राजस्थान की राजनीति में मानेसर प्रकरण का ताप अब भी नजर आ रहा है. नेता अपने-अपने हिसाब से इसपर सियासी खिचड़ी भी पकाने में जुटे हैं. अशोक गहलोत के एक बयान के बाद यह माना जा रहा है कि पूरे चुनाव में मानेसर की घटना बहस के केंद्र में रहने वाली है.
एक इंटरव्यू में अशोक गहलोत ने खुलासा करते हुए कहा कि 2020 में उनकी सरकार को गिराने के लिए बीजेपी के दफ्तर में मीटिंग हुई थी. गहलोत ने कहा कि साजिश रचने का काम अमित शाह, जेपी नड्डा, गजेंद्र शेखावत और जफर इस्लाम ने किया था. हालांकि, लोगों ने मेरी सरकार बचा ली.
इन आरोप प्रत्यारोप के बीच कहा जा रहा है कि गहलोत के इस बयान ने सचिन पायलट और वसुंधरा राजे के समर्थकों को फिर से असहज कर दिया है. जानकारों का कहना है कि इस चुनाव में मानेसर प्रकरण की वजह से कम से कम 5 नेताओं का सियासी भविष्य दांव पर है.
हालांकि, अगर यह मामला तुल पकड़ता है, तो कई और सियासी समीकरण को भी उलट-पलट सकता है.
मानेसर की घटना क्या थी?
जून 2022 में राज्यसभा चुनाव के तुरंत बाद अशोक गहलोत सरकार में डिप्टी सीएम सचिन पायलट अपने 30 समर्थक विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर चले गए, जिसके बाद कांग्रेस की सरकार अस्थिर हो गई. सरकार बचाने के लिए अशोक गहलोत ने आनन-फानन में निर्दलीय विधायकों को अपने साथ किया.
इसके बाद सभी विधायकों की बाड़ेबंदी की गई. कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल के लिए अजय माकन और रणदीप सुरजेवाला को राजस्थान भेजा. सुरजेवाला ने जयपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार गिराने की साजिश का पहली बार खुलासा किया. सचिन पायलट और उनके 3 करीबियों को मंत्रिमंडल से हटाया गया.
अशोक गहलोत ने सरकार गिराने के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया. इसी बीच केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और कांग्रेस विधायक भंवर लाल शर्मा का एक ऑडियो वायरल हुआ, जिसमें सरकार गिराने की बात कही जा रही थी. शेखावत ने ऑडियो को फर्जी बताते हुए दिल्ली में केस दर्ज करवा दिया.
सरकार बचाने के लिए कांग्रेस हाईकमान भी एक्टिव हुआ और सचिन पायलट से संपर्क साधा. पायलट ने अपनी बात रखी, जिसके बाद कांग्रेस ने 3 सदस्यीय एक कमेटी का गठन किया. पायलट ने बीजेपी से मिले होने की साजिश से इनकार करते हुए कांग्रेस में ही रहने की बात कही.
मानेसर प्रकरण में एक और किरेदार की चर्चा होती है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुताबिक जब कांग्रेस के विधायक मानेसर गए, तो वसुंधरा राजे ने सरकार गिराने से इनकार कर दिया. बकौल गहलोत वसुंधरा ने इसके लिए राजस्थान की परंपरा का हवाला दिया.
दांव पर इन नेताओं का सियासी भविष्य
1. दानिश अबरार- मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सलाहकार और सवाई माधोपुर से विधायक दानिश अबरार पर भी मानेसर प्रकरण का ताप से झुलस सकते हैं. हाल ही में सचिन पायलट के समर्थकों ने उनका विरोध किया था.
पायलट के समर्थकों का कहना था कि 2020 में दानिश अबरार ने उनके साथ गद्दारी की, जब वे मुख्यमंत्री बनने के लिए गहलोत के खिलाफ मुहिम छेड़ रहे थे तो अबरार ने सचिन का साथ छोड़ दिया. दानिश अबरार के क्षेत्र में गुर्जर मतदाताओं की संख्या अधिक है.
2018 में पायलट ने अबरार के पक्ष में जमकर सभाएं की थी. मलराना डूंगर में तो पायलट ने कई घोषणाएं भी की थी. परिणाम भी पायलट के पक्ष में रहा और वे करीब 25 हजार वोटों से चुनाव जीते. बीजेपी ने इस बार कद्दावर नेता किरोड़ी लाल मीणा को सवाई माधोपुर से मैदान में उतार दिया है.
सवाई माधोपुर सीट पर मुख्य रूप से मीणा, गुर्जर और मुस्लिम वोटरों का दबदबा है. इसके अलावा बनिया और ब्राह्मण भी जीत हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं.
कांग्रेस को पिछली बार मुस्लिम और गुर्जर समीकरण के सहारे इस सीट जीत ली थी, लेकिन इस बार अबरार को अगर टिकट मिलता है, तो उन्हें शायद ही गुर्जर का साथ मिले. किरोड़ी लाल मीणा की वजह से मीणा वोटरों में भी सेंध लगाना मुश्किल है.
2. प्रताप सिंह खाचरियावास- अशोक गहलोत सरकार में मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास का सियासी भविष्य भी दांव पर है. खाचरियावास जयपुर के सिविल लाइन्स सीट से विधायक हैं. पिछली बार उन्हें चुनाव जिताने और मंत्री बनाने में सचिन पायलट ने बड़ी भूमिका निभाई थी.
2018 के चुनाव का बिगुल पायलट ने सिविल लाइन्स से ही फूंका था. यहां से उन्होंने पदयात्रा की शुरुआत की थी. 2018 के चुनाव के बाद खाचरियावास ने पायलट को सीएम बनाने की भी पैरवी की थी, लेकिन मानेसर की घटना के बाद दोनों के बीच खटपट हो गया.
खाचरियावास के सीट पर बीजेपी ने अभी तक टिकट का ऐलान नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि पार्टी किसी ब्राह्मण चेहरे को यहां से मैदान में उतार सकती है. सिविल लाइन्स में ब्राह्मण और वैश्य वोटर सबसे ज्यादा हैं, जो बीजेपी के कोर वोटर्स माने जाते हैं.
पायलट समर्थक यहां अगर नाराज होते हैं, तो खाचरियावास का सदन में पहुंचना मुश्किल हो जाएगा.
3. कैलाश मेघवाल- राजस्थान बीजेपी के कद्दावर नेता कैलाश मेघवाल का सियासी भविष्य भी मानेसर प्रकरण की वजह से दांव पर है. राजस्थान में जब सचिन पायलट के समर्थकों ने बगावत किया था, तो उस वक्त मेघवाल ने गहलोत सरकार के समर्थन में बयान दिया था.
मेघवाल ने कहा था कि हॉर्स ट्रेडिंग करना गलत है. मेघवाल ने एक पन्ने का बयान जारी करते हुए कहा था कि सत्ताधारी पार्टी के कुछ विधायकों के साथ विपक्ष मिलकर जो साजिश रच रहा है, वो गलत है. इसमें हम साथ नहीं देने वाले हैं. मेघवाल वसुंधरा के काफी करीबी नेता माने जाते रहे हैं.
मेघवाल के बयान के बाद बीजेपी बैकफुट पर आ गई, क्योंकि बीजेपी के 40-45 विधायक वसुंधरा के करीबी माने जाते थे. मेघवाल अभी बीजेपी से बाहर हैं और उनके सीट पर बीजेपी की ओर से किसी दूसरे को प्रत्याशी बनाए जान की बात कही जा रही है.
मेघवाल के चुनाव लड़ने पर भी सस्पेंस है. अगर वे चुनाव लड़ते हैं, तो शायद ही अपनी सीट बचा पाएं.
4. वसुंधरा राजे- राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का सियासी करियर भी खतरे में है. हाल ही में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक इंटरव्यू में दावा किया था कि वसुंधरा को साइडलाइन के पीछे 2020 की घटना है.
गहलोत के मुताबिक वसुंधरा ने सरकार गिराने से मना कर दिया था, इसलिए उन्हें बीजेपी ने किनारे कर दिया. हालांकि, वसुंधरा इसे सिरे से नकार चुकी हैं और गहलोत पर झूठ बोलने का आरोप लगा चुकी हैं.
लेकिन पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से वसुंधरा गुट के पर कतरे जा रहे हैं, उससे इस बात को बल भी मिल रहा है. जानकारों का कहना है कि यह पहली बार है, जब राजस्थान के चुनाव में वसुंधरा के पास कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं है.
हाल ही में उनके 2 समर्थक राजपाल शेखावत और नरपत सिंह रजवी के टिकट भी काट दिए गए. उनके कई समर्थकों पर भी टिकट कटने का खतरा मंडरा रहा है. जानकारों का कहना है कि वसुंधरा राजे के लिए यह सबसे कठिन चुनाव है.
चुनाव और उसके बाद वसुंधरा की भूमिका क्या होगी, यह बहुत कुछ मानेसर के ताप पर भी निर्भर करेगा.
वसुंधरा इस बार काफी निष्क्रिय भी दिखाई दे रही हैं. पिछले चुनाव में वसुंधरा ने 70 रैलियों को संबोधित किया था. उन्होंने 2 रोड-शो भी की थीं, लेकिन इस बार अभी तक उन्होंने चुनावी बिगुल भी नहीं फूंका है.
सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि वसुंधरा राजे और उनका गुट बीजेपी की दूसरी सूची आने के इंतजार में है.
5. सचिन पायलट- कांग्रेस के बागी विधायक सचिन पायलट के नेतृत्व में ही मानेसर गए थे. मानेसर जाने की वजह से सचिन पायलट से उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी ले ली गई. पायलट को इसके बाद सरकार में कोई बड़ा पद नहीं मिल पाया.
सितंबर 2022 में पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलने की बात कही गई, लेकिन गहलोत समर्थकों ने हल्लाबोल दिया. गहलोत के समर्थकों का कहना था कि सरकार गिराने वाले लोगों को मुख्यमंत्री की कु्र्सी कैसे दी जा सकती है? बगावत करने वाले इन नेताओं पर हाईकमान ने भी कोई कार्रवाई नहीं की.
राजस्थान में भले कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है, लेकिन अशोक गहलोत का दबदबा अभी भी कायम है. गहलोत के चेहरे और काम को लेकर ही कांग्रेस चुनाव मैदान में है. गहलोत की योजना का बड़े नेता भी जमकर प्रचार कर रहे हैं.
ऐसे में अगर सरकार बनती है, तो अशोक गहलोत को हटा पाना मुश्किल काम है. हालांकि, ओपिनियन पोल में कांग्रेस की स्थिति भी ठीक नहीं है. एबीपी सी-वोटर सर्वे के मुताबिक कांग्रेस को 60-65 सीटें राजस्थान में मिल सकती है.
इस सर्वे में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलने का अनुमान लगाया गया है. अगर ऐसा होता है, तो राजस्थान में सचिन पायलट की आगे की भूमिका पर और भी ज्यादा सस्पेंस गहरा जाएगा.
यही नहीं, सियासी गलियारों मेों सचिन पायलट की निष्क्रियता भी चर्चा में है. पायलट ने 2018 में 230 रैलियों को संबोधित किया था. कई विधानसभा सीटों पर उन्होंने पदयात्राएं भी निकाली थी, लेकिन इस बार वे टोंक में ही सीमित हैं.
पायलट के निष्क्रियता पर जब अशोक गहलोत से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस हाईकमान उनकी भूमिका को तय करेगा.