कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जिस तरह का प्रचंड़ जनादेश मिला है उससे कई तरह के सवाल और विमर्श पैदा हुए हैं। सबसे अधिक चर्चा व्यापक स्तर पर भाजपा के विरुद्ध विपक्षी एकता को लेकर हो रही है। इस मुद्दे को लेकर अगले सप्ताह पटना में कुछ गैर भाजपा दलों की बैठक होने जा रही है। २०१९ के लोक सभा चुनाव के बाद कांग्रेस किसी भी राज्य के विधानसभा चुनाव को जीतने के लिए तरसती रही। उसे हिमाचल प्रदेश में सफलता मिली। हिमाचल और कर्नाटक की जीत से कांग्रेस पार्टी में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ नेतृत्व में भी आत्मविश्वास पैदा हुआ है। भाजपा से असंतुष्ट विभिन्न सामाजिक समूहों में कांग्रेस पार्टी को लेकर एक नई उम्मीद पैदा हुई है और यह विमर्श जोर पकड़़ रहा है कि ताकतवर दिखने वाली भाजपा को भी हराया जा सकता है। जाहिर है हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से विपक्ष की राजनीति में एक सकारात्मक मोड़़ आया है। कांग्रेस को छोड़़कर विपक्ष की एकता की बात करने वाले राजनीतिक दलों के रुख में यह बदलाव दिखाई दे सकता है कि विपक्षी एकता की बात करने वालों के स्वर मंद पड़़ने लगे हैं। यदि कांग्रेस इस रुख के साथ विपक्षी एकता के लिए आगे बढ़ती भी है तो यह गलत नहीं होगा‚ क्योंकि उसके समर्थक और कार्यकर्ता पूरे देश में हैं। लेकिन किसी एक राज्य में मिली जीत को पूरे देश का राजनीतिक ट्रेंड़ नहीं माना जा सकता है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस के पुराने दिन वापस लौट आए हैं। लेकिन यह भी अवश्य है कि अगर कांग्रेस अनुशासनबद्ध होकर ‘कर्नाटक मॉड़ल’ को आगे बढ़ाए तो तेलंगाना सहित दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में अच्छा राजनीतिक प्रदर्शन कर सकती है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के विरुद्ध विपक्षी एकता की मुहिम में सक्रिय हैं। ओडि़शा से उन्हें निराश होकर लौटना पड़़ा है। वहां के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के नेता नवीन पटनायक ने किसी भी तीसरे मोर्चे की संभावना को खारिज करते हुए २०२४ का चुनाव अकेेले लड़़ने का संकेत दिया है। इसलिए कांग्रेस यदि भाजपा के विरुद्ध गैर भाजपा दलों का कोई राष्ट्रीय गठबंधन बनाना चाहती है तो उसे क्षेत्रीय दलों के साथ कदम मिला कर चलना होगा। वास्तव में इस साल होने वाले राजस्थान‚ तेलंगाना‚ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन से विपक्षी एकता के द्वार खुलेंगे।
चुनाव सर्वेक्षण: हकीकत, भ्रम और वोटर की भूमिका
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