बहुत दिनों बाद कांग्रेस ने बीजेपी को बुरी तरह हराया. शनिवार को कर्नाटक में कांग्रेस की जबरदस्त जीत हुई। विधानसभा के इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की सीधी टक्कर थी।बीजेपी ने पूरी ताकत लगाई थी, कांग्रेस को बड़ी जीत मिली, स्पष्ट बहुमत मिला और बीजेपी की बुरी हार हुई। बहुत दिन के बाद कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में उत्साह देखने को मिला और लंबे अरसे के बाद बीजेपी के खेमे में हताशा देखने को मिली। कर्नाटक में कांग्रेस को 224 में 136 सीटें मिली है। कांग्रेस को पिछले चुनाव के मुकाबले 56 सीटें ज्यादा मिली हैं। बीजेपी को चालीस सीटों का नुकसान हुआ है। बीजेपी को कुल 65 सीटें मिली हैं।
कर्नाटक के इस चुनाव की खास बात ये रही कि बीजेपी की सीटें तो कम हुईं लेकिन वोट परसेंट में कोई कमी नहीं आई। बीजेपी को इस बार भी 36 प्रतिशत वोट मिले। पिछले चुनाव में भी बीजेपी तो 36 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस को पिछली बार के मुकाबले 6 प्रतिशत वोट ज्यादा मिले लेकिन इस में से 5 प्रतिशत वोट JD-S से आए और एक प्रतिशत दूसरी पार्टियों के कम हुए। यही वजह है कि न तो कांग्रेस को कर्नाटक में इतनी ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद थी और न बीजेपी को इतनी बुरी हार की आंशका थी। कांग्रेस इस बार चौकन्नी थी, हर स्थिति के लिए तैयार थी, chartered plane भी खड़े थे और resort भी बुक थे, पर इस की नौबत ही नहीं आई। अब रविवार को बैंगलूरू में कांग्रेस विधायक दल की बैठक होगी…जिसमें नए मुख्यमंत्री के नाम का फैसला होगा।
अब सवाल ये है कि बीजेपी की इतनी बुरा हार क्यों हुई ? बीजेपी की पराजय की कहानी कांग्रेस के नेताओं के उन बयानों में छुपी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि जीत मिलकर काम करने का नतीजा है। अब तक बीजेपी कांग्रेस की अंदरुनी झगड़े का फायदा उठाती थी, इस बार कांग्रेस ने बीजेपी के अंदरुनी झगड़ों का फायदा उठाया। कांग्रेस नेता सिद्धरामैया ने कहा कि भ्रष्टाचार की वजह से बीजेपी की हार हुई। ‘चालीस परसेंट कमीशन’ की बात जनता के दिमाग पर चिपक गई। बीजेपी उसे धो नहीं पाई। अब तक बीजेपी कांग्रेस को ‘करप्शन का किंग’ बता कर कॉर्नर करती थी। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि हम गारंटी की वजह से जीते। बीजेपी इस चक्कर में रह गई उनकी केन्द्र की योजनाओं के लाभार्थी उन्हें वोट देंगे। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने कहा कि हमने जनता के मुद्दों को उठाया इसलिए वोट मिले। ये बात सही है क्योंकि बीजेपी ने भावनात्मक मुद्दे उठाए। उसका असर ये हुआ कि बीजेपी का अपना वोट बैंक ठीक रहा।
छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल कह रहे थे कि बजरंग बली की कृपा से जीते.. बीजेपी ने बजरंग बली के अपमान का मुद्दा उठाया था, हिन्दू वोट के लामबंद होने की उम्मीद थी, लेकिन इसका उल्टा असर भी हुआ। कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम मतदाता एकजुट हो गए और इसका फायदा कांग्रेस को हुआ। डीके शिवकुमार ने कहा कि जब वो जेल में थे, तभी उन्होंने कसम खाई थी कि बीजेपी को हराएंगे। बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में कांग्रेस को हराने का ऐसा जुनून नहीं दिखाई दिया। इसीलिए बीजेपी अतिरिक्त वोटरों को नहीं जोड़ पाई। जेडीएस को वोटों का जितना नुकसान हुआ वो कांग्रेस के पास चले गए और ये भी सच है कि बीजेपी आखिर तक इस बात का इंतजार करती रही कि त्रिशंकु विधानसभा होगी, रिजॉर्ट्स के दरवाजे खुलेंगे और किसी तरह जोड़-तोड़ करके हम सरकार बना लेंगे, लेकिन जनता का आदेश बिल्कुल स्पष्ट था।
अब कांग्रेस में इस बात के लिए दौड़भाग शुरू हो गई कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा। सिद्धारमैया पूर्व मुख्यमंत्री है, कर्नाटक में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं और मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार हैं, इसलिए वरूणा में चुनाव नतीजा घोषित होने के बाद सिद्धारमैया चार्टेड फ्लाइट से बैंगलुरू पहुंच गए.. लेकिन मुख्यमंत्री पद की रेस में कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डी के शिवकुमार भी हैं। शिवकुमार भी आठवीं बार चुनाव जीते हैं। उन्होंने कांग्रेस का पूरा कैंपेन मैनेज किया, पार्टी के लिए बहुत मेहनत की, इसलिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनकी दावेदारी भी मजबूत है।
कांग्रेस ने शुरुआत से ही स्थानीय मुद्दों पर फोकस किया। कर्नाटक में कांग्रेस नेताओं को इस बात का भी अंदाजा था कि बीजेपी स्थानीय नेतृत्व कमजोर है और पार्टी अपने दम पर लड़ नहीं पाएगी। कांग्रेस ने ये भी समझ लिया था कि वो मोदी से नहीं जीत सकती, इसलिए हमला मोदी की बजाए कर्नाटक की सरकार के भ्रष्टाचार पर था, नाकाबिलियत पर था। कांग्रेस ने अपने यहां के गुटों को, आपसी झगड़ों को भी ठीक से मैनेज किया। पार्टी के सारे नेता बीजेपी को हराने के लिए एकजुट होकर लड़े। इसका फायदा कांग्रेस को हुआ। दूसरी तरफ बीजेपी में कर्नाटक के नेता आपस में टकरा रहे थे, कोई टिकट कटने से नाराज था, तो कोई अहमियत न मिलने से परेशान। येदियुरप्पा और बोम्मई अपना वर्चस्व साबित करने में लगे रहे। राज्य सरकार का काम लचर था। भ्रष्टाचार के इल्जाम का बीजेपी कोई सॉलिड जवाब भी नहीं दे पाई। भ्रष्टाचार और लचर काम जैसे मुद्दों को दबाने के लिए मोदी का सहारा लिया गया। पूरी कोशिश के बावजूद मोदी का कैंपेन पार्टी को बचा नहीं पाया। उसकी वजह ये है कि जब तक मोदी मैदान में उतरे, तब तक कर्नाटक की जनता अपना मन बना चुकी थी, लोग वहां की सरकार से नाराज थे।
मोदी के अलावा बीजेपी ने आरएसएस नेटवर्क, बूथ मैनेजमेंट और पन्ना प्रमुखों पर ध्यान केंद्रित किया। बीजेपी के संगठन मंत्री बीएल संतोष कर्नाटक से आते हैं। उन्हें अपनी मशीनरी पर पूरा भरोसा था। बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने काम तो किया लेकिन मन से नहीं किया। पार्टी के कार्यकर्ता बूथ तक तो पहुंचे, लेकिन उनमें उत्साह की कमी थी। उन्होंने कांग्रेस की तरह इस चुनाव को जीवन मरण का प्रश्न नहीं बनाया। कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस को एक निर्णायक जनादेश दिया है। कांग्रेस की जीत में राहुल और प्रियंका का रोल है, डी के शिवकुमार और सिद्धरामैया और खरगे को भी पूरा श्रेय मिलना चाहिए।
कांग्रेस के नेताओं ने जो भाईचारा इलैक्शन कैंपेन के दौरान दिखाया, वो भाईचारा मुख्यमंत्री चुनने और सरकार बनाने में भी दिखाएं तभी कर्नाटक का भला होगा। जहां तक बीजेपी का सवाल है, इसके बाद अब मौका है कर्नाटक में नया नेतृत्व तैयार करने का, पुराने जाल से निकल कर नई जमीन तैयार करने का। इस चुनाव की एक अच्छी बात ये हुई कि जेडी-एस बिल्कुल किनारे हो गई। जेडी-एस ने जो पांच परसेंट वोट खोया वो सारा कांग्रेस के पास आया।