ममता बनर्जी को कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी ‘इंडिया’ के साथ खड़े होने में खुशी है, अगर उन्हें बंगाल में टिकट बंटवारे के लिए फ्री हैंड मिल जाए। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल विपक्षी गठबंधन के साथ रहते हुए पंजाब और दिल्ली में अपना वर्चस्व चाहते हैं। बिहार में शून्य पर खड़े आरजेडी को जेडीयू के बराबर सीटें चाहिए। झारखंड में भी जेएमएम अपनी सहयोगी कांग्रेस को पिछले लोकसभा चुनाव की तरह सीटें देने को तैयार नहीं। विपक्षी गठबंधन में शामिल महाराष्ट्र की पार्टियां खुद ही परेशान हैं। पता नहीं, टिकट बंटवारे पर उनका रुख क्या होगा। विपक्षी दलों में खींचतान का आलम यह है कि आम आदमी पार्टी तो अब छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में विधानसभा की तैयारी में जुट गई है। टिकट भी बांटने लगी है। अब यह संदेह होने लगा है कि क्या लोकसभा चुनाव तक ‘इंडिया’ के चार शब्द एक रह भी पाएंगे या अलग-अलग बिखर जाएंगे।
ममता को ‘इंडिया’ पसंद है, पर शर्तें लागू
ममता बनर्जी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की जरूरत केंद्र की भाजपा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए महसूस करती हैं। अपने स्तर से उन्होंने बंगाल में भाजपा के हौसले को साल 2021 के विधानसभा चुनाव के दौरान पस्त भी कर दिया था। वे चाहती हैं कि बंगाल से भाजपा को भगाने के लिए विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस और लेफ्ट पर्टियां उन्हें सहयोग करें, लेकिन अधिक सीटों की उम्मीद न करें। टीएमसी के सूत्र बताते हैं कि राज्य की कुल 42 लोकसभा सीटों में अधिकतम चार-पांच सीटे देकर ही विपक्षी दलों को वे संतुष्ट करना चाहती हैं। ममता की शर्त कांग्रेस और लेफ्ट के लोग मान जाते हैं तो ममता बंगाल से भाजपा को भगाने का पूरा बंदोबस्त कर देंगी। बंगाल में सिर्फ बीजेपी ही विपक्ष के सामने सामने होगी। अभी ममता को भाजपा के साथ कांग्रेस और लेफ्ट यानी तीन दलों से जूझना पड़ता है। अपनी खोई जमीन हासिल करने के लिए बेताब लेफ्ट इसके लिए तैयार होगा कि नहीं, यह देखने वाली बात होगी। वैसे भी लेफ्ट नेता बार-बार कह रहे हैं कि बंगाल में टीएमसी के साथ किसी तरह का गठबंधन आत्मघाती कदम होगा। इस बीच ‘इंडिया’ के पोस्टर भी बंगाल में लगने लगे हैं, जिनमें राहुल, ममता और लेफ्ट नेताओं की तस्वीरें हैं। ये पोस्टर कौन लगा रहा, किसी को नहीं मालूम, लेकिन माना जा रहा है कि वोटरों में भ्रम फैलाने के लिए यह काम टीएमसी की ओर से हो रहा है।
ममता बनर्जी की एकता के लिए क्या है शर्त
ममता ने कर्नाटक में कांग्रेस की जीत पर स्पष्ट कहा था कि विपक्षी दल जहां मजबूत स्थिति में हैं, वहां बीजेपी को हराना मुश्किल नहीं है। ऐसे राज्यों में विपक्षी दलों को एक साथ बीजेपी का मुकाबला करना चाहिए। उन्होंने ऐसे कुछ राज्यों के नाम भी गिनाये थे। अगर इस नेक सलाह में ममता का इशारा समझें तो कांग्रेस को ऐसे राज्यों में सीटों के लिए साझीदारों के वहां के बड़े विपक्षी दलों के रहमोकरम पर निर्भर रहना होगा। ममता ने खुल कर कहा था कि कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों को बंगाल में टीएमसी को आगे रखना होगा। दिल्ली, बिहार, ओडिशा, तमिलनाडु, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पंजाब जैसे राज्यों में लीड रोल में वहां के प्रमुख विपक्षी दलों को रखना होगा, जो सरकार चला रहे हैं।
किन-किन राज्यों में विपक्षी दल लीड रोल में
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी टीएमसी की सरकार चला रही हैं। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन की सरकार है। तमिलनाडु में डीएमके विपक्षी गठबंधन की सरकार चला रही है। बिहार में छह विपक्षी दलों के महागठबंधन की सरकार का नीतीश कुमार नेतृत्व कर रहे हैं। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार काम कर रही है। तेलंगाना में टीआरएस (नया नाम बीआरएस), ओडिशा में बीजेडी और आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की विपक्षी सरकारें हैं, पर अभी तक वे विपक्षी गठबंधन से बाहर हैं। इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों को ही प्राथमिकता देनी होगी।
अब जरा ममता बनर्जी का गणित समझिए
कर्नाटक के अलावा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारें हैं। बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में गठबंधन की सरकारों में कांग्रेस की भागीदारी है। यानी कुल सात राज्यों में विपक्षी गठबंधन के घटक दलों की सरकारें हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा के चुनावों में जीत हासिल की थी। ममता बनर्जी की शर्त अगर कांग्रेस मानती है तो उसे गठबंधन बना कर चुनाव लड़ने में परेशानी के सिवा कुछ हासिल नहीं होगा। ममता की शर्तों के मुताबिक कांग्रेस को उतनी सीटें नहीं मिल पाएंगी, जितनी सीटों पर वह चुनाव लड़ना चाहती है। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकारें हैं, वहां लोकसभा की कुल सीटों की संख्या 68 है। कांग्रेस ने 350 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है। राजस्थान में लोकसभा की 25, हिमाचल प्रदेश में 4, छत्तीसगढ़ में 11 और कर्नाटक में 28 सीटें हैं। झारखंड, बिहार और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस गठबंधन सरकारों का हिस्सा तो है, लेकिन उल्लेखनीय सीटें न रहने के कारण उसे वहां नेतृत्व कर रहे दलों पर सीटों के लिए याचक की भूमिका में रहना होगा। गठबंधन वाले तीन राज्यों में कांग्रेस को 25-50 सीटें दी जा सकती हैं। अगर इन्हें जोड़ लें तो कांग्रेस के हिस्से में लोकसभा चुनाव चुनाव लड़ने के लिए डेढ़-दो सौ सीटें ही मिलने की उम्मीद है।
अखिलेश और माया यूपी में फंसाएंगे पेंच
भाजपा और विपक्षी गठबंधन के लिए यूपी बड़ी चुनौती है। भाजपा की वहां सरकार है। सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा से जुड़ा है वहां अधिकाधिक सीटें निकालना। उनका यह काम भी आसान होता दिख रहा है। समाजवादी पार्टी से कांग्रेस का गठबंधन होता है तो अखिलेश यादव कितनी सीटें अपने लिए रखेंगे और कितनी कांग्रेस के खाते में जाएंगी। इस पर मंथन होना अभी बाकी है। इस बीच चर्चा है कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती से प्रियंका गांधी लगातार संपर्क में हैं। अगर मायावती आ गई साथ तो मामला और पेंचीदा हो जाएगा। यूपी में सीट शेयरिंग आसान नहीं दिखता। कहने के लिए तो विपक्षी गठबंधन के नेता बार-बार कह रहे हैं कि सीटों के बंटवारे में कोई समस्या नहीं आएगी, लेकिन कोआर्डिनेशन कमिटी की बैठक को लेकर अब तक विपक्षी गठबंधन की चार बैठकें हो गईं, लेकिन सीट शेयरिंग पर कोई बात ही नहीं हो रही। विपक्षी एकता का बिगुल बजाने वाले नीतीश कुमार के इस कारण नाराज होने की बात भी सामने आ रही है।