कुछ दिन पहले जब विपक्ष ने बेंगलुरु में महाबैठक की तो ठीक उसी दिन बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की दिल्ली में मीटिंग हुई हुई जिसमें 38 दल शामिल हुए. एनडीए की इस बैठक के दौरान एक क्षण ऐसा आया जब लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने जब प्रधानमंत्री मोदी के पैर छुएं तो पीएम ने उन्हें भींचकर गले से लगा लिया. देखते ही देखते यह तस्वीर वायरल हो गई और इसके सियासी मायने निकाले जाने लगे.
तस्वीरों से अटकलें
इस बैठक के दौरान चिराग ने न केवल पीएम मोदी के पांव छुएं बल्कि अपने चाचा और केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस के पैर भी छुंए. पारस ने भतीजे चिराग को गले लगाते हुए उन्हें आशीर्वाद दिया.इसके बाद चिराग ने कहा कि वो मेरे पिता जैसे हैं, वहीं पारस ने भी चिराग को अपना परिवार बताया. इस बैठक के बाद आई तस्वीरों से ऐसा लगा कि चिराग और चाचा पारस जल्द ही एक हो सकते हैं और दोनों की पार्टियों का मर्जर हो सकता है. लेकिन जल्द ही ऐसी अटकलों पर विराम लग गया जब चाचा पारस ने कहा कि पैर छूने से दिल नहीं मिलेंगे.
पशुपति पारस की दो टूक
इससे पहले चिराग ने हाजीपुर की उस लोकसभा सीट पर दावा ठोक दिया जहां से पारस सांसद हैं. यह सीट रामविलास पासवान की परंपरागत सीट मानी जाती है. चिराग ने कहा कि ये मेरा पिता की सीट है जहां से हर हाल में लोजपा (रामविलास) ही लड़ेगी. चिराग के बयान के बाद पारस ने भी बयान देने में देरी नहीं लगाई और कहा, ‘मैं जब तक राजनीति में जिंदा हूं, तब तक हाजीपुर की जनता की सेवा करता रहूंगा. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने चिराग लड़े या कोई और, लेकिन मैं चुनाव जरूर लडूंगा वो भी एनडीए गठबंधन से. जिनको मैदान में आना है आ जाए.’ यानि पारस ने साफ कर दिया कि भले ही वह चिराग से गले मिले हों लेकिन हाजीपुर सीट वह किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे.
चिराग की नरमी और तल्खी
वहीं रविवार को जब चिराग जब दिल्ली से पटना पहुंचे तो एयरपोर्ट पर उनसे चाचा पशुपति पारस और लोकसभा सीट को लेकर सवाल किया गया. चिराग ने जवाब देते हुए कहा कि चाचा के बारे में दो ढाई साल से कोई टिप्पणी नहीं की मेरी घर और परिवार से व्यक्तिगत लड़ाई नहीं है हमें बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट की चिंता है.
रविवार शाम को चिराग ने चाचा पर निशाना साधा और साथ ही एनडीए की छवि को धूमिल करने का आरोप लगा दिया. चिराग ने कहा चाचा पशुपति पारस भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में उनकी एंट्री पर सवाल उठाकर राजग (NDA) की छवि खराब कर रहे हैं. हालांकि जमुई के सांसद चिराग ने ने यह जरूर कहा कि वह चाचा पारस से अपने दिवंगत पिता के संसदीय क्षेत्र हाजीपुर के बारे में बात करने के लिए तैयार हैं.
समझौते के आसार कम
पार्टी में हुई टूट के बाद चिराग और पशुपति पारस एक दूसरे पर निशाना साधते रहे थे. एनडीए की बैठक के बाद जो कयास लग रहे थे कि दोनों एक हो सकते हैं, वो इस बयानबाजी के बाद अब दूर की कौड़ी नजर आ रही है. यानि अगर चाचा भतीजे में अगर समझौता नहीं होता है तो फिर आने वाले दिनों में दोनों तरफ से सियासी हमले और तेज हो सकते हैं जो एनडीए के लिए असहज करने वाली स्थिति होगी. एनडीए की अगुवाई करने वाली बीजेपी अब कैसे चाचा-भतीजे की कड़वाहट को दूर करने की कोशिश करती है, यह देखना भी दिलचस्प होगा.
वर्तमान सियासी परिदृश्य को देखें तो लोकसभा सांसदों की संख्या के लिहाज़ से पशुपति पारस वाली लोजपा के पांच सांसद हैं. वहीं चिराग गुट (रामविलास) के पास खुद चिराग पासवान के रूप में एक सांसद हैं. वहीं विधानसभा में दोनों ही नेताओं के पास कोई विधायक नहीं है. जो विधायक राज कुमार सिंह 2020 में लोजपा के टिकट पर चुने गए थे, वो बाद में जेडीयू में शामिल हो गए. अब, जब चिराग और पशुपति पारस में समझौता नहीं होता है तो ऐसी स्थिति में 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में एनडीए के लिए भी दोनों को मनाने की चुनौती होगी.
राजनीतिक ताकत किसकी कितनी
चिराग ने अपने पिता की मौत के बाद 2020 के बिहार विधानसभा में लोक जनशक्ति पार्टी को बिना किसी गठबंधन के चुनाव मैदान में उतारा और जमकर चुनाव प्रचार भी किया. हालांकि उन्हें वो सफलता नहीं मिल सकी जिसकी उन्होंने कल्पना की थी. पार्टी सात फीसदी मतों के साथ एक सीट जीत सकी. जो विधायक जीता था वो बाद में जेडीयू में शामिल हो गया. वहीं पार्टी में टूट होने के बाद दोनों ही नेताओं (चिराग और पारस) ने कोई चुनाव या उपचुनाव अकेले नहीं लड़ा लेकिन चिराग ने उपचुनाव में निर्दलीय तौर पर उम्मीदवार जरूर उतारे लेकिन जीत बहुत दूर रही.
चिराग या पारस?
चूंकि अभी तक दोनों पक्षों में से किसी ने भी अपने बूते पर चुनाव नहीं लड़ा है, तो ऐसे में राजनीतिक ताकत को आंकना मुश्किल है. हमेशा से ही यह माना जाता है कि रामविलास पासवान के पास 6-7 फीसदी वोट बैंक रहता था और वह इसे बड़ी चालाकी से अपने पक्ष में करते थे और फिर इसका इस्तेमाल करते थे. चूंकि चिराग रामविलास पासवान के इकलौते बेटे हैं तो विरासत उनके पास ही रहेगी, भले ही पार्टी का आधिकारिक चिह्न पशुपति पारस के पास हो. पिता की मौत के बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी चिराग को करीब इतना ही वोट बैंक मिला, इससे दिखता है कि चिराग के पास भी फिलहाल वो ताकत तो है, जो उनके पिता के पास थी.
चिराग कर चुके हैं बिहार का दौरा
वहीं चिराग ने बीते महीनों में बिहार का दौरा किया और युवाओं के बीच भी उन्हें अच्छा समर्थन मिला. वहीं पासवान के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने भले ही रामविलास पासवान की पार्टी पर कब्जा कर लिया है, लेकिन वो पार्टी के कोर वोटर को अपने साथ जोड़ने में उतना सफल नही रहे हैं.
विश्लेषक भी मानते हैं कि चिराग युवा चेहरा हैं और वोटरों के साथ उनका कनेक्ट अच्छा है. दूसरा ये है कि वो रामविलास पासवान के बेटे हैं. जिस तरह से समय-समय पर केंद्रीय मंत्रिमंडल में विस्तार की खबरें सामने आ रही हैं, ऐसे में संभव है कि आने वाले दिनों में केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी फेरबदल दिखेगा और चिराग मोदी कैबिनेट में दिख सकते हैं. वहीं पारस की मंत्रिमंडल से छुट्टी भी हो सकती है. ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि 2024 के चुनाव से पहले दोनों नेता किस तरह अपने सियासी समीकरणों को साधते हैं.