इडि़यन नेशनल डे़वलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस (इंडि़या) के २१ सांसदों का एक प्रतिनिधिमंड़ल दो दिवसीय दौरे के बाद हिंसा प्रभावित मणिपुर से लौट आया है। पूर्वोत्तर का यह सूबा करीब तीन महीनों से जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन हिंसा को रोकने में पूरी तरह विफल रहा है। प्रतिनिधिमंड़ल में शामिल कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया कि मणिपुर में अनिश्चतता और भय का माहौल है और राज्य सरकार वहां गंभीर स्थिति से निपटने के लिए मजबूत कदम नहीं उठा रही है। यह ठीक है कि मणिपुर में तीन मई को जातीय हिंसा भड़़की और अब तक करीब १५० से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। अगर राज्य सरकार हिंसा रोकने में नाकाम रहती है तो विपक्षी दल भी तीन महीने बाद नींद से जगा है। हिंसा भड़़कने के तीन महीने बाद विपक्षी दलों का प्रतिनिधिमंड़ल राज्य की जमीनी हालात की पड़़ताल करने मणिपुर पहुंचा। मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता को मजबूत बनाने और २०२४ के लोक सभा चुनाव के लिए साझा रणनीति बनाने के लिए पटना और बेंगलुरु में संपन्न बैठकों में मणिपुर के सवाल पर प्रधानमंत्री मोदी को घेरने के दौरान प्रतिनिधिमंड़ल ने इंफाल में सूबे की राज्यपाल अनुसुइया उइके से मुलाकात की और उन्हें ज्ञापन सौंपा। यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि देश और समाज में एक तरह की स्थिति हमेशा नहीं रहती है। पिछले १८ जुलाई से राज्य में गंभीर हिंसा या वारदात की घटना नहीं हुई है। लेकिन मणिपुर के मामले में सबसे बड़़ा और अहम सवाल यह है कि मैती और कुकी समुदाय के बीच अविश्वास की खाई बहुत गहरी हो गई है। इस खाई को पाटना राज्य और केंद्र सरकार के लिए बहुत बड़़ी चुनौती है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने राज्यपाल उइके से बातचीत के क्रम में इस ओर इशारा भी किया है। अगर विपक्षी दलों को हिंसा प्रभावित मणिपुर की चिंता है तो उन्हें दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सरकार और प्रशासन का सहयोग करना चाहिए। विपक्ष का काम केवल सरकार की आलोचना और जले पर नमक छिड़़कना नहीं है बल्कि इस तरह की गंभीर स्थिति में उसे सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए। मणिपुर सीमावर्ती राज्य है और विदेशी एजेंसियां भी वहां सक्रिय हैं। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को राज्य के सभी हितधारकों से बातचीत करनी चाहिए और शांति बहाली की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए॥।
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