हाल ही में रिलीज हुई सनी देओल और अमीषा पटेल की फिल्म गदर-2 का जबरदस्त क्रेज देखने को मिल रहा है। लेकिन मध्य प्रदेश के शहडोल में इस फिल्म का क्रेज कुछ परिजनों को भारी पड़ गया। दरअसल, रीवा के सिविल लाइन थाना क्षेत्र में रहने वाली तीन नाबालिक छात्राएं फिल्म गदर-2 देखने के लिए डेढ़ सौ किलोमीटर का सफर तय कर शहडोल पहुंच गईं। मुसीबत तब हो गई जब इस बात से अनजान परिवार उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने थाने पहुच गए। इसके बाद पुलिस ने छात्राओं की लोकेशन ट्रेस करके शहडोल के एक थियेटर में तीनों लड़कियों को पाया। इसके बाद पुलिस ने लड़कियों को परिजन व रीवा पुलिस के हवाले कर दिया। नाबालिग 3 बच्चियां शहडोल के थियेटर में गदर-2 फिल्म देखने आई थीं।
कोचिंग जाने के लिए घर से निकली थीं लड़कियां
मध्य प्रदेश के रीवा के सिविल लाइन थाना क्षेत्र की बृजमोहन धाम कॉलोनी से ये मामला सामने आया है। बताया जा रहा है कि आठवीं में पढ़ने वाली तीन छात्राएं सुबह 7 बजे घर से डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित कोचिंग जाने के लिए निकली थीं। जब छात्राएं अपने तय समय पर घर नहीं पहुंची तो कुछ देर बाद परिजन उनके लापता होने की सूचना लेकर पुलिस थाने पहुंचे। जब छात्राओं के बारे में जानकारी जुटाई गई तो पता लगा कि ऑटो में बैठकर इन तीनों छात्राओं को रीवा के न्यू बस स्टैंड के पास लगे सीसीटीवी कैमरा में शहडोल की बस में बैठते हुए देखा गया।
स्क्वायर मॉल की टॉकीज में गदर-2 देखते मिलीं छात्राएं
जैसे ही पुलिस को जानकारी लगी, तुरंत एक टीम बच्चियों के पीछे भेजी गई। जब पुलिस लोकेशन ट्रेस करते हुए पहुंची तो बच्चियां शहडोल के स्क्वायर मॉल टॉकीज की मिलीं। मौके पर पहुंची पुलिस उन्हें अपने साथ वापस लेकर रीवा पहुंची और परिजनों के हवाले कर दिया। बता दें कि सनी देओल और अमीषा पटेल की फिल्म गदर-2 अभी हाल में ही रिलीज हुई है और फैंस के बीच इसे लेकर जबरदस्त एक्साइटमेंट देखा जा रहा है। फिल्म की रिलीज से पहले ही इसके एडवांस टिकट बुक हो गए और पहले दिन इसे बंपर ओपनिंग मिली है।
पुलिस ने परिजनों को सौंपी बच्चियां
वहीं इस पूरे मामले में महिला थाना प्रभारी आराधना तिवारी का कहना है कि रीवा से मिसिंग हुई तीन लड़कियां शहडोल में मिली हैं, जिन्हें दस्तयाब कर परिजनों व रीवा पुलिस के हवाले कर दिया गया है। लड़कियों ने बताया कि वो कपड़े खरीद कर मूवी देख रही थीं।
गदर 2: मूवी रिव्यू
‘गदर’ को कभी बहुत विचारोत्तेजक या क्रांतिकारी सिनेमा के तौर पर नहीं देखा गया. वो एंटरटेनमेंट के मक़सद से बनी मसाला फिल्म थी. ‘गदर 2’ में भी आप कमोबेश वही चीज़ें पाते हैं. मगर ये थोड़ी आज के माहौल को भुनाने की कोशिश करती हुई लगती है.
Gadar 2 थिएटर्स में रिलीज़ हो चुकी है. देखी जा चुकी है. देखकर ऐसा नहीं लगा कि देखी जानी चाहिए थी. क्योंकि अगर आपने ओरिजिनल वाली ‘गदर’ देखी है, तो ‘गदर 2’ में आप कुछ भी नया नहीं पाएंगे. ‘गदर’ को कभी बहुत विचारोत्तेजक या क्रांतिकारी सिनेमा के तौर पर नहीं देखा गया. वो एंटरटेनमेंट के मक़सद से बनी खालिस मसाला फिल्म थी. ‘गदर 2’ में भी आप कमोबेश वही चीज़ें पाते हैं. मगर ये थोड़ी आज के माहौल को भुनाने की कोशिश करती हुई लगती है.
‘गदर 2’ बचकानी फिल्म है. उस फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं होता, जिस पर आप एक सेकंड को भी यकीन कर लें. बहुत डेटेड. जिसमें कोई लॉजिक नहीं है. कहीं भी कुछ भी हो रहा है. बावजूद इसके बोरिंग नहीं लगती. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ‘गदर- एक प्रेम कथा’ की रीकॉल वैल्यू बहुत मजबूत है. वो फिल्म 2001 में बनी थी. तब की सेंसिब्लिटीज़ के लिहाज से बनी थी. पब्लिक के भी सोचने-विचारने का तरीका अलग था. इनफैक्ट तब की पब्लिक ही अलग थी. उसके बाद देश में इंटरनेट की सुविधा आई. लोगों को दुनियाभर की फिल्में देखने की सहूलियत हासिल हो गई. पूरी दुनिया बदल गई. मगर ‘गदर 2’ के मेकर्स की फिल्ममेकिंग में कोई बदलाव नहीं आया. उन्हें कुछ नया नहीं सूझा. उन्होंने वही पुरानी कहानी थोड़े मिर्च-मसाले और नई पैकेजिंग के साथ दोबारा परोस दी.

2023 के लिहाज से टेक्निकल लेवल पर ये फिल्म बहुत कमज़ोर लगती है. फिल्म में एक छोटा सा वॉर सीक्वेंस है. वो इतना अटपटा और कम यकीनी है कि बताया नहीं जा सकता. कई मौकों पर पहली वाली ‘गदर’ के फुटेज इस्तेमाल किए जाते हैं. पहली फिल्म के ही तीन गाने इस्तेमाल किए गए हैं. म्यूज़िक इकलौती चीज़ है, जो इस फिल्म के पक्ष में काम करती है. ‘मैं निकला गड्डी लेके’, ‘उड़ जा काले कावां’ जैसे गाने अब भी काम करते हैं. इसके लिए मिथुन की तारीफ करनी होगी, जिन्होंने इन गानों को रीमिक्स करने के फेर में खराब नहीं किया. उन्होंने कुछ नए गाने भी बनाए हैं. जैसे ‘खैरियत’ और ‘चल तेरे इश्क में’. वो दोनों गाने भी अच्छे लगते हैं. मतलब वो फिल्म से इतर भी सुने जाएंगे.

फिल्म में एक बहुत सुंदर सीन है. इस सीन में तारा सिंह, पाकिस्तानी जनरल से गीता और क़ुरान में से एक चुनने को कहता है. जनरल साहब गीता चुन लेते हैं. क्योंकि उनकी कनपटी पर बंदूक धरा हुआ था. इस पर तारा सिंह नाराज़ होकर कहता है ‘दोनों नहीं चुन सकते थे.’
‘गदर 2’ के अपने मोमेंट्स हैं, जैसे हैंडपंप वाला सीन. वो फिल्म के सबसे मज़ेदार सीन्स में से एक है. इस बार सनी देओल बिजली का खंभा उखाड़ देते हैं. ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हैं. टैंकर लेकर पाकिस्तानी आर्मी से भिड़ जाते हैं. सनी वो सब करते हैं, जिसके लिए वो जाने जाते हैं. मगर फिल्म के फर्स्ट हाफ में सनी देओल कुछ प्यारी चीज़ें कर जाते हैं. मसलन एक्टिंग. मगर पंगा है कि फिल्म में वही हैं, जो एक्टिंग कर रहे हैं. बाकी कास्ट को देखकर आप सिर पीट लेंगे. अमीषा पटेल ने सकीना का रोल किया है, जो फिल्म के शुरुआती 15 मिनट के बाद गायब ही हो जाती हैं. बीच-बीच में कुछ सेकंड्स के लिए दिखाई देती रहती हैं.

‘गदर 2’ को लेकर मेरी एक कॉन्सपिरेसी थ्योरी है. मुझे लगता है कि अनिल शर्मा ने ‘गदर 2’, अपने बेटे उत्कर्ष शर्मा को बड़े लेवल पर लॉन्च करने के लिए बनाई है. क्योंकि फिल्म में सनी देओल के साथ उनका पैरलेल लीड रोल है. फिल्म के एक बड़े हिस्से में सिर्फ उत्कर्ष शर्मा ही नज़र आते हैं. क्योंकि फिल्म की कहानी ही ऐसी है कि सनी देओल गायब हो जाते हैं. उत्कर्ष ने तारा सिंह के बेटे जीते उर्फ चरणजीत सिंह का रोल किया है. उनके लिए ये बड़ा मौका था. जिसे वो बड़े मार्जिन से चूक जाते हैं. उनका एक डायलॉग आपने ट्रेलर में सुना होगा. फिल्म में कुछ और भी हैं. मगर वो बहुत फिल्मी हैं. याद नहीं रहते. सिमरत कौर ने फिल्म में मुस्कान नाम का कैरेक्टर प्ले किया है. उस किरदार के साथ बहुत सारी चीज़ें होती हैं. मगर वो फिल्म में सही तरीके से ट्रांसलेट नहीं हो पातीं. इसलिए सिमरत का काम ठीक होने के बावजूद बहुत प्रभावित नहीं कर पाता. मनीष वाधवा ने पाकिस्तानी जनरल का रोल किया है. उनका रोल वैसा ही है, जैसा हिंदी फिल्ममेकर्स को लगता है कि पाकिस्तानी जनरल होते होंगे. क्रूर, बेवकूफ, कमज़ोर, हिंसक. हिंदुओं और हिंदुस्तानियों के दुश्मन.

‘गदर 2’ को देखना बड़ा रोचक अनुभव था. क्योंकि आप फिल्म को देख रहे हैं. हर छोटी-बड़ी चीज़ नोटिस कर रहे हैं. अतिश्योक्तियों पर हैरान हो रहे हैं. बेवकूफियों पर हंस रहे हैं. इग्नोरेंस पर नाराज़ हो रहे हैं. देशभक्ति के पाठ से पक रहे हैं. मगर मज़ा आ रहा है. ‘गदर 2’ ऐसी फिल्म नहीं है, जिसे देखा ही जाना चाहिए. क्योंकि वो आपकी लाइफ में कुछ भी नया जोड़ती या बदलती नहीं है. कुछ मौकों पर प्रॉब्लमैटिक भी होती है. जिस पर सिनेमाघर में तालियां पड़ती सुनाई आईं. वहां खल जाती है. क्योंकि इंडिया में लोग सिनेमा को सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए नहीं देखते.