अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर लगभग सारी पार्टियों ने तैयारी शुरू कर दी है। लेकिन, बिहार के छोटे दल अब तक ‘सियासी मित्र’ को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं। इस बीच, अपने वोट बैंक को जोड़ कर रखने और दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने को लेकर सभी दल प्रयास जरूर कर रहे हैं, लेकिन सियासी मित्र को लेकर अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं।
मुकेश सहनी से लेकर पप्पू यादव तक को तलाश
विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने 101 दिनों की संकल्प यात्रा के जरिए अपने वोट बैंक को जोड़ने की कोशिश की तो पूर्व सांसद पप्पू यादव की पार्टी जन अधिकार पार्टी स्थानीय मुद्दों के समाधान को लेकर संघर्ष करते नजर आ रही है।
वीआईपी 6 दिसंबर को मुजफ्फरपुर में एक बड़ी रैली का आयोजन करने जा रही है, जिसमें संभावना व्यक्त की जा रही है कि वीआईपी इस दिन सियासी मित्र को लेकर अपने पत्ते खोले। वीआईपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता देव ज्योति हालांकि ये भी कहते हैं कि किस गठबंधन के साथ जाना है, इसका फैसला पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी को करना है।
उन्होंने आगे कहा कि वीआईपी निषादों के आरक्षण की लड़ाई लड़ रही है और यही मुद्दा है, जो गठबंधन भी तय करेगी। उन्होंने ये भी कहा कि हमारी अपनी ताकत है और ये सभी राजनीतिक दल जानते हैं।
बिहार में बीएसपी के अनिल कुमार बहा रहे पसीना
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की नजर भी उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों पर लगी है। बसपा ने अनिल कुमार को बिहार प्रभारी बनाकर पार्टी में जान फूंकने की कोशिश की है। अनिल कुमार भी बक्सर, भोजपुर, रोहतास सहित कई जिलों में बसपा को मजबूत करने में जुटे हैं। ये दल हालांकि किस गठबंधन के साथ लोकसभा चुनाव में उतरेंगे इसकी तस्वीर अब तक साफ नहीं कर सके हैं।
बसपा के बिहार प्रभारी अनिल कुमार भी गठबंधन को लेकर विशेष कुछ नहीं बोलते। उन्होंने कहा कि हमारा दायित्व पार्टी को बिहार में मजबूत करना है, जिस पर तेजी से काम चल रहा है।