कर्नाटक के चुनाव संपन्न हो चुके हैं और अब परिणाम आने तक टीवी वाले अवश्य ही नेताओं से यह पूछ–पूछ कर अपने चैनलों का पेट भरने में लग गए होंगे कि वे अपनी चुनाव की थकान कैसे उतार रहे हैं–सो कर‚ बच्चों के साथ खेल कर‚ टीवी या सिनेमा देखकर या फिर किसी और तरीके से। ऐसे में इन टीवी वालों से निवेदन है कि जरा बजरंगी बली से भी पता कर लें कि वे अपनी चुनावी थकान कैसे उतार रहे हैं। इस बार कर्नाटक चुनाव में वे भी काफी व्यस्त रहे। नहीं जी नहीं‚ नेताओं की तरह यह गाली और वो गाली देने में व्यस्त नहीं रहे। वे चुनाव ड्यूटी पर लगाए गए सरकारी कर्मचारियों की तरह भी व्यस्त नहीं रहे कि देखें मशीन ठीक चल रही है या नहीं‚ बूथ की व्यवस्था और पुलिस बंदोबस्त ठीक है कि नहीं। वे इस गाडी या उस गाडी से अवैध नकदी या शराब की बरामदगी के लिए छापेमारी भी नहीं कर रहे थे। वे चुनाव आयोग की तरह तोे बिल्कुल भी व्यस्त नहीं रहे। जब चुनाव आयोग ही अलमस्त रहा‚ तो वे उसकी तरह व्यस्त क्यों होते।
इस चुनाव में वे बिल्कुल वैसे ही व्यस्त रहे जैसे पिछले कई वर्षों से चुनावों में उनके आराध्य भगवान राम व्यस्त रहते थे। इस बार शायद रामजी की कृपा से ही और उनकी मर्जी से ही बजरंग बली ने यह ड्यूटी निभाई होगी। इतने वर्ष निरंतर चुनाव प्रचार को ढोना कोई आसान काम थोडे ही है। सो‚ उन्होंने बिल्कुल उसी तरह अपने आराध्य को विश्राम दिया जैसे भाजपा ने गुजरात मॉडल को विश्राम दिया। गुजरात मॉडल भी कई वर्षो से भाजपा के प्रचार में लगा रहा। इस बार पार्टी ने उसे विश्राम दिया। इस बार तो बाबा के बुलडोजर मॉडल की ही धूम रही। इस लिहाज से यह चुनाव काफी महत्वपूर्ण रहा कि एक तो रामजी को और दूसरे गुजरात मॉडल को कुछ विश्राम मिला और दूसरे उनके दो विकल्प भी मिल गए। भाजपा कोई विपक्ष नहीं है कि विकल्प ही न खोज पाए। वैसे तो बजरंग बली का चुनावी अनुभव कोई बहुत नया भी नहीं है। बजरंग दल वालों ने उनके लिए राजनीति को ऐसा कोई अछूत भी नहीं रहने दिया है‚ और फिर केजरीवाल जी भी हनुमान चालीसा का पाठ करते ही रहे हैं। और आशीर्वाद के लिए तो नेता लोग उनके चरणों में गिरे ही रहते हैं। फिर भी उनसे यह अवश्य ही जानना चाहिए कि वे चुनाव प्रचार की थकान कैसे उतार रहे हैं।