आजकल आये दिन शासन–प्रशासन द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने के समाचार मिलते रहते हैं। इंटरनेट पर प्रतिबंध के प्रमुख कारणों में हिंसा‚ दंगे‚ धरना‚ प्रदर्शन‚ परीक्षा का विरोध इत्यादि प्रमुख कारण हैं। वास्तव में इंटरनेट से संचालित सोशल मीडिया चैनलों के व्यापक प्रसार के कारण कोई भी सूचना मिनटों में पूरे देश और दुनिया में प्रसारित हो जाती है। असामाजिक तत्व ऐसे मौकों का फायदा उठाकर गलत सूचना का प्रसार करते हैं‚ जिससे देश के किसी एक कोने में हुआ छोटा विद्वेष मिनटों में पूरे देश में फैल जाता है। फिर फेसबुक‚ ट्विटर‚ यूट्यूब जैसे अनेकों सोशल मीडिया माध्यमों से खबर फैलते देर नहीं लगती।
वर्तमान में देश के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग को लेकर घाटी बहुल मैइति और पहाड़ी बहुल कुकी जनजाति के बीच हिंसा भड़कने के बाद सरकार ने ३ मई को मणिपुर में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया जो अनवरत है। मणिपुर उच्च न्यायालय के प्रतिबंध हटाने के निर्देश के बाद मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है। मणिपुर में इंटरनेट पर प्रतिबंध पहली घटना नहीं है‚ बल्कि देश में आये दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं जहां इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाना पड़ता है। इंटरनेट बैन से तत्काल हिंसा और अन्य अप्रिय घटनाओं से राहत तो मिल जाती है‚ लेकिन उसका बुरा प्रभाव सार्वजनिक सेवाओं और व्यवसाय पर पड़ता है। २०२२ में प्रशासन की ओर से देश में ८४ बार इंटरनेट सेवा को निरस्त करना पड़ा था। भारत में २०१२ के बाद से कुल ५०० से ज्यादा इंटरनेट बैन में से लगभग आधे अकेले जम्मू–कश्मीर में लगे हैं। अब तक का सबसे लंबा २१३ दिनों का इंटरनेट प्रतिबंध भी जम्मू–कश्मीर में ५ अगस्त‚ २०१९ से मार्च‚ २०२० तक लगा था। २०२२ में राजस्थान के कई इलाकों में १६ बार और पश्चिम बंगाल के विभिन्न इलाकों में ७ बार इंटरनेट पर बैन लगाना पड़ा था।
इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने संबंधी नियम २०१७ में भारत सरकार के दूरसंचार विभाग द्वारा बनाया गया था‚ जिसे दूरसंचार सेवाओं के अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा) नियम के तौर पर जाना जाता है। इस के तहत इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार केंद्रीय और राज्य स्तर पर भारत सरकार के गृह मंत्रालय के पास होता है‚ जिसके तहत ‘सार्वजनिक आपातकाल’ की स्थिति में इंटरनेट सेवाओं का अस्थायी निलंबन किया जा सकता है। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के आंकड़ों के अनुसार २०१९ में इंटरनेट शटडाउन के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग १.३ अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार २०२१ में पूरी दुनिया में ३०‚००० घंटों से ज्यादा इंटरनेट सेवाओं को रोका गया था‚ जिसके कारण ५.४५ अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। भारत में २०२१ में १‚१५० घंटे से ज्यादा इंटरनेट अवरोधित रहा था‚ साथ ही हमारा देश इंटरनेट प्रतिबंध से हुए आय के नुकसान में तीसरे नंबर पर था। इंटरनेट बैन के व्यवसाय पर असर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि २०२० में दिल्ली में २४ घंटे के इंटरनेट शटडाउन में ई–कॉमर्स कंपनियों को ८ करोड़ से अधिक के राजस्व का नुकसान हुआ था।
आजकल दूरसंचार कंपनियां हों या बहुराष्ट्रीय कंपनियां‚ हर जगह फोन कॉल और एसएमएस का स्थान अब इंटरनेट आधारित कॉल और मैसेज ने ले लिया है। कोविड महामारी के बाद तो इ–कॉमर्स‚ इंटरनेट आधारित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सॉफ्टवेयर और एप इत्यादि का उपयोग बहुत तेजी से बढ़ गया। इंटरनेट पर प्रतिबंध से आम लोगों को काफी परेशानी होती है। जैसे २०१९ में कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन के कारण हजारों छात्र ऑनलाइन परीक्षा देने से वंचित रह गए। वैसे ही २०२१ में असम में इंटरनेट शटडाउन के कारण आम जनता को कोविड महामारी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी जानकारी मिलने में तमाम परेशानियां हुइ। इंटरनेट शटडाउन के नुकसान का संज्ञान लेते हुए संचार और आईटी मामलों के संसदीय पैनल ने हाल में अपने सुझाव पेश किए हैं जिनके तहत ट्राई को इंटरनेट कॉल और चुनिंदा मैसेजिंग एप पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया गया है‚ ताकि किसी भी क्षेत्र में इंटरनेट बैन के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके। \
मूलतः इंटरनेट बैन का मुख्य उद्देश्य भ्रामक और नफरत फैलाने वाले संदेशों को फैलने से रोकना होता है‚ जिसे चुनिंदा साइट और एप पर प्रतिबंध लगाकर हासिल किया जा सकता है। ट्राई ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि इंटरनेट और दूरसंचार सेवाएं पूर्णतया बंद करने पर अर्थव्यवस्था को गहरा नुकसान होता है। नफरत फैलाने वाली वेबसाइट्स और एप की पहचान कर उनको स्थायी रूप से बैन करने का काम तेजी से चल रहा है। चिह्नित स्रोतों पर बैन लगाने से आतंकियों और अखंडता विरोधी तत्वों के कुत्सित कृत्यों को रोकना संभव होगा। इससे आम सेवाएं और व्यवसाय भी अबाधित चलते रहेंगे‚ उनको कोई नुकसान नहीं होगा॥।