हमास और इजरायल के बीच जंग लड़ी जा रही है। हमास के हमले के बाद इजरायल ने भी अपनी शक्ति दिखा दी है, लेकिन इन सब में सबसे ज्यादा पिस रहे हैं आम लोग। इजरायल और गाजा पट्टी का इलाका युद्ध का मैदान बना है, लेकिन आम लोगों के साथ वो बर्बरता हो रही है जिसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है। ये सिर्फ इस युद्ध की बात नहीं जब भी युद्ध होते हैं मासूमों लोगों के साथ हिंसा होती है और कई हिंसाएं तो ऐसी होती हैं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
वॉर क्राइम की सबसे खौफनाक एंगल
आज बात उसी वॉर क्राइम की। सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान मैदान में जंग चल रही थी, वो जंग जिसके बारे में सब जानते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर एक अलग तरह का प्रयोग हो रहा था। अंदर ही अंदर रची जा रही थी बेहद खौफनाक साजिश। इस साजिश का नाम था ‘यूनिट 731’। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जापान ने एक लैब तैयार की थी और इस लैब को नाम दिया गया था यूनिट 731। ये दुनिया की सबसे खौफनाक प्रयोगशालाओं में से एक थी, जहां युद्ध बंदियों को ऐसी-ऐसी यातनाएं दी जाती थी जिसके बारे में सोचने में भी डर लगता है।
लैब में युद्ध बंदियों के साथ होते थे खतरनाक प्रयोग
कहते हैं ये लैब बायोलॉजिक वेपन यानी जैविक हथियार तैयार करने के लिए बनाई गई थी। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बंदियों को इस प्रयोगशाला में रखा जाने लगा। सोच थी कि क्यों युद्ध में पकड़े गए कैदियों को क्यों फ्री खाना खिलाया जाए और इसलिए इन कैदियों के शरीर पर एक्सपेरिमेंट किए जाने लगे। ऐसे खतरनाक प्रयोग जो किसी के भी होश उड़ा दें। इस लैब के अंदर जानलेवा वायरस या बैक्टीरिया को बंदियों के शरीर में डाल दिया जाता। जानवरों से भी बदतर हाल में उनके शरीर में प्रयोग किए जाने लगे।
शरीर में खतरनाक केमिकल डालकर तड़पाया जाता था
उनके शरीर में ऐसे केमिकल डाले जाते कि वो तड़पने लगते। कइयों की मौत हो जाती और जो बच जाते उनके शरीर को जिंदा ही चीर-फाड़ दिया जाता। उसके शरीर के अंदरुनी हिस्सों को निकाला जाता। इस लैब में कई तरह के प्रयोग किए जाते। दुनिया की नजर में बंदूकों, गोला बारूदों से युद्ध चल रहा था, लेकिन इस लैब में उससे भी खतरनाक खेल खेला जाता।
शरीर के अंगों को साइंस लैब के अंदर गलाया जाता था
बताया जाता है कि यूनिट 731’ में फ्रॉस्टबाइट टेस्टिंग नाम का एक खतरनाक प्रयोग भी किया गया। इस प्रयोग के तहत बंदियों के हाथ-पैर को बर्फीले पानी में डाल दिया जाता था और उसे जमा दिया जाता। उसके बाद जमे हुए हाथ-पैरों को गर्म पानी में पिघलाया जाता था। जिंदा इंसान को तड़पा कर ये जानने की कोशिश की कि अलग-अलग तापमान का इंसानी शरीर पर क्या असर होता है।
हवा के प्रेशर से कैदियों के शरीर के टुकड़े किए जाते थे
इसी लैब में एक और प्रयोग होता था जिसे प्रेशर चेंबर एक्सपेरिमेंट कहते थे। इसमें युद्ध बंदी को को एक कंटेनर के अंदर डाला जाता था। इसके बाद कंटेनर में हवा का प्रेशर छोड़ा जाता। ये प्रेशर धीरे-धीरे करके बढ़ाया जाता और ये चेक किया जाता कि इंसान कितना हवा का प्रेशर झेल सकता है। उसके बाद प्रेशर को इतना ज्यादा बढ़ा दिया जाता कि उस युद्ध बंदी के शरीर के टुकड़े हो जाते और वो कंटेनर से बाहर आ जाते।