लोकसभा में महिला बिल आरक्षण पर बहस के दौरान अमित शाह का एक बयान सुर्खियों में है. शाह ने कहा कि कल को परिसीमन में अगर वायनाड सीट आरक्षित हो जाएगा, तो कांग्रेसी इसका दोष भी मुझे ही देंगे. हैदराबाद के आरक्षित होने पर ओवैसी साहेब भी राजनीतिकरण का आरोप लगाएंगे.
केरल की वायनाड सीट से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी तो तेलंगाना के हैदराबाद सीट से एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी सांसद हैं. परिसीमन लोकसभा और विधानसभा सीटों की सीमा निर्धारण की प्रक्रिया को कहते हैं.
2008 में आखिरी बार भारत में परिसीमन किया गया था. परिसीमन की वजह से उस वक्त सोमनाथ चटर्जी, शिवराज पाटिल, धर्मेंद्र और रामकृपाल यादव जैसे नेताओं को अपनी पारंपरिक सीट गंवानी पड़ी थी. परिसीमन अगर हुआ, तो इस बार भी कई बड़े नेताओं की सीट इसकी जद में आ सकती है.
आइए इस स्टोरी में विस्तार से समझते हैं कि आखिर परिसीमन किस आधार पर होता है और कौन सी सीट रिजर्व की जाएगी, इसे कैसे तय किया जाता है?
परिसीमन का संवैधानिक प्रावधान क्या है?
भारत के संविधान के अनुच्छेद 82 में परिसीमन के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसके मुताबिक दशकीय जनगणना के बाद आवश्यकता अनुसार चुनाव आयोग संसदीय और विधानसभा सीटों का परिसीमन कर सकती है.
संविधान के अनुच्छेद 81 में भी परिसीमन का जिक्र किया गया है. अनुच्छेद 81 लोकसभा की संरचना को परिभाषित करता है. इसमें जनसंख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व तय करने की बात कही गई है.
आजादी के बाद भारत में अब तक 4 बार सीटों का परिसीमन किया गया है.
परिसीमन कानून 2002 में इसको लेकर विस्तार से बताया गया है. परिसीमन होने के बाद आयोग उस रिपोर्ट को विधानसभा और लोकसभा के समक्ष रखती है. इसी कानून में भारत में 2026 से पहले परिसीमन पर रोक लगाई गई है.
परिसीमन में सीट रिजर्व कैसे होता है, 3 प्वॉइंट्स से समझिए…
पहले तय होगा, सीटें बढ़ेगी या नहीं?
परिसीमन आयोग बनने के बाद सबसे पहले यह तय होगा कि लोकसभा और विधानसभाओं की सीटें बढ़ेगी या नहीं? परिसीमन कानून 2002 के मुताबिक परिसीमन की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या पूर्व जज कर सकते हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त या उनकी तरफ से नामित चुनाव आयुक्त इसके सदस्य होते हैं.
परिसीमन आयोग विस्तृत अध्ययन के बाद 2 पहलुओं पर रिपोर्ट देगा- लोकसभा की सीटें कितनी होंगी? राज्यवार सीटों की संख्या क्या होगी?
आखिरी बार 1976 में लोकसभा की सीटें बढ़ाई गई थी. उस वक्त देश की आबादी करीब 54 करोड़ थी. 1976 में परिसीमन आयोग ने 10 लाख आबादी पर एक सीट का फॉर्मूला लगाया था, जिसके बाद 543 सीटें तय की गई थी.
अभी देश की आबादी 140 करोड़ है. 10 लाख वाला फॉर्मूला लागू हुआ, तो लोकसभा में कुल 1400 सीटें हो जाएगी. हालांकि, आबादी के हिसाब से सीट तय करने के फॉर्मूले का विरोध हो रहा है.
एससी-एसटी के लिए सीटें आरक्षित होगी
परिसीमन में अगर सीटों में बढ़ोतरी होती है, तो नए सिरे से दलित और आदिवासियों के लिए भी सीटें रिजर्व की जाएगी. मान लीजिए कि परिसीमन आयोग लोकसभा में 1000 सीट बढ़ाने का प्रस्ताव करता है, तो दलित और आदिवासियों के लिए करीब 240 सीटें रिजर्व की जाएगी.
आदिवासियों के लिए सीट रिजर्व का फॉर्मूला पहले से तय है. आदिवासी कोटे के सीटों को संख्या के आधार पर सीट रिजर्व किया जाता है. उदाहरण के लिए अगर देश में आदिवासियों के लिए 90 सीटें आवंटित की जाती है, तो जिन 90 सीटों पर सबसे अधिक आदिवासी होंगे, उसे उनके लिए रिजर्व कर दिया जाएगा.
वहीं दलितों के लिए सीट रोटेशन के आधार पर रिजर्व किया जाता है. पहली बार दलित और आदिवासी सीटों पर भी 33 प्रतिशत महिलाओं को आरक्षण देने की व्यवस्था की गई है. यानी एससी-एसटी कोटे में महिलाओं के लिए भी सीटें रिजर्व करना पड़ेगा.
उदाहरण के लिए दलित कोटे में अगर 120 सीटें आती हैं, तो 40 सीटें दलित महिलाओं के लिए रिजर्व किया जाएगा.
दलितों के लिए रिजर्व करने का कोई तय फॉर्मूला नहीं होने को लेकर कई बार सवाल भी उठे हैं. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी कहते हैं- आदिवासियों की तरह दलितों के लिए सीट रिजर्व का कोई तय फॉर्मूला नहीं है कुरैशी के मुताबिक ऐसे में कई मुस्लिम नेताओं की यह शिकायत रहती है कि उनकी सीटों को दलितों के लिए रिजर्व कर दिया जाता है.
बता दें कि पिछली बार तेलंगाना की वारंगल, नागरकुरनूल और पेडापल्ली सीट दलितों के लिए रिजर्व की गई थी. अगर इस बार परिसीमन होता है, तो हैदराबाद सीट भी इसकी जद में आ सकती है. देश की 5 ऐसी सीटें हैं, जो मुस्लिम बहुल होने के बावजूद 2008 में दलितों के लिए रिजर्व कर दी गई थीं.
महिलाओं के लिए कैसे होगा सीट रिजर्व?
महिलाओं के लिए सीट रिजर्व का कोई तय फॉर्मूला नहीं बनाया गया है. ऐसे में माना जा रहा है कि यह रोटेशन के आधार पर ही तय होगा. रोटेशन के फॉर्मूले में हर 15 साल पर आरक्षित सीटों का समीकरण बदल जाएगा.
रोटेशन में परिसीमन आयोग सबसे ज्यादा जनसंख्या और सीट के भौगोलिक संरचना को तरजीह देती है. 2008 के परिसीमन रिपोर्ट को लेकर परिसीमन आयोग ने एक किताब ‘चेंजिंग फेस ऑफ इलेक्टॉरल इंडिया: डिलीमिटेशन 2008’ लिखी है.
इसके मुताबिक रोटेशन आधार पर दलितों के लिए रिजर्व सीटों को 2 तरह से आरक्षित किया गया है.
1. दलित कोटे के कुछ सीटों को जाति के संख्या के आधार पर आरक्षित किया गया.
2. बराबर संख्या वाली 3 आसपास की सीटों का अध्ययन कर एक सीट आरक्षित किया गया.
महिलाओं के लिए सीट रिजर्व में भी इसी तरह के फॉर्मूले लागू किए जा सकते हैं. आयोग पहले उन सीटों को तरजीह दे सकता है, जहां पर महिलाएं अधिक संख्या में वोट डालती हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक देश के 70-80 सीटें ऐसी हैं, जहां वोट देने में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का दबदबा है.
अगर वोटिंग के आधार पर महिलाओं के लिए सीट रिजर्व की जाती है, तो वायनाड सीट भी महिलाओं के लिए रिजर्व हो सकती है. 2019 में यहां 81 प्रतिशत महिलाओं ने मतदान किया था, जो पुरुषों के 78 प्रतिशत से 3 फीसदी ज्यादा था.
कब तक हो सकता है परिसीमन?
लोकसभा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक सवाल के जवाब में कहा कि चुनाव के बाद जनगणना और फिर परिसीमन का काम कराया जाएगा यानी जून 2024 में लोकसभा के चुनाव खत्म होंगे.
इसके बाद अगर जनगणना का काम शुरू होता है, तो उसमें कम से कम एक साल का वक्त लग सकता है. जनगणना डेटा आने के बाद ही सरकार परिसीमन का काम शुरू कर सकती है. परिसीमन आयोग के गठन में भी वक्त लगता है.
आयोग के गठन के बाद पिछली बार परिसीमन आयोग ने 5 साल में अपना काम पूरा किया था. ऐसे में माना जा रहा है इस बार में 3-5 साल का समय लग सकता है.