राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में अगले महीने होने वाले चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के बीच तलवारे तन गई हैं। इन पांच राज्यों में सिर्फ मध्य प्रदेश ही भाजपा के कब्जे में है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ता में है, तो तेलंगाना में भाजपा की धुर विरोधी पार्टी बीआरएस। मिजोरम में गठबंधन की सरकार है। इसलिए भाजपा को खोने का भय सिर्फ मध्य प्रदेश में है, जबकि कांग्रेस को राजस्थान, छत्तीसगढ़ में। पांच राज्यों के असेंबली चुनावों को राजनीतिक प्रेक्षक अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमी फाइनल मानते हैं।
भाजपा के लिए क्यों जरूरी है राजस्थान जीतना
राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं। भाजपा ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी और 2019 के लोकसभा चुनाव में 24 सीटें उसके खाते में आई थीं। हालांकि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बावजूद 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सेहत पर कोई खास असर नहीं पड़ा था। इससे एक बात तो साफ है कि राजस्थान में नरेंद्र मोदी का वोट बैंक अलग है। विधानसभा और लोकसभा के चुनावों के ट्रेंड मेल नहीं खाते हैं। भाजपा की पूरी कोशिश राजस्थान की सत्ता से अधिक 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने की है। यही वजह है कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीतने के लिए पूरा दमखम तो दिखाया ही है, मुख्यमंत्री का कोई चेहरा भी सामने नहीं रखा है। नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही विधानसभा का चुनाव भी लड़ा जाएगा। भाजपा को भरोसा है कि नरेंद्र मोदी के नाम पर जिताऊ वोट मिलने की अधिक उम्मीद रहेगी।
मध्य प्रदेश तो भाजपा की प्रतिष्ठा का ही सवाल
मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है। शिवराज सिंह चौहान अभी सीएम हैं। मध्य प्रदेश में लोकसभा की कुल 29 सीटें हैं। इनमें से 28 पर बीजेपी के सांसद हैं। छिंदवाड़ा की एकमात्र कांग्रेस के पास है। छिंदवाड़ा सीट से कमलनाथ के बेटे नकुल नाथ लोकसभा सांसद हैं। भाजपा के सामने यहां विधानसभा चुनाव में अपनी सरकार बचाने की चुनौती है तो लोकसभा की पहले जीती सीटों की संख्या बरकरार रखने की। भाजपा ने अपने कई सांसदों को भी विधानसभा का उम्मीदवार बनाया है। किसी भी कीमत पर भाजपा मध्य प्रदेश की सीट बचाने की कोशिश करेगी। यह उसकी प्रतिष्ठा का सवाल है।
तेलंगाना में बीजेपी को गंवाने के लिए कुछ नहीं
तेलंगाना विधानसभा में कुल 119 सीटें हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में के.चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब बीआरएस)) ने 88 सीटें जीती थीं। के चंद्रसेखर राव तेलंगाना के दूसरे मुख्यमंत्री हैं। भाजपा को पांच सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। विधानसभा में 13 विधायकों के साथ कांग्रेस राज्य की दूसरी बड़ी पार्टी बनी थी। कांग्रेस ने खुद को उभारने के लिए कोशिश भी की है। इसी साल जून में पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद और पूर्व विधायक समेत तकरीबन दर्जन भर लोगों ने केसी राव का साथ छोड़ कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली थी। इसलिए तेलंगाना में भाजपा सरकार बनाने का सपना तो नहीं देख सकती, लेकिन विधायकों की संख्या बढ़ाने के लिए जरूर प्रयास करेगी। अलबत्ता लोकसभा की 17 सीटों पर भाजपा फोकस करना चाहेगी। वर्ष 2019 में भाजपा ने चार लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा की कोशिश होगी कि उसके सदस्यों की संख्या इस बार बढ़ें। टीडीपी इस बार बीजेपी के साथ रहेगी। यानी भाजपा की ताकत बढ़नी तय है। सर्वेक्षण के आंकड़े भाजपा को दूसरे नंबर पर दिखा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से सत्ता छीनना चाहेगी BJP
छत्तीसगढ़ में दो प्रमुख पार्टियां- कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला होता रहा है। कर्नाटक के अलावा देश में कांग्रेस सबसे ज्यादा मजबूत छत्तीसगढ़ में ही दिखती है। कुल 90 सदस्यों वाली विधानसभा कांग्रेस के 71 विधायक हैं। यही वजह है कि कांग्रेस अपना किला बचाने के लिए पूरा जोर लगा रही है। बीजेपी फिर से सत्ता में लौटने लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। भाजपा ने धर्मांतरण को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया है। झारखंड की तरह छत्तीसगढ़ भी ट्राइबल स्टेट है। यहां 32 प्रतिशत आदिवासी हैं।
छत्तीसगढ़ विधानसभा की कुल 90 सीटों में आधी से कुछ कम 39 सीटें (29 सीट अनुसूचित जनजाति और 10 सीट अनुसूचित जाति के लिए) आरक्षित हैं। आदिवासी सीटों पर कांग्रेस असरदार है। हालांकि छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद लगभग डेढ़ दशक तक भाजपा ही सत्ता पर काबिज रही है। इसलिए भाजपा सत्ता में पुनर्वापसी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी। छत्तीसगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें हैं, जिनमें नौ पर भाजपा का कब्जा है और सिर्फ दो सीटें कांग्रेस के पास हैं। भाजपा को राज्य की सत्ता तो हासिल करने की बेचैनी तो है ही, उसे लोकसभा की सीटों पर भी कब्जा जमाए रखना है।
कांग्रेस-बीजेपी के पास कैसे-कैसे हैं चुनावी हथियार
नरेंद्र मोदी का चेहरा, नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धियां, भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान, आतंकवाद के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय गोलबंदी, वैश्विक स्तर पर भारत की निखरी पहचान, महिला आरक्षण बिल और सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के नारे के साथ भाजपा चुनावी समर में उतरेगी। यही मुद्दे विधानसभा चुनाव के लिए भी होंगे और लोकसभा में इसी के बूते भाजपा फिर से झंडा गाड़ने की कोशिश करेगी।
दूसरी ओर कांग्रेस महंगाई, विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई के अलावा जाति सर्वेक्षण और गारंटी योजनाओं (Caste Survey And Guarantee Schemes) के सहारे भाजपा को शिकस्त देने की कोशिश करेगी। कांग्रेस कर्नाटक में गारंटी योजनाओं की घोषणा कर उसका लाभ ले चुकी है। इसलिए राजस्थान और मध्य प्रदेश के लिए ऐसी गारंटी योजनाओं का पिटारा खोल दिया है। कृषि कर्ज की माफी, बिजली फ्री, छात्रों को आर्थिक मदद जैसी गारंटी जनता को कांग्रेस दे रही है।