भारत–फ़्रांस के बीच घनिष्ठ संबंधों की इबारत को नये सिरे से लिखने के इरादे से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी फ़्रांस की यात्रा पर हैं। वहां पर बैस्टिल डे़ परेड़ में सम्मानित अतिथि के रूप में शामिल होंगे। उनकी यात्रा के दौरान दोनों देश महत्वपूर्ण रक्षा और व्यापारिक समझौते पर मुहर लगाएंगे। भारतीय नौसेना के लिए फ़्रांस के साथ 26 राफेल एम (मरीन) लड़ाकू विमानों का सौदा होने की उम्मीद है।
भारत फ़्रांस और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने ८ जून को ओमान की खाड़ी में अपना पहला त्रिपक्षीय समुद्री अभ्यास सफलतापूर्वक संपन्न किया था। इसमें आईएनएस तरकश‚ फ़्रांसीसी जहाज सुरकौफ‚ फ्रेंच राफेल विमान और यूएई नौसेना समुद्री गश्ती विमान की भागीदारी थी। इस अभ्यास में सतही युद्ध जैसे नौसेना संचालन का व्यापक स्पेक्ट्रम देखा गया जिसमें सतह के लक्ष्यों पर मिसाइल से सामरिक गोलीबारी और अभ्यास‚ हेलीकॉप्टर क्रॉस डेक लैंडिं़ग संचालन‚ उन्नत वायु रक्षा अभ्यास और बोर्डिंग संचालन शामिल थे। मोदी की यात्रा से ठीक पहले इस तरह के अभ्यास का उद्देश्य तीनों नौसेनाओं के बीच त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ाना और समुद्री वातावरण में पारंपरिक और गैर–पारंपरिक खतरों को दूर करने के उपायों को अपनाने का मार्ग प्रशस्त करना था। यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत–फ़्रांस रणनीतिक साझेदारी के इस साल २५ वर्ष पूरे हो रहे हैं।
आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने २०१६ में भारत की विदेश नीति बड़ा बदलाव तब किया था‚ जब उन्होंने फ़्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ़्रांसिस ओलांद की दिल्ली की जगह चंडीगढ़ में अगवानी की थी। मोदी से पहले के प्रधानमंत्रियों के दौर में विदेशों से भारत आने वाले राष्ट्राध्यक्ष और प्रधानमंत्री दिल्ली आते थे और उन्हें ज्यादा से ज्यादा आगरा में ताजमहल घुमा दिया जाता था। अब इन महत्वपूर्ण स्थानों में अहमदाबाद‚ बनारस‚ चंडीगढ़‚ बैंगलुरू और तमिलनाडु के मंदिर भी शामिल हो गए हैं। और भी कुछ शहर इस नीति का आने वाले वक्त में हिस्सा बनेंगे। ओलांद उस साल गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे। ओलांद और मोदी के बीच चंड़ीगढ़ में विस्तार से गुफ्तुगू हुई थी। ओलांद का भारत दौरा चंडीगढ़ से शुरू करने के पीछे एक वजह थी। दरअसल‚ चंडीगढ़ के डिजाइनर लॉ कार्ब्युजियर फ़्रांस के ही नागरिक थे। यहां पर लॉ कार्ब्युजियर के सहयोगी प्रो. जेके चौधरी की चर्चा करना भी समीचिन होगा। प्रो. जेके चौधरी ने लॉ कार्ब्युजियर के साथ काम करके बहुत कुछ सीखा था। दोनों भारत तथा फ़्रांस के आर्कीटेक्चर पर लंबी चर्चा करते थे। इसमें कोई शक नहीं कि प्रो. चौधरी को फ़्रांस के महान आर्कीटेक्ट के साथ काम करने के बाद बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम करने का ठोस अनुभव प्राप्त हुआ। दरअसल‚ आईआईटी से पहले दिल्ली में कोई इतने बड़े शिक्षण संस्थान का कैम्पस बना भी नहीं था। पर चंडीगढ़ के निर्माण के बाद उनके पास अनुभव पर्याप्त हो गया था। ओलांद की उसी यात्रा के समय फ़्रांस ने भारत ३३ राफेल लड़ाकू विमान देने का वादा किया था। राफेल की जद में पूरा पाकिस्तान आ जाता है‚ जिससे हमें यकीनन पाकिस्तान पर काफी बढ़त मिल जाती है। भारत को राफेल विमान मिलने भी लगे हैं।
अगर दोनों देशों के संबंधों के इतिहास पर नजर डालें तो ये सदियों पुराने हैं। १७वीं शताब्दी से १९५४ तक फ़्रांस ने भारत के पुडुचेरी में अपनी औपनिवेशिक उपस्थिति बनाए रखी थी। वहां पर अब भी फ़्रांस की संस्कृति और इमारतों पर फ़्रांस की वास्तुकला को देखा जा सकता है। बेशक‚१९९८ में रणनीतिक साझेदारी की स्थापना के साथ राष्ट्राध्यक्षों/सरकारी प्रमुखों के स्तर पर नियमित उच्चस्तरीय आदान–प्रदान और रक्षा‚ परमाणु जैसे रणनीतिक क्षेत्रों सहित बढ़ते वाणिज्यिक आदान–प्रदान के माध्यम से द्विपक्षीय सहयोग के सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।
प्रधानमंत्री मोदी की यह तीसरी फ़्रांस यात्रा है। मान कर चलिए कि मोदी और फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन व्यापार और अर्थशास्त्र से लेकर ऊर्जा सुरक्षा‚ आतंकवाद विरोधी‚ रक्षा और सुरक्षा सहयोग और भारत–प्रशांत में सहयोग जैसे मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे। यह भी लग रहा है कि फ़्रांस ने पश्चिमी दुनिया में भारत के भरोसेमंद दोस्त और साझेदार के रूप में रूस की जगह ले ली है। भारत ने फ़्रांस का तब से विशेष आदर करना शुरू कर दिया है‚ जब फ़्रांस ने संयुक्त राष्ट्र में चीन द्वारा कश्मीर पर बुलाई गई बैठक में भारत के रुख का समर्थन किया था। फ़्रांसीसियों ने पहले भी वैश्विक आतंकवादी मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का समर्थन किया था। पुलवामा हमले के बाद भारत ने कूटनीति के मोर्चे पर पाकिस्तान को पूरी तरह से अलग–थलग कर दिया था। इसी के कारण पुलवामा हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन जैश–ए–मोहम्मद के चीफ मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में अमेरिका‚ फ़्रांस और ब्रिटेन ने प्रस्ताव पेश किया था। फ़्रांस‚ अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने प्रस्ताव में मसूद की वैश्विक यात्राओं पर प्रतिबंध लगाने और उसकी सभी संपत्ति फ्रिज करने की मांग भी की। यह सब यूं ही नहीं हो गया।
कहते हैं कि नेतृत्व की हनक के असर से आज मोदी ने विश्व को अपनी नेतृत्व क्षमता का मुरीद बना दिया है। किसे नहीं पता कि भारत अजहर मसूद को अपना दुश्मन नंबर एक मानता है। पंजाब के पठानकोट के एयरफोर्स बेस पर हुए हमलों जैश–ए–मोहम्मद के नेता अजहर मसूद का हाथ था। जैश भारत को क्षति पहुंचाने की हर मुमकिन कोशिश करता है। जैश को ताकत पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से मिलती है। आईएसआई पाकिस्तानी सेना का अहम अंग है। वह पाकिस्तानी सेना के इशारों पर ही काम करती है।
भारत–फ़्रांस को आपसी संबंधों को मजबूती देते हुए दुनिया से आतंकवाद और अजहर मसूद जैसे मानवता के दुश्मनों को खत्म करना ही होगा। वैसे तो £ांस की हालिया सांप्रदायिक हिंसा उसका आंतरिक मामला है‚ जिस पर सामान्यतः चर्चा नहीं होती लेकिन‚ चूंकि‚ भारत पिछले १९४६ से ऐसी सांप्रदायिक हिंसा का भुक्तिभोगी रहा है‚ और अब तक उनको असरदार ढंग से नियंत्रित भी करता रहा है‚ इसलिए फ़्रांस इस मामले में भी भारत की अनौचारिक सलाह ले सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी की यह तीसरी फ़्रांस यात्रा है। मान कर चलिए कि मोदी और फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन व्यापार और अर्थशास्त्र से लेकर ऊर्जा सुरक्षा‚ आतंकवाद विरोधी‚ रक्षा और सुरक्षा सहयोग और भारत–प्रशांत में सहयोग जैसे मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे। यह भी लग रहा है कि फ़्रांस ने पश्चिमी दुनिया में भारत के भरोसेमंद दोस्त और साझेदार के रूप में रूस की जगह ले ली है। फ़्रांस ने आतंकी मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का समर्थन किया था॥