29 देशों के नेताओं का जुटान और करीब 10 करोड़ डॉलर यानी 4100 करोड़ रुपए खर्च के अनुमान के बीच एक सवाल सभी भारतीयों के मन में है. आखिर दिल्ली में हो रहे जी-20 की मीटिंग से भारत को क्या मिलेगा? वो भी तब, जब चीन और रूस के राष्ट्रपति इस कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर रहे हैं.
पिछले साल जी-20 की मेजबानी मिलने के बाद से ही भारत सरकार इसकी तैयारियों में जुट गई थी. एक रिपोर्ट के मुताबिक इसकी तैयारी को लेकर देश के 50 से अधिक शहरों में करीब 200 बैठकों का आयोजन किया गया.
जी-20 विश्व के 20 सबसे ताकतवर देशों का एक समूह है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक, कूटनीतिक और पर्यावरण के मुद्दों पर विचार-विमर्श करता है. साथ ही इसका हल निकालने की कोशिश करता है.
जी-20 की बैठक से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 प्रमुख मुद्दे को उजागर किया है. उन्होंने कहा है कि जी-20 के एक्शन प्लान से सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में तेजी आएगी, जो भविष्य की दिशा को निर्धारित करेगा.
2 दिन की बैठक, 3 विषयों पर बातचीत
जी-20 की बैठक 9 और 10 सितंबर को होगी, इसमें 3 विषयों पर सभी नेता बातचीत करेंगे. ये विषय है- वन अर्थ, वन फैमिली और वन फ्यूचर. वन अर्थ में जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर चर्चा की जाएगी.
वन फ्यूचर के तहत तकनीक आदि मुद्दों पर सभी नेता बातचीत करेंगे. जानकारों का कहना है कि जी-20 की बैठक में यूक्रेन युद्ध का मुद्दा भी उठ सकता है. पिछले डेढ़ साल से यूक्रेन और रूस के बीच जंग जारी है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इस मीटिंग के आयोजन में करीब 10 करोड़ डॉलर यानी 4100 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं. अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा कि खर्च को 12 भागों में बांटा गया था, जिसमें सुरक्षा व्यवस्था, सड़कों की सफाई, फुटपाथों का रखरखाव, स्ट्रीट साइनेज और रौशनी के इंतजाम शामिल हैं.
जी-20 की बैठक से भारत को क्या मिलेगा?
1. दुनिया में भारत की छवि मजबूत होगी- यह मीटिंग ऐसे वक्त में हो रही है, दुनिया के अधिकांश देश यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से 2 गुटों में बंट चुका है. जानकारों का कहना है कि जी-20 की मीटिंग में यूक्रेन युद्ध के मुद्दे को कुंद करना एक बड़ी चुनौती है. क्योंकि, मीटिंग में अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हो रहे हैं, जो रूस के खिलाफ मोर्चा लिए हुए हैं.
नवंबर 2022 में बाली की बैठक में यूक्रेन युद्ध का मुद्दा ही छाया रहा. अंत में कई देशों ने एक प्रस्ताव पास किया और कहा कि वे यूक्रेन युद्ध के खिलाफ है, जिसका रूस और चीन ने भारी विरोध किया.
भारत की कोशिश भी यूक्रेन के मुद्दे से ध्यान भटकाने की है. भारत ने इसके लिए सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के मुद्दे को आगे किया है. भारत का कहना है कि विकासशील देशों, ग्लोबल साउथ के देशों और अफ्रीकी देशों की हाशिए पर पड़ी आकांक्षाओं को मुख्यधारा में लाने की आवश्यकता है.
भारत में आयोजित इस बैठक में अगर वन अर्थ, वन फैमिली और वन फ्यूचर पर कोई हल निकलता है, तो भारत की छवि दुनिया में मजबूत होगी.
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा है- भारत की डेमोग्राफी, डेमोक्रेसी, डाइवर्सिटी और डेवलपमेंट के बारे में किसी और से सुनना एक बात है और उसे प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करना बिल्कुल अलग है. मुझे विश्वास है कि हमारे जी-20 प्रतिनिधि इसे स्वयं महसूस करेंगे.
2. निवेश आने की संभावनाएं- जी-20 में शामिल देश दुनिया की अर्थव्यवस्था पर 75 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं. वजह इसमें शामिल अमेरिका, चीन और रूस जैसे देश हैं. जी-20 की मीटिंग से भारत की कोशिश निवेश बढ़ाने की भी है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जी-20 की मीटिंग में शामिल होने आ रहे अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे. कहा जा रहा है कि इस मीटिंग में छोटे मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टरों पर समझौता हो सकता है.
साथ ही दोनों देशों के बीच GE जेट इंजन डील पर भी बात आगे बढ़ सकती है. इसी तरह भारत की कोशिश फ्रांस और ब्रिटेन के साथ भी सामरिक डील करने की है.
3. दुनिया के देशों में नेतृत्व की धारणा बदलेगी- वर्तमान में मुख्य तौर पर अमेरिका और रूस-चीन ही नेतृत्वकर्ता के रूप में खुद को स्थापित करता रहा है, लेकिन जी-20 की मीटिंग के जरिए भारत भी इस रेस में शामिल हो गया है.
भारत ने जी-20 में अफ्रीकी देशों को शामिल करने की पैरवी की है. चीन और यूरोपियन यूनियन ने अफ्रीकन यूनियन को G20 में शामिल करने के लिए भारत का समर्थन किया है. ऐसे में माना जा रहा है कि इस मीटिंग के बाद इन देशों को स्थाई रूप से जी-20 की सदस्यता मिल सकती है.
अगर ऐसा होता है, तो जी-20 का स्ट्रक्चर ही बदल जाएगा और अफ्रीकी देशों की नजर में भारत एक बड़े पैरोकार के रूप में उभरेगा.
पर इधर राह आसान नहीं…
चीन से सीमा विवाद का मसला- चीन भी जी-20 का सदस्य है, लेकिन उसके राष्ट्रपति इस मीटिंग में शामिल होने के लिए नहीं आ रहे हैं. यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के साउथ एशिया मामलों के सीनियर एक्सपर्ट समीर लालवानी के मुताबिक जिनपिंग का जी20 में नहीं आना भारत और चीन के रिश्ते को सुधारने के कदम में एक बड़ा झटका है.
भारत और चीन के बीच करीब 3 साल से सीमा का विवाद है. हाल ही में दोनों देशों की ओर से कहा गया था कि इसे जल्द ही सुलझाया जाएगा. हालांकि, अभी तक इसको लेकर कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है.
जी-20 की मीटिंग देशों पर दबाव डालने का एक महत्वपूर्ण मंच भी माना जात है. ऐसे में चीन के राष्ट्रपति के नहीं आने से भारत सीमा विवाद पर शायद ही उसका कुछ कर पाए.
संयुक्त बयान जारी कराने की चुनौती- जी-20 की बैठक के बाद सभी देश मिलकर एक संयुक्त बयान जारी करता है. इसी बयान से जी-20 की मीटिंग की सफलता तय की जाती है. भारत के लिए यह एक बड़ी चुनौती है.
अगर बड़े मुद्दों पर सभी सहयोगी सहमत नहीं होता हैं, तो यह खटाई में पड़ सकता है. जानकारों का कहना है कि अगर ऐसा होता है, तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत की किरकिरी हो सकती है. बाली की बैठक में कुछ देशों ने यूक्रेन मामले में अपना बयान जारी कर दिया था.