ISRO ने चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की पहली ऑर्बिट मैन्यूवरिंग सफलतापूर्वक पूरी कर ली है. यानी उसकी पहली कक्षा बदल दी गई है. अब वह 42 हजार से ज्यादा की कक्षा में पृथ्वी के चारों तरफ अंडाकार चक्कर लगा रहा है. फिलहाल इसरो वैज्ञानिक इसकी कक्षा से संबंधित डेटा का एनालिसिस कर रहे हैं.
लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-3 को 179 किलोमीटर की पेरीजी और 36,500 किलोमीटर की एपोजी वाली अंडाकार कक्षा में डाला गया था. यानी कम दूरी पेरीजी. लंबी दूरी एपोजी. पहले ऑर्बिट मैन्यूवर में एपोजी को बढ़ाया गया है. यानी 36,500 किलोमीटर से 42 हजार किलोमीटर.
धरती के चारों तरफ पांच बार ऑर्बिट मैन्यूवर होगा. यानी कक्षा बदली जाएगी. इसमें चार में एपोजी यानी पृथ्वी से जब चंद्रयान दूर रहेगा. वह कक्षा बदली जाएगी. यानी पहली, तीसरी, चौथी और पांचवी. अब आप सोच रहे होंगे कि दूसरी कक्षा कहां गई. असल में दूसरी कक्षा में एपोजी नहीं बल्कि पेरीजी बदली जाएगी. यानी नजदीकी दूरी को बढ़ाया जाएगा.
कैसी होगी चंद्रयान-3 की आगे की यात्रा?
31 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 धरती से दस गुना दूर जा चुका होगा. इसरो वैज्ञानिक एपोजी में बदलाव करके उसकी ज्यादा दूरी को बढ़ाते रहेंगे. तब तक बढ़ाएंगे जब तक वह धरती से करीब 1 लाख किलोमीटर दूर नहीं पहुंच जाता. यहां पहुंचने के बाद वैज्ञानिक उसे बनाएंगे गुलेल. यानी स्लिंगशॉट करके चंद्रयान-3 को ट्रांसलूनर इंसर्शन में भेजेंगे. यानी चंद्रमा के लिए तय लंबी दूरी वाली सोलर ऑर्बिट.
17 अगस्त को लैंडर से अलग होगा प्रोपल्शन मॉड्यूल
पांच दिन इन लंबे ऑर्बिट में यात्रा करने के बाद यानी 5-6 अगस्त को चंद्रयान-3 लूनर ऑर्बिट इंसर्शन स्टेज में होगा. तब चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन सिस्टम को ऑन किया जाएगा. उसे आगे की ओर धकेला जाएगा. यानी चंद्रमा की 100 किलोमीटर की ऊपरी कक्षा में भेजा जाएगा. 17 अगस्त को प्रोपल्शन सिस्टम चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर से अलग हो जाएगा.
ऐसे कम की जाएगी गति, फिर होगी लैंडिग
प्रोपल्शन मॉड्यूल के अलग होने के बाद लैंडर को चंद्रमा की 100X30 किलोमीटर की कक्षा में लाया जाएगा. इसके लिए डीबूस्टिंग करनी होगी. यानी उसकी गति कम करनी पड़ेगी. ये काम 23 अगस्त को को होगा. यहीं पर इसरो वैज्ञानिकों की सांसें थमी रहेंगी. क्योंकि ये होगा सबसे कठिन काम. यहीं से शुरू होगी लैंडिंग की प्रकिया.
लैंडिंग साइट का क्षेत्रफल बढ़ाया गया
इस बार विक्रम लैंडर में के चारों पैरों की ताकत को बढ़ाया गया है. नए सेंसर्स लगाए गए हैं. नया सोलर पैनल लगाया गया है. पिछली बार चंद्रयान-2 की लैंडिंग साइट का क्षेत्रफल 500 मीटर X 500 मीटर चुना गया था. इसरो विक्रम लैंडर को मध्य में उतारना चाहता था. जिसकी वजह से कुछ सीमाएं थीं. इस बार लैंडिंग का क्षेत्रफल 4 किलोमीटर x 2.5 किलोमीटर रखा गया है. यानी इतने बड़े इलाके में चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर उतर सकता है.
लॉन्चिंग के 16 मिनट बाद पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा यान
इसरो ने 14 जुलाई को 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान-3 की सफलतापूर्वक लॉन्चिंग की।
आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से LVM3-M4 रॉकेट के जरिए चंद्रयान को स्पेस में भेजा गया।
लॉन्चिंग के 16 मिनट बाद चंद्रयान को पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचा दिया गया।
ये कक्षा पृथ्वी से सबसे नजदीक होने पर 170 किलोमीटर और सबसे दूर होने पर 36,500 किलोमीटर की दूरी पर थी।
23 अगस्त को चांद पर उतरेंगे लैंडर और रोवर
इसरो चीफ एस सोमनाथ ने बताया कि अगर सब कुछ प्लान के अनुसार रहा तो यान 23 अगस्त को शाम 5.47 बजे चांद पर उतरेगा।
चंद्रयान-3 में लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल हैं। लैंडर और रोवर चांद के साउथ पोल पर उतरेंगे और 14 दिन तक वहां प्रयोग करेंगे।
प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में रहकर धरती से आने वाले रेडिएशन्स का अध्ययन करेगा।
मिशन के जरिए इसरो पता लगाएगा कि चांद की सतह पर कैसे भूकंप आते हैं। यह चंद्रमा की मिट्टी का अध्ययन भी करेगा।
भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा
अगर सॉफ्ट लैंडिंग में सफलता मिली यानी मिशन सक्सेसफुल रहा तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा।
अमेरिका और रूस दोनों के चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने से पहले कई स्पेस क्राफ्ट क्रैश हुए थे।
चीन 2013 में चांग’ई-3 मिशन के साथ अपने पहले प्रयास में सफल होने वाला एकमात्र देश है।
आदिपुरुष फिल्म के बजट से सस्ता चंद्रयान-3
बिना लॉन्चिंग कॉस्ट के चंद्रयान-3 का बजट लगभग 615 करोड़ रुपए है, जबकि हाल ही में आई फिल्म आदिपुरुष का बजट 700 करोड़ रुपए था।
यानी चंद्रयान-3 इस मूवी की कॉस्ट से करीब 85 करोड़ रुपए सस्ता है। इससे 4 साल पहले भेजे गए चंद्रयान 2 की लागत भी 603 करोड़ रुपए थी।
वहीं इसकी लॉन्चिंग पर 375 करोड़ रुपए खर्च हुए थे।