बिहार मंत्रिमंडल के साथ ही आयोग और बोर्ड के गठन में भी कांग्रेस को झटका लगा है। 7 वर्षों बाद राज्य सरकार भंग बोर्ड और आयोग का पुनर्गठन कर रही है। अभी राज्य में 28 बोर्ड-आयोग ऐसे हैं जिनमें पहले की सरकार भी अपने करीब 10 हजार से अधिक नेताओं-कार्यकर्ताओं को पावर का सुख दिलाती रही है। वर्तमान नीतीश सरकार ने अब तक उन 28 में से 10 का पुनर्गठन किया है जिसमें से 9 के अध्यक्ष का पद जदयू-राजद ने आपस में बांट लिए हैं।
5 के अध्यक्ष जदयू नेता हैं तो 4 के अध्यक्ष राजद के हैं। पर कांग्रेसियों को अब तक एक भी बोर्ड-आयोग का कमान संभालने का मौका नहीं मिल पाया है। अभी 18 बोर्ड-आयोग का पुनर्गठन होना है। ये देखते हुए कांग्रेसियों की निगाह उनके गठन पर लगी हुई है। बिहार मंत्रिमंडल में भी दो मंत्रियों को शामिल करने के लिए प्रदेश कांग्रेस के नेता लगातार प्रयासरत हैं। 8 महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैं और सभी दल उसकी तैयारी में लग गए हैं।
20 सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति और जेल निगरानी समिति में बड़ी संख्या में नेता शामिल होंगे
20 सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति ऐसी समिति होती है जिसमें राज्य स्तर से लेकर जिला एवं प्रखंड स्तर तक गठन होता है। राज्य स्तरीय समिति के अध्यक्ष मुख्यमंत्री खुद होते हैं तो जिला स्तरीय समिति के अध्यक्ष जिला के संबंधित प्रभारी मंत्री होते हैं। इसमें हर समिति में छहों दलों के प्रतिनिधित्व होने पर हर समिति में 15 सदस्यों का मनोनयन हो तो राज्य से लेकर प्रखंड स्तर तक करीब 8600 नेता-कार्यकर्ताओं की सत्ता में सीधी भागीदारी हो जाएगी। उसी तरह जेल निगरानी समिति जिला स्तर पर गठित होती है। हर जिले में 15 सदस्यों का मनोनयन होने पर 570 नेताओं के इस समिति में शामिल होने का मौका मिल सकता है।
अधिकतम 10 नेताओं को सत्ता में भागीदार बनाने वाले वैसे 16 बोर्ड-निगम जिनका अभी पुनर्गठन होना है
सवर्ण आयोग, मछुआरा आयोग, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, उपभोक्ता संरक्षण आयोग, धार्मिक न्यास परिषद, खादी ग्रामोद्योग आयोग, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, जेपी सेनानी सलाहकार परिषद, नागरिक परिषद, भोजपुरी अकादमी, मगही अकादमी, अंगिका अकादमी, उर्दू अकादमी, राज्य सूचना आयोग, कृषि आयोग, खाद्य सुरक्षा सलाहकार परिषद।