जलवायु परिवर्तन कृषि क्षेत्र में उत्पादन व उत्पादकता को सतत बनाए रखने की एक गंभीर चुनौती है। यह केवल भारत जैसे कृषि प्रधान देश तक सीमित नहीं है–पूरे विश्व तक फैली है। इससे पुराने तौर–तरीकों से नहीं निबटा जा सकता। इन बदलावों को सहन करने वाले खाद्यान्नों की नई किस्म विकसित करनी होगी और उनकी सिंचाई के नियमित संसाधनों पर विशेष ध्यान देना होगा। यह अच्छी बात है कि सरकार भी इस पर गंभीरतापूर्वक सोच रही है। कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर कहते हैं कि इसके अनुरूप फसलों की नयी–नयी किस्में विकसित की गई हैं। कृषि अनुसंधान परिषद के ९५वें स्थापना व प्रौद्योगिकी दिवस पर उन्होंने कहा कि इसके लिए मृदा की उर्वरकता पर ध्यान देना होगा‚ जो रासायनिक उर्वरकों केे अंधाधुंध प्रयोग से नष्ट हो गई है और वैकल्पिक जैविक व प्राकृतिक खेती की तरफ बढ़ना होगा। यह तरीका जलवायु–बदलावों का बेहतर सामना कर सकता है। जैविक व प्राकृतिक उत्पाद बाजार में उपलब्ध हो रहे हैं पर वे इतने महंगे हैं कि आमजन की थाली में नहीं आ सकते। ऐसा इन खाद्य पदाथोंर् की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण न होने के चलते है। परंतु सरकार इस खेती को व्यापक पैमाने पर बढ़ावा दे तो उनके पुष्टिकारक उत्पादों तक सबकी पहुंच हो सकती है। इसके साथ‚ खेती–किसानी की मूल समस्या बढती लागत और पैदावारों के उचित मूल्य न मिलने पर भी ध्यान देना होगा। बाढ‚ सूखा‚ पाला गिरने जैसी प्राकृतिक आपदाओं से भी खेती को महफूज रखने के ठोस इंतजामात को भी जलवायु परिवर्तन से लड़़ाई में शामिल करना चाहिए। यह ध्यान में रखते हुए कि दुनिया के खान–पान विशेषज्ञ भारतीय भोजन की थाली को विविधतापूर्ण‚ स्वादिष्ट एवं सेहतमंद मानते हैं। इसी वजह से २०२२ के बेस्ट ग्लोबल कुजिन्स की सूची में भारतीय व्यंजनों को पांचवीं श्रेणी मिली है। हालांकि कुछ विशेषज्ञ हमारी थाली को उतना पोषण–क्षम नहीं मानते। मगर जैसा कि कृषि मंत्री ने कहा यदि हम इन आवश्यकताओं को समझते हुए उत्पादन व उत्पादकता को बेहतर करने के प्रयास करते हैं तो जल्द ही हमारी भोजन की थाली पोषण से भरपूर हो सकेगी। साथ ही‚ कृषकों–उपभोक्ताओं को उचित मूल्य में चीजें मुहैया कराने के सरकारी प्रयासों को उचित धरातल मिल सकती है। नित नये व वैज्ञानिक प्रयोगों व प्रयासों से होने वाले परिवर्तन तमाम चुनौतियों से जूझने की राह प्रशस्त कर सकेंगे।
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