काग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ड़ी.के. शिवकुमार उप–मुख्यमंत्री होंगे। मुख्यमंत्री पद के लिए दोनों नेताओं के बीच गहरी प्रतिद्वंद्विता थी। इसीलिए मुख्यमंत्री कौन होगा इस सवाल को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच चार दिनों तक कशकमश जारी रही। कर्नाटक से कांग्रेस के एकमात्र सांसद और शिवकुमार के भाई ड़ी.के. सुरेश इस फैसले से खुद नहीं दिखे‚ लेकिन शिवकुमार ने सूझबूझ का परिचय दिया और उप–मुख्यमंत्री बनने को तैयार हो गए। प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए प्रचंड़ जनादेश दिया है‚ लेकिन मुख्यमंत्री के चयन में पार्टी ने जितनी देर की है उससे प्रतीत होता है कि वह अपने अतीत से किसी तरह का सबक नहीं ले पा रही है। २०१८ में राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस को बहुमत मिला था। इन दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार थे। राजस्थान में युवा सचिन पायलट की जगह आलाकमान ने बुजुर्ग अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री का पदभार सौंपा। इन दोनों नेताओं के बीच सत्ता संघर्ष आज भी जारी है। मध्य प्रदेश की कहानी भी कुछ इसी तरह रही और आखिरकार वहां भाजपा सरकार में आ गई। पंजाब में भी अनुभवी और वरिष्ठ मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह नवजोत सिंह सिद्धू के हाथों अपमानित होते रहे। उसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस यहां सत्ता से बेदखल हो गई। यह राजनीतिक यथार्थ है कि जब पार्टी कमजोर हो जाती है तो क्षत्रप केंद्र नेतृत्व को दबाव में लेने का प्रयास करते हैं। वर्तमान समय में कांग्रेस इसी स्थिति से गुजर रही है। लोगों को इंदिरा गांधी के शासन का दौर याद होगा। उस समय इंदिरा गांधी जिसके सिर पर हाथ रख देती थी वही मुख्यमंत्री बनता था। गौर करने वाली बात यह है कि यदि मुख्यमंत्री पद के दो या ज्यादा दावेदार हैं तो इसका फैसला विधायकों पर छोड़़ दिया जाना चाहिए। बहरहाल‚ कर्नाटक में कांग्रेस ने एक सर्वमान्य फार्मूला निकालकर संतुलन बनाने का प्रयास किया है। अगले साल लोक सभा का चुनाव है। प्रदेश में लोक सभा की २८ सीटें हैं। २०१९ में कांग्रेस को यहां सिर्फ एक सीट मिली थी। उम्मीद की जानी चाहिए मुख्यमंत्री और उप–मुख्यमंत्री के बीच बेहतर तालमेल रहेगा। कांग्रेस के शीर्ष नेता आगामी लोक सभा चुनाव में भी इसी तरह के प्रदर्शन की अपेक्षा रखते हैं।
कायम रखनी थी राजनीतिक सहमति, देश है तो राजनीति है, सहमति के बाद फिर सवाल क्यो ?
बेशक पहलगाम में सुरक्षा चूक पर जवाब मांगने का राजनीतिक अधिकार विपक्ष को है क्योंकि चूक तो हुई ही है...