चंद्रयान अब धरती से काफी दूर निकल गया है। आधी रात करीब 12 बजकर 15 मिनट पर चंद्रयान-3 ने धरती की कक्षा से चांद की दिशा में कदम बढ़ा दिया। जी हां, इस समय अपना यान पृथ्वी की कक्षा से बाहर होकर चांद की कक्षा में जाने के लिए आगे बढ़ रहा है। इसरो ने ग्राफिक्स के जरिए समझाया है कि धरती की कक्षा से चांद की कक्षा में जाने का पाथ किस तरह है। जैसे ही चंद्रयान मून की कक्षा में पहुंचेगा, उसकी परिक्रमा करता हुआ करीब बढ़ता जाएगा। इसरो ने बताया है कि 5 अगस्त 2023 को अपना यान चांद की कक्षा में पहुंच सकता है। सोशल मीडिया पर लोग इसरो को बधाई और आगे के लिए शुभकामनाएं दे रहे हैं। कई लोगों ने ट्विटर पर लिखा है, ‘वाह अच्छी खबर… अब 5 अगस्त का इंतजार है…बेस्ट ऑफ लक, ईश्वर से प्रार्थना है।’
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने आज बताया कि चंद्रयान-3 पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकल गया है और अब चंद्रमा की ओर बढ़ रहा है। अपने यान को पृथ्वी की कक्षा से ऊपर उठाकर चंद्रमा की ओर बढ़ाने की प्रक्रिया आज तड़के अंजाम दी गई। इससे चंद्रयान-3 पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलकर ‘ट्रांसलूनर’ कक्षा में चला गया और चंद्रमा की कक्षा की ओर बढ़ने लगा है। उसे चंद्रमा की कक्षा तक पहुंचने में करीब पांच दिन लगेंगे।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा, ‘इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क में चंद्रयान-3 को चंद्रमा के करीब ले जाने की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। इसरो ने चंद्रयान को ‘ट्रांसलूनर’ कक्षा में प्रवेश कराया।’ उसने कहा, ‘चंद्रयान-3 ने पृथ्वी के आसपास अपनी कक्षाओं का चक्कर पूरा कर लिया है और अब वह चंद्रमा की ओर बढ़ रहा है। अगला स्टेशन मून है। उसके चंद्रमा के करीब पहुंचने के बीच पांच अगस्त 2023 को लूनर-ऑर्बिट इंसर्शन की प्रक्रिया को अंजाम देने की योजना है।’
इसरो ने कहा है कि चंद्रयान-3 इसी 23 अगस्त को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने की कोशिश करेगा। इससे पहले, चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च किए जाने के बाद से उसे कक्षा में ऊपर उठाने की प्रक्रिया को पांच बार सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया था।
इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 को पृथ्वी की ऑर्बिट से चांद की तरफ भेजा। इसे ट्रांसलूनर इंजेक्शन (TLI) कहा जाता है। इससे पहले चंद्रयान ऐसी अंडाकार कक्षा में घूम रहा था, जिसकी पृथ्वी से सबसे कम दूरी 236 km और सबसे ज्यादा दूरी 1,27,603 km थी। अब 5 अगस्त को ये चंद्रमा की ऑर्बिट में पहुंचेगा और 23 अगस्त को चंद्रमा पर लैंड करेगा।
ट्रांसलूनर इंजेक्शन के लिए बेंगलुरु में मौजूद इसरो के हेडक्वार्टर से वैज्ञानिकों ने चंद्रयान का इंजन कुछ देर के लिए चालू किया। इंजन फायरिंग तब की गई जब चंद्रयान पृथ्वी से 236 Km की दूरी पर था। इसरो ने कहा- चंद्रयान-3 पृथ्वी के चारों ओर अपनी परिक्रमा पूरी कर चंद्रमा की ओर बढ़ रहा है। इसरो ने अंतरिक्ष यान को ट्रांसलूनर कक्षा में स्थापित कर दिया है।
चंद्रयान-3 में लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल हैं। लैंडर और रोवर चांद के साउथ पोल पर उतरेंगे और 14 दिन तक वहां प्रयोग करेंगे। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में रहकर धरती से आने वाले रेडिएशन्स का अध्ययन करेगा। इस मिशन के जरिए इसरो पता लगाएगा कि चांद की सतह पर कैसे भूकंप आते हैं। यह चंद्रमा की मिट्टी का अध्ययन भी करेगा।
अब तक का चंद्रयान-3 का सफर…
- 14 जुलाई को चंद्रयान-3 को 170 km x 36,500 km के ऑर्बिट में छोड़ा गया।
- 15 जुलाई को पहली बार ऑर्बिट बढ़ाकर 41,762 km x 173 km किया गया।
- 17 जुलाई को दूसरी बार ऑर्बिट बढ़ाकर 41,603 km x 226 km किया गया।
- 18 जुलाई को तीसरी बार ऑर्बिट बढ़ाकर 5,1400 km x 228 km किया गया।
- 20 जुलाई को चौथी बार ऑर्बिट बढ़ाकर 71,351 x 233 Km किया गया।
- 25 जुलाई को पांचवी बार ऑर्बिट बढ़ाकर 1.27,603 km x 236 km किया गया।
- 31 जुलाई और 1 अगस्त की मध्यरात्रि पृथ्वी की कक्षा छोड़कर चंद्रमा की बढ़ गया।
अब चंद्रयान मिशन से जुड़े 4 जरूरी सवालों के जवाब…
1. इस मिशन से भारत को क्या हासिल होगा?
इसरो के एक्स साइंटिस्ट मनीष पुरोहित कहते हैं कि इस मिशन के जरिए भारत दुनिया को बताना चाहता है कि उसके पास चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग करने और रोवर को वहां चलाने की काबिलियत है। इससे दुनिया का भारत पर भरोसा बढ़ेगा जो कॉमर्शियल बिजनेस बढ़ाने में मदद करेगा। भारत ने अपने हेवी लिफ्ट लॉन्च व्हीकल LVM3-M4 से चंद्रयान को लॉन्च किया है। इस व्हीकल की काबिलियत भारत पहले ही दुनिया को दिखा चुका है।
बीते दिनों अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस की कंपनी ‘ब्लू ओरिजिन’ ने इसरो के LVM3 रॉकेट के इस्तेमाल में अपना इंटरेस्ट दिखाया था। ब्लू ओरिजिन LVM3 का इस्तेमाल कॉमर्शियल और टूरिज्म पर्पज के लिए करना चाहता है। LVM3 के जरिए ब्लू ओरिजिन अपने क्रू कैप्सूल को प्लान्ड लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) स्पेस स्टेशन तक ले जाएगा।
2. साउथ पोल पर ही मिशन क्यों भेजा गया?
चंद्रमा के पोलर रीजन दूसरे रीजन्स से काफी अलग हैं। यहां कई हिस्से ऐसे हैं जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती और तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक चला जाता है। ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यहां बर्फ के फॉर्म में अभी भी पानी मौजूद हो सकता है। भारत के 2008 के चंद्रयान-1 मिशन ने चंद्रमा की सतह पर पानी की मौजूदगी का संकेत दिया था।
इस मिशन की लैंडिंग साइट चंद्रयान-2 जैसी ही है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर। लेकिन इस बार एरिया बढ़ाया गया है। चंद्रयान-2 में लैंडिंग साइट 500 मीटर X 500 मीटर थी। अब, लैंडिंग साइट 4 किमी X 2.5 किमी है।
अगर सब कुछ ठीक रहा तो चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट-लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला स्पेसक्राफ्ट बन जाएगा। चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी स्पेसक्राफ्ट भूमध्यरेखीय क्षेत्र में, चंद्र भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में कुछ डिग्री अक्षांश पर उतरे हैं।
3. इस बार लैंडर में 5 की जगह 4 इंजन क्यों?
इस बार लैंडर में चारों कोनों पर लगे चार इंजन (थ्रस्टर) तो हैं, लेकिन पिछली बार बीचो-बीच लगा पांचवां इंजन हटा दिया गया है। फाइनल लैंडिंग दो इंजन की मदद से ही होगी, ताकि दो इंजन आपातकालीन स्थिति में काम कर सकें। चंद्रयान 2 मिशन में आखिरी समय में पांचवां इंजन जोड़ा गया था। इंजन इसलिए हटाया गया है, ताकि ज्यादा फ्यूल साथ ले जाया जा सके।
4. 14 दिन का ही मिशन क्यों?
मनीष पुरोहित ने बताया कि चंद्रमा पर 14 दिन तक रात और 14 दिन तक उजाला रहता है। जब यहां रात होती है तो तापमान -100 डिग्री सेल्सियस से भी कम हो जाता है। चंद्रयान के लैंडर और रोवर अपने सोलर पैनल्स से पावर जनरेशन करेंगे। इसलिए वो 14 दिन तो पावर जनरेट कर लेंगे, लेकिन रात होने पर पावर जनरेशन प्रोसेस रुक जाएगी। पावर जनरेशन नहीं होगा तो इलेक्ट्रॉनिक्स भयंकर ठंड को झेल नहीं पाएंगे और खराब हो जाएंगे।
भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा
अगर सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिली यानी मिशन सक्सेसफुल रहा तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। अमेरिका और रूस दोनों के चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने से पहले कई स्पेस क्राफ्ट क्रैश हुए थे। चीन 2013 में चांग’ई-3 मिशन के साथ अपने पहले प्रयास में सफल होने वाला एकमात्र देश है।