लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के खिलाफ कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। सदन में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जिसका इंडि़या गठबंधन के दलों ने समर्थन किया है। ऐसा माना जा रहा है कि इस पर अगले सप्ताह चर्चा और वोटिंग होगी। मणिपुर हिंसा को लेकर मॉनसून सत्र के पहले दिन से संसद के दोनों सदनों में गतिरोध बना हुआ है। लोकतंत्र में विपक्ष को सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का अधिकार है लेकिन यह भी गौर करने वाली बात है कि सरकार मणिपुर पर विस्तृत और व्यापक तौर पर चर्चा के लिए तैयार थी। गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य सभा में प्रतिपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे और लोक सभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। विपक्ष का यह रुûख भी संसदीय परंपरा का उल्लंघन करनै जैसा ही है। अब यह बात समझ से परे है कि आखिर विपक्षी दल चर्चा करने से पीछे हट क्यों गए। आखिर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल संसद के दोनों सदनों में हंगामा खड़़ा करके क्या हासिल करना चाहते हैं। इस बात से तो यही संकेत मिलता है कि विपक्षी दलों को मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के प्रति कोई चिंता नहीं है। उन्हें वहां पीडि़़त जनता से किसी तरह की संवेदनशीलता और सहानुभूति नहीं है। वे इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा करके राजनीतिक रोटी सेंकना चाहते हैं। विपक्षी दलों की यह मांग न्याय संगत और विवेक सम्मत नहीं था कि चर्चा से पहले प्रधानमंत्री सदन में अपना वक्तव्य दें। प्रधानमंत्री को सदन में वक्तव्य देने के लिए विपक्ष मजबूर नहीं कर सकता है। जब सरकार विपक्ष की मांग को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हुई तो विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का सहारा लिया। इस बीच संसद में जारी हंगामे को देखते हुए सरकार विधायी कार्यों को संपन्न करने में जुटी हुई है। सदन में प्रस्तुत विधेयकों पर विचार–विमर्श करना विपक्षी दलों का प्रमुख काम है‚ लेकिन इस महत्वपूर्ण दायित्व का भी निर्वाह वह नहीं कर रहा है। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान पीएम को सबसे अंत में अपना वक्तव्य देना है। अगर वह अपनी वाकपटुता और तर्कों से विपक्ष के सभी आरोपों को धराशायी करने में सफल हो जाते हैं तो विपक्ष को मुंह की खानी पड़़ सकती है ।
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