कहने को तो राजनीतिक जगत में इस बात की चर्चा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के बीच बनी सहमति के साथ मंत्रिपरिषद विस्तार को फिलहाल प्राथमिकता में नहीं लिया जा रहा है। वह भी तब जब इस मसले पर राहुल गांधी तक पहल करते हुए सीएम नीतीश कुमार से भी पूछ डाला था। यहां तक कि पत्रकारों तक ने भी जब पूछा तो तेजस्वी यादव की तरफ इशारा किया करते थे। अब जब पत्रकार पूछते हैं तो मुख्यमंत्री का तकिया कलाम ‘समय पर हो जायेगा’। हालांकि इसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं। जानिए क्यों और कौन लगा रहा है मंत्रिपरिषद विस्तार पर ग्रहण!
सवर्ण की दावेदारी का ग्रहण!
राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि मंत्रिपरिषद विस्तार पर इस बात का ग्रहण है कि संयोग वश सवर्ण विधायकों के नाम मंत्री बनने की संभावित सूची में आ रहे हैं। यह स्थिति कांग्रेस के साथ-साथ राजद की भी बनी हुई है। अब चुकी पिछड़ों की राजनीति करने वाले दलों की राजनीति में सवर्ण खानापूर्ती या कह लें कि ए टू जेड समीकरण के तुष्टिकरण के अभिप्राय मात्र है। इसलिए इस विस्तार को लेकर अगंभीर बने रहना भी एक रणनीति का हिस्सा है।
राजद से बनने वाले मंत्री
राष्ट्रीय जनता दल के दो मंत्रियों ने अपने पद से इस्तीफा दिया था और दोनों सवर्ण ही थे। कृषि मंत्री सुधाकर सिंह जो राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगतानंद सिंह के बेटे हैं, वे सीएम के कार्यों से असहमति जताए जाने के कारण इस्तीफा देना पड़ा। विधि मंत्री कार्तिकेय सिंह चार्जशीटेड थे, इसलिए इस्तीफा देना पड़ा। इन दोनों जगहों को भरे जाने को लेकर जो संभावित चेहरे हैं उनमें सवर्ण चेहरों के ही नाम आ रहे हैं।
कांग्रेस की ओर से भी सवर्ण
मंत्रिमंडल बनते समय कांग्रेस से दो मंत्रियों को शपथ दिलाया गया था। तब विवाद यह भी सामने आया था कि कांग्रेस दो और मंत्री पद चाहती थी, पर गठबंधन की राजनीति में केवल एक और दिए जाने पर सहमति बनाई जा रही थी। इस वजह से मामला टाल दिया गया था। अब जिन नामों की चर्चा आ रही है, इसमें दो सवर्ण विधायकों का नाम आ रहा है।
मुंबई बैठक के बाद होगा विस्तार!
राजनीतिक गलियारों में एक चर्चा यह भी है कि कांग्रेस पर दवाब की राजनीति बनाई जा रही है। जिस तरह से बेंगलुरू में कांग्रेस ने विपक्षी एकता मुहिम को हाईजेक कर लिया। और नीतीश कुमार की एक न सुनी गई। न नाम को ले कर, न राजनीतिक एजेंडा को लेकर और ना ही कन्वेनर की घोषणा की गई। एक दवाब की राजनीति इसलिए कि मुंबई में होने वाली विपक्षी एकता मुहिम की बैठक में नीतीश कुमार का नाम कन्वेनर के लिए घोषित हो जाए।
तू डाल डाल तो नीतीश कुमार पात पात की राजनीति कर रहे हैं। ऐसा इसलिए कि जो मुख्यमंत्री राजद के मंत्री के निर्णय को पलट सकते हैं, रद्द कर सकते हैं वे उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर मंत्रिमंडल विस्तार करने का दवाब बना सकते हैं, सूची मांग सकते हैं। बहरहाल अंदरखाने का सच तो ये है कि सीएम नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की मर्जी पर टिका है मंत्रिमंडल विस्तार। और हाल के दिन कहा है ‘अरे , इ सब कोई मसला है ,समय पर हो जाएगा।’