राजधानी दिल्ली में यमुना नदी अपने रौद्र रूप में है। नदी के जलस्तर ने अब तक के सारे रिकॉर्ड़ तोड़़ दिए हैं। पिछले कुछ वर्षों से दौरान संज्ञान लिया जा रहा है कि भारत के महानगरों की ड्रे़नेज व्यवस्था अनियमित जलवायु परिवर्तन के सामने बेबस और लाचार है। यमुना में आई इस बाढ़ से समझा जा सकता है कि यहां की ड्रे़नेज व्यवस्था संकटग्रस्त है। अभी दिल्ली के लोग बाढ़ के कारण जिस तरह की कठिनाइों का सामना कर रहे हैं‚ वह मानव–निर्मित है। सरकारी प्रबंधन की विफलता है। यमुना के किनारे अवैध निर्माण भी बड़़ा कारण है‚ जिसने प्राकृतिक जल निकासी के मार्गों को अवरुद्धकर दिया है। मुंबई और चेन्नई की तुलना में दिल्ली में बरसात कम होती है‚ लेकिन हर वर्ष हल्की बरसात के बाद सड़़कों पर जलजमाव हो जाता है। दिल्ली के उपराज्यपाल ने स्वीकार किया है कि मानसून की बरसात से पहले नालों की सफाई ठीक से नहीं की जाती। यह भी कहा कि २०१४ के बाद दिल्ली की आबादी ५० लाख बढ़ गई है। इसका दबाव नागरिक सुविधाओं पर पड़़ना लाजिमी है। बढ़ी आबादी को ध्यान में रखते हुए सीवर लाइनों और जल निकासी के लिए योजनाएं नहीं बनाई गइ। इसलिए जल भराव की समस्या पैदा होती है। सरकार और प्रशासनिक अधिकारियों को इस बाढ़ से सबक लेते हुए दिल्ली में ड्रे़नेज व्यवस्था को ठीक करने के लिए योजना बनाने की आवश्यकता है। दिल्ली का जल निकासी मास्टर प्लान १९७६ में बना था। २०१६ में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आईआईटी‚ दिल्ली को इस महानगर की जल निकासी प्रणाली का अध्ययन करने के लिए कहा था। लेकिन यह अध्ययन हुआ या नहीं‚ अगर हुआ तो इसकी रिपोर्ट कहां है‚ इसकी जानकारी नहीं है। अनियमित और अंधाधंुध विकास ने नालों और जलाशयों को भर दिया है। ऐसे में पानी बहेगा कैसे। दिल्ली‚ मंुबई‚ चेन्नई‚ कोलकाता जैसे महानगरों समेत देश के ज्यादातर शहर जल निकासी की समस्या से जूझ रहे हैं। देश में चंड़ीगढ़ को सबसे नियोजित शहर बताया जाता है‚ लेकिन यहां भी जलसमाधि लिए हए सड़़कें दिखाई दीं। सवाल उठता है कि शहर की योजना बनाते समय अच्छी और आधुनिक जल निकासी की व्यवस्था पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता। महानगरों और शहरों में बढ़ती आबादी के अनुरूप जल निकासी की व्यवस्था को फिर से डि़जायन करने कर जरूरत है।
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