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बांध‚ बैराज और बाढ़…….

UB India News by UB India News
August 12, 2023
in VISHESH KHABRE, कृषि, ब्लॉग
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बांध‚ बैराज और बाढ़…….

भारत में बरसात और हिमपातों से मिले सालाना लगभग ४०० मिलियन हेक्टर मीटर पानी में से ९० प्रतिशत से ज्यादा बिना प्रबंधित उपयोग के बह जाता है। बेकार बहता अप्रबंधित बरसाती पानी नगरों महानगरों के भीषण जलप्लावनों का कारण भी बनता है। इसलिए भी बरसाती जल का संग्रहण व नियंत्रित प्रबंधन भी जरूरी है। इन दोनो उद्देश्यों में बांध व बैराज हमारी मदद करते हैं। किंतु इस बार की पैंतालीस वर्षों के रिकार्ड को धराशायी करने वाली यमुना जी की बाढÃ जब दिल्ली मेंे लाल किला‚ आगरा में ताजमहल परिसर और मथुरा के मंदिरों को छूती रही तो अधिकांश मामलों में बाढ का कहर और व्यापकता के लिए बैराज और बांधों के मत्थे काफी दोष मढा गया।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का तो आरोप यह था कि दिल्ली यमुना जल में हरियाणा के साजिश के तहत डूबी। उनका आरोप था कि हथिनीकुंड बैराज से तीन तरफ दिल्ली‚ ईस्ट कैनाल व वेस्ट कैनाल के लिए पानी निकल सकता है‚ किन्तु दिल्ली में बाढ की स्थिति होने पर भी हरियाणा ने हथिनीकुंड से उप्र की तरफ जाने वाली ईस्ट कैनाल में पानी न छोड जानबूझ कर १२ व १३ जुलाई २०२३ को पानी दिल्ली की तरफ छोडा था। हरियाणा का जबाब था जब हथिनीकुंड बैराज से एक लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी छोडना हो तो वह कैनालों में नहीं छोडा जा सकता है। भारी जलराशि रोकने से पीछे वालों को खतरा होता है इसलिए पानी सीधे यमुना में छोडा गया। बाढ से खुद हथिनीकुंड को भी नुकसान होने की खबरें भी आ रही हैं।

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जब दिल्ली में यमुना ने अपने जल स्तर का ४५ साल पुराना रिकार्ड तोडा तो केजरीवाल ने गृहमंत्री अमित शाह को भी पत्र लिख यह मांग की थी कि हथिनीकुंड बैराज से पाना छुडवाना रोका जाए‚ मगर केजरीवाल जब हरियाणा को दोषी बना रहे थे तो प्रतिपक्षियों ने उनको तो बांधों और बैराज के अंतर समझने की भी सीख दी थी। संकेत था कि बैराज बांध जलाशयों की तरह न तो जल संग्रहण की क्षमता रखते हैं और न उसके लिए बनाए जाते हैं। संभवतः इस सीमा को समझते हुए उन्नीस जुलाई को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का यह बयान भी आया है कि हरियाणा सरकार सक्रियता से हथिनीकुंड बैराज के पीछे एक बांध बनाने पर विचार कर रही है। इसके लिए वह हिमाचल सरकार से भी बात करेगी। इससें हथिनीकुंड बैराज की ज्यादा पानी न रोके रख सकने की समस्या से भी बचा जा सकेगा। समस्या समाधान के लिए निगाह निर्माणाधीन लखवाड व्यासी व किसा जैसे बांधों पर भी है। हालांकि दिल्ली तक यमुना के राह में पहले से ही आसन‚ डाकपत्थर‚ गोकुल‚ हथिनीकुंड‚ ओखला‚ ताजेवाला‚ वजीराबांद जैसे बैराज हैं व ऐसे ही कुछ बांध भी हैं। जिन–जिन नदियों में बैराज व बांधों से अवरोधक बन जाते हैं। उन नदियों में बैराजों के बाद पहुंचने वाली जलराशि बैराज नियंत्रकों के मुट्ठी में हो जाती है। बैराजों के नियंत्रक चाहें तो वो आगे की नदियों को लगभग जलविहिन कर दें या चाहें तो बाढ में भी उनमें पानी छोड उनकी घातकता बढा दें।

॥ बैराजों से आपेक्षित कार्यवाहियां मुख्यतः हम छोडने व आवंटन से परिभाषित कर सकते हैं। जब बैराज से बाढ के पानी निकालने की अफरा–तफरी होती है तो हथेली से गरम आलू की तरह पानी छोडा जाता है क्योंकि बांधों की तरह बैराजों में जलाशय नहीं बनाए जाते हैं। जब पानी की तंगी होती है तो पानी को अलग नहरों या राहों सेे आवंटित किया जाता है। उदाहरणार्थ गर्मियों में दिल्ली सरकार हरियाणा से अपने लिए बढा पानी का आवंटन चाहती है व बाढ में वहां बैराज से कम पानी का छोडा जाना चाहती है । सूखे के मौसम में ताजेवाला से पानी न छोडे जाने पर ताजेवाला और दिल्ली के बीच के कुछ कुछ हिस्सों में यमुना लगभग जलाशून्य हो जाती है। बैराजों से लिफ्ट परियोजनाओं में भी पानी पहुंचाने में सहायता मिलती है। निःस्संदेह बंाध बाढ के समय भी अपने जलाशयों में पानी रोक व बाद में धीरे–धीरे वापस नदी में छोड बाढ के फैलाव‚ उनसे होने वाली क्षति व समय को टालने में सहायक होते हैं‚ किन्तु अधिकांश बांध मुख्यतः ऊर्जा व कृषि उत्पादन में बढोतरी के लक्ष्यों को लेकर बनते हैं। इन उदाहरणों की भी कमी नहीं है जब इनसे छोडे गए पानी के कारण बाढ का ज्यादा कहर टूटता है। १८ जुलाई २०२३ को जीवी बांध श्रीनगर गढवाल द्वारा पहली खेप में अलकनंदा नदी में तीन हजार क्यूसेक पानी छोडे जाने के बाद हरिद्वार में गंगा नदी का पानी खतरे के निशान के और नजदीक पहुंच गया था। इससे हरिद्वार में भीमगोडा बैराज का दस नंबर गेट भी क्षतिग्रस्त हो गया था।

कई बार बांध बैराज की इंजीनियरिंग सुरक्षा के लिए भी बांध बैराजों से पानी छोडना पड जाता है। ११ अगस्त १९७९ को लगातार बरसात के चलते मच्छू बांध टूटने के बाद मौरवी में भयंकर बाढ आ गई थी। तब १५०० से २५००० तक लोगों के मरने की बात की जा रही है। पूरा मौरबी शहर ही तबाह हो गया था। अभी ही १५ जुलाई २०२३ को यमुना के बाढ में बागपत का सुभानपुर गांव के पास का अलीपुर बांध टूट गया था। पचास घंटों के मरम्मत के काम से उसमें फिर से पानी रुकने लायक स्थिति लाई जा सकी थी।

लोगों का तर्क होता है कि मैदानों को बाढ़ से बचाने के लिए और ज्यादा बांध बनाए जाने चाहिए। संभवतया मुख्यमंत्री खट्ट की सोच में भी यह हो किंतु बांध के कारण नदियों में प्रचुर मात्रा में पानी के अभाव और अविरल प्रवाह में अवरोधों के कारण स्वतः प्रदूषण मुक्ति पाने की नदियों की ताकत में भी कमी आई है। बांध बैराजों का मसला ऐसा है कि न निगलते बने न उगलते। ऊपरी क्षेत्रों राज्यों या देशों में बांध बनने पर आरोप लगाया जाता है कि हमारा पानी रोक दिया गया है और जब वहां से पानी छोड दिया जाता है तो कहा जाता है कि हमारे यहां बाढ की स्थितियां पैदा कर दी गई हैं। यदि बंद रहे तो पीछे के क्षेत्रों में जलप्लावन की समस्या बढाएं। आगे खुले तो बाढ खेतों बस्तियों को जलमग्न कर दे। भारत नेपाल या भारत बांग्ला देश के बीच भी ऐसे सवाल उभरते रहे हैं। इसी १५–१६ जुलाई को नेपाल ने गिरजा‚ सरयू व शारदा बैराज से दो पालियों में पांच लाख क्यूसेक पानी छोडा था तो सिंचाई विभाग के अनुसार दोहरीघाट व अन्य इलाकों में बाढ का खतरा मंडराने लगा था।

जब दिल्ली में यमुना ने अपने जल स्तर का ४५ साल पुराना रिकार्ड तोडा तो केजरीवाल ने गृहमंत्री अमित शाह को भी पत्र लिख यह मांग की थी कि हथिनीकुंड बैराज से पाना छुडवाना रोका जाए‚ मगर केजरीवाल जब हरियाणा को दोषी बना रहे थे तो प्रतिपक्षियों ने उनको तो बांधों और बैराज के अंतर समझने की भी सीख दी थी। संकेत था कि बैराज बांध जलाशयों की तरह न तो जल संग्रहण की क्षमता रखते हैं और न उसके लिए बनाए जाते हैं

 

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