बैंगलुरू में मंगलवार को 26 विपक्षी दलों के नेताओं ने एक बैठक के बाद ऐलान किया कि उनके नये गठबंधन का नाम INDIA (Indian National Developmental Inclusive Alliance) होगा, इसकी एक कोऑर्डिनेशन कमेटी अगले महीने मुंबई में होने वाली बैठक में बनेगी. यह गठबंधन समान न्यूनतम कार्यक्रम और चुनाव रणनीति तय करेगी. सोमवार की रात को बैंगलुरु में विपक्षी नेताओं की डिनर पर अनौपचारिक बैठक हुई थी, जबकि मंगलवार को औपचारिक बैठक चार घंटे तक चली. बैठक में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खर्गे, तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, बिहार के सीएम नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, आरजेडी के संस्थापक लालू प्रसाद, एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार, शिव सेना (यूटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे और अन्य नेता उपस्थित थे. बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष खर्गे ने कहा कि सभी विपक्षी दलों ने देश को बचाने के लिए एक मंच पर आने का फैसला किया है. मंगलवार को ही दिल्ली के अशोका होटल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में NDA की बैठक हो रही है, जिसमें 38 सहयोगी दलों के नेता हिस्सा ले रहे हैं. ऐसा लगता है कि बीजेपी ने 26 विपक्षी दलों के मोर्चे का जवाब 38 पार्टियों वाले NDA से दिया है.
विरोधी दलों वाले मोर्चे में बड़े-बड़े नेता दिखाई दिये, लेकिन ममता बनर्जी, स्टालिन और केजरीवाल को छोड़ कर जो लोग दिखे, उनमें से ज़्यादातर का जनाधार खिसक चुका है. उद्धव ठाकरे गठबंधन में हैं, पर उनकी शिव सेना एकनाथ शिंदे के साथ NDA में है . शरद पवार मोदी विरोधी खेमे में हैं, पर उनकी पार्टी तो प्रफुल्ल पटेल और अजित पवार के पास है, जो मोदी के साथ बैठक में पहुंचे. नीतीश कुमार भी विरोधी दलों की एकता के पैरोकार तो बने, पर उनका अपना जनाधार खिसकता जा रहा है, उनकी पार्टी का कौन सा नेता उन्हें कब छोड़कर चला जाए, वो नहीं जानते. कई छोटी छोटी पार्टियों ने अभी अभी उनका साथ छोड़कर NDA में शामिल होने का फ़ैसला किया है. यही हाल उत्तर प्रदेश में है, जहां अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने का सपना देखने वाली पार्टियों के नेता अब BJP के साथ हैं.
BJP की रणनीति ये है कि बिहार और उत्तर प्रदेश की, जनाधार वाली पार्टियों को अपने साथ जोड़ा जाए. 2014 में ये प्रयोग सफल रहा था, इसलिए NDA की 38 पार्टियों वाले मोर्चे में भले ही बड़े-बड़े नेताओं के चेहरे दिखाई न दें, लेकिन वहां ऐसे लोग पहुंचे हैं, जिनके पास जन समर्थन है, अपना जनाधार है. यूपी और बिहार की 120 लोकसभा सीटों को ही अगर लें, तो इन छोटी-छोटी पार्टियों का कुल मिलाकर 8 से 9 परसेंट वोट होता है, जो कांटे की टक्कर वाली स्थितियों में चुनाव का नतीजा पलट सकता है.