांग्रेस के मजबूत होने के बाद यह धारणा बदल गई थी।