मणिपुर मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को घेर रखा है। अब वह इसके दायरे को बढ़ाने की तैयारी में है। इसी के तहत विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. 26 जुलाई से पारित बिलों को कानूनी चुनौती दे सकता है। यह वही दिन है जब उसकी ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने औपचारिक तौर पर स्वीकार किया था। विपक्षी गुट की दलील है कि इस तारीख के बाद आए बिलों पर विस्तृत चर्चा नहीं हुई। लिहाजा, उसने इन्हें सवालों के घेरे में बताया है।
पिछले सप्ताह बुधवार को दोपहर 12 बजे के बाद से दोनों सदनों ने छह विधेयक पारित किए हैं। इसके बावजूद विपक्ष ने इस आधार पर उनके पारित होने को चुनौती दी कि उसके पास महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने के लिए ‘विधायी क्षमता’ नहीं है। पहले उसे इस मामले में सदन को संतुष्ट करना होगा।
क्या है सरकार और विपक्ष का कहना?
विपक्ष दलों के सूत्रों ने कहा कि नेताओं ने सोमवार को एक बैठक के दौरान सरकारी वार्ताकारों को यह बात बताई। लेकिन, माना जाता है कि सरकार ने कम से कम दो पिछले उदाहरणों का हवाला दिया है। ये 2018 और 1972 के हैं। तब सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के बावजूद बिल पारित किए गए थे। हालांकि, विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के नेताओं ने कहा कि तब दोनों मामलों में सरकार और विपक्ष के बीच आपसी समझ के बाद बिल पारित किए गए थे। यह स्थिति आज मौजूद नहीं है। सरकार को अभी संसद में मणिपुर मुद्दे पर गतिरोध का सामना करना पड़ रहा है।
यह और बात है कि I.N.D.I.A. की बैठक में अभी तक कानूनी चुनौती पर विस्तृत चर्चा नहीं हुई है। लेकिन, सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने बताया है कि जब सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करती है तो पर्याप्त बहस और चर्चा के बिना पारित किए गए बिल सवालों के घेरे में होते हैं। इसका जवाब देने के लिए सत्ता पक्ष को बाध्य किया जाएगा।