जिस आत्मीयता और खुलेपन से मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद चिराग पासवान का एनडीए की बैठक के बाद अभिवादन किया उससे स्पष्ट संकेत मिल गया है कि लोक जनशक्ति पार्टी (रा) की ताकत भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए का साथ छोड़ने के बाद की बनी राजनीतिक परिस्थिति ने भाजपा के लिए चिराग पासवान की जरूरत को अनिवार्य बना दिया है. जाहिर है वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की जो भूमिका रही थी उसके बाद तुरंत चिराग पासवान को साथ नहीं लाया जा सकता था. आज चिराग पासवान की एनडीए में एक सशक्त उपस्थिति हो चुकी है और अब उनकी भूमिका भी अपरिहार्य हो गयी है. इसकी पड़ताल करने के लिए लोक जनशक्ति पार्टी के इतिहास में जाना होगा.
चिराग से एनडीए की दूरी की पृष्ठभूमि
दिवंगत रामविलास पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था. उनकी बनाई लोक जनशक्ति पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में छह सांसद जीते. इन छह सांसदों में तीन चिराग के घर से हैं. तब सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था, लेकिन पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद और 2020 के विधानसभा चुनाव में मनचाही संख्या में सीटें नहीं मिलीं. चिराग ने इसके लिए जदयू और नीतीश कुमार दोनों को जिम्मेदार मानते हुए एनडीए से बगावत कर दी. जानकारों के मुताबिक कथित तौर पर इस बगावत में भाजपा का हाथ था, लेकिन यह कभी साबित नहीं हो सका, लेकिन बगावत का नीतीश कुमार की पार्टी जदयू पर बड़ा नकारात्मक असर हुआ.
उधर नीतीश के नाम पर चिराग से भाजपा ने जो दूरी बनाई उसका फायदा दिवंगत रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस को सीधे- सीधे मिला. उन्हें केंद्रीय मंत्री की कुर्सी हासिल करने में भी सफलता मिल गयी. लोजपा के छह में से पांच सांसद चिराग को छोड़कर सभी पारस के साथ थे, इस आधार पर भाजपा ने मंत्रिमंडल में दिवंगत रामविलास पासवान के भाई को एंट्री दे दी. चिराग एनडीए के साथ- साथ रामविलास पासवान के दिल्ली आवास से भी बाहर कर दिये गए.
अब चिराग का एनडीए के लिए गणित
चिराग के विरुद्ध पार्टी में बगावत और फूट, चाचा पारस के केंद्रीय मंत्री बनने के बावजूद अकेले पड़े चिराग पासवान का मनोबल नहीं टूटा. वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर लगातार हमलावर रहे. उनके समाज ने भी उन्हीं को रामविलास पासवान का असली वारिस करार दिया. तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपने जनाधार को अपनी मुट्ठी में रखा. वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में लोजपा को बिहार के कुल वैध वोटों का 5.66 प्रतिशत मत हिस्सा हासिल हुआ था. जितनी सीटों पर लोजपा ने प्रत्याशी दिए, वहां कुल वैध वोटों का 10.26 प्रतिशत हिस्सा उनकी पार्टी को हासिल हुआ. वहीं जदयू के साथ भाजपा को उस चुनाव में बिहार के कुल वैद्य मतों का 19.46 प्रतिशत वोट मिला तो भाजपा के साथ जदयू को बिहार के कुल वैद्य मतों का 15.39 प्रतिशत वोट मिला. यह गणित लोजपा का विधानसभा चुनाव में प्रभाव को साफ दिखलाता है.
मंगलवार को हुई एनडीए की बैठक के बाद लोजपा के दोनों खेमे एक हो गए हैं. वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव में अब पासवान मतों के बिखराव को भाजपा ने रोक दिया है. जाहिर है बिहार में आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में महागठबंधन और विशेषकर नीतीश कुमार के लिए भाजपा ने एक बड़ी लकीर खिंच दी है. अब देखना है कि महागठबंधन खेमा भाजपा की इस रणनीति का क्या काट निकालता है.