कर्नाटक में हर विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन का रिवाज इस बार भी कायम रहा. कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत हासिल करते हुए भारतीय जनता पार्टी (BJP) को दक्षिण भारत में उसके एकमात्र गढ़ से बाहर का रास्ता दिखा दिया. कांग्रेस ने 136 सीटों पर जीत दर्ज की है. इसके बाद बसवराज बोम्मई ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. अब बड़ा सवाल उठता है कि क्या बीएस येदियुरप्पा के बिना चुनाव लड़ना बीजेपी को भारी पड़ा है या कोई और कारण है.
कर्नाटक में पिछले कुछ सालों से भाजपा की राजनीति पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा के आसपास ही रही है, लेकिन 2 साल पहले बीजेपी ने बीएस येदियुरप्पा को हटाकर बसवराज बोम्मई को सत्ता की कमान सौंप दी थी. बीजेपी ने येदियुरप्पा को तो सीएम पद से हटा दिया था, लेकिन पार्टी उनका विकल्प नहीं ढूंढ पाई. भाजपा राज्य में नेताओं के मनमुटाव और मतभेदों को भी दूर नहीं कर पाई, जिससे पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. हालांकि, बसवराज बोम्मई भी लिंगायत नेता थे, लेकिन वे इस चुनाव में सीएम पद के चेहरे नहीं थे. ऐसे में बीजेपी ये भी संदेश देने में असफल रही कि लिंगायत समुदाय से उनका भावी सीएम होगा.
इस चुनाव में भाजपा ने वोक्कालिंगा समुदाय को ज्यादा साधने का प्रयास किया, जिससे गलत मैसेज जाने से लिंगायत समुदाय के गढ़ में पार्टी को नुकसान का सामना करना पड़ा. वहीं, कांग्रेस ने राज्य में अपने नेताओं को एकजुट रखी और बीजेपी के कमियों का फायदा उठाया. कांग्रेस ने बजरंग दल के खिलाफ जो वादा किया था, उससे पार्टी को सूबे में मुस्लिम वोटरों को साधने में मदद मिली. अब भाजपा को कर्नाटक में वापसी के लिए नए नेतृत्व लाने की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि येदियुरप्पा अपनी उम्र की उस पड़ाव में पहुंच गए, जहां उनसे ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती है.