पटना हाईकोर्ट ने जातीय गणना पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. चीफ जस्टिस की बेंच में आदेश दिया गया है कि तत्का प्रभाव से इसे रोकें. इसी के साथ हाईकोर्ट ने डाटा सुरक्षित रखने का भी निर्देश दिया है. आपको बता दें कि बीते दिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रखा था. यह फैसला जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच द्वारा लिया गया. मामले में 3 जुलाई को अगली सुनवाई होगी. अब इस पर सियासी रार शुरू हो गई है.
खासकर बीजेपी अब नीतीश सरकार पर हमलावर हो रही है. बीजेपी से राज्यसभा सांसद व बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने कहा कि जनगणना पर हाई कोर्ट में नीतीश सरकार की भद पिटी है. नीतीश सरकार द्वारा सही ढंग से हाईकोर्ट में पक्ष ढंग से नहीं रखा गया. उन्होंने कहा कि बीजेपी भाजपा के बिहार सरकार में रहते हुए जातीय जनगणना का फैसला लिया गया था. सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जातीय जनगणना कराने के विरुद्ध एक भी कानूनी सवाल का जवाब दमदार ढंग से नहीं दे पाने के कारण हाईकोर्ट में फिर नीतीश सरकार की भद पिटी. जनगणना कराने का फैसला उस एनडीए सरकार था, जिसमें भाजपा शामिल थी. उन्होंने कहा कि अदालत की अंतरिम रोक के बाद जातीय जनगणना लंबे समय तक टल सकती है और इसके लिए मुख्यमंत्री जिम्मेदार हैं.
सुशील मोदी ने कहा कि जनगणना के संबंध में तीन बड़े न्यायिक प्रश्न थे. जिस मुद्दे पर विरोध पक्ष से मुकुल रहोतगी जैसे बड़े वकील बहस कर चुके थे, उस पर जवाब देने के लिए वैसे ही कद्दावर वकीलों को क्यों नहीं खड़ा किया गया ? उन्होंने कहा कि क्या इससे निजता के अधिकार का हनन होता है? क्या यह कवायद सर्वे की आड़ में जनगणना है? इसके लिए कानून क्यों नहीं बनाया गया? उन्होंने कहा कि सरकार के वकील इन तीनों सवालों पर अपनी दलील से न्यायालय को संतुष्ट नहीं कर पाये. इससे लगता है कि सरकार यह मुकदमा जीतना ही नहीं चाहती थी .
जातीय जनगणना को लेकर आये हाईकोर्ट के आदेश पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी द्वारा दिए गए बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए राजद प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा है कि किसी भी बात पर झूठ बोलना सम्राट चौधरी की मजबूरी है क्योंकि जिस पार्टी में वह हैं वहां योग्यता की परख झूठ बोलने के आधार पर ही की जाती है। वैसे जातीय गणना और आरक्षण जैसे मुद्ों पर राजद को किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है।
राजद प्रवक्ता ने कहा कि जातीय जनगणना पर भाजपा का दोहरा चरित्र सर्वविदित है। हाईकोर्ट के आदेश पर एक ओर भाजपा जहां खुशी मना रही है वहीं दूसरी ओर घडियाली आंसू भी बहा रही है। यदि उसकी नीयत साफ है तो राष्ट्रीय स्तर पर वह जातीय जनगणना क्यों नहीं करवा रही हैॽ राजद प्रवक्ता ने कहा कि सम्राट चौधरी को नहीं भूलना चाहिए कि यूपीए सरकार के समय २००९ में ही राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने संसद में जातीय जनगणना की मांग उठाई थी और तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा २०११ की जनगणना में जातीय और आर्थिक गणना भी हुई थी जिसकी अन्तिम रिपोर्ट २०१५ में आयी जब केन्द्र में एनडीए की सरकार बन गई थी। एनडीए की सरकार द्वारा जातीय गणना के प्रकाशन पर रोक लगा दी गयी जिसके विरोध में लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद द्वारा राज्यव्यापी आन्दोलन किया गया था। उस समय केन्द्र की एनडीए सरकार में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में घोषणा की थी कि २०२१ में होने वाली जनगणना में जातीय जनगणना कराई जाएगी। २०२३ आ गया पर केन्द्र की सरकार द्वारा अभी तक कोई पहल नहीं किए जाने पर बाध्य होकर राज्य सरकार द्वारा अपने संसाधन से जातीय जनगणना कराने का निर्णय लिया गया जिसका एक चरण पूरा भी हो चुका है और दूसरे चरण में भी काफी काम हो चुका है।
हाईकोर्ट में जो रिट दायर किया गया है उसमें यही कहा गया है कि जनगणना कराने का अधिकार केन्द्र सरकार को है‚ राज्य सरकार को नहीं। भाजपा की नीयत यदि साफ है तो वह क्यों नहीं राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना करवा रही है। राजद प्रवक्ता ने कहा कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी जी एवं अन्य भाजपा नेताओं के बयान से जातीय जनगणना पर भाजपा का दोहरा चरित्र सर्वविदित हो चुका है।
बिहार विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने पटना उच्च न्यायालय द्वारा जाति आधारित गणना पर अंतरिम आदेश के द्वारा रोक लगाए जाने पर कहा है कि यह रोक महागठबंधन सरकार की नीयत में खोट का परिणाम है। श्री सिन्हा ने कहा कि भाजपा ने शुरू से ही जाति आधारित गणना का इस आधार पर समर्थन किया था कि ये एक समान नीति‚ पद्धति एवं कार्यान्वयन प्रारूप बनाकर सबों की सहमति लेंगे और इसे पूरा करायेंगे। लेकिन पहले दिन से ही इनकी नीयत में खोट थी।
श्री सिन्हा ने कहा कि पहले इन्होंने अगस्त २०२२ में एनड़ीए छोडा और फिर इसके कार्यान्वयन के लिए त्रुटिपूर्ण नीति बनायी। इन्हें डर था कि भाजपा का सरकार में साथ रहने पर इन्हें समावेशी नीति‚ पद्धति एवं कार्यान्वयन प्रारूप बनाना पड सकता था। श्री सिन्हा ने कहा कि इसे टालने की इनकी मंशा इसमें भी परिलक्षित होती है कि कार्यसूची में लाये बिना इन्होंने विधान सभा में संकल्प को रखा और न तो बहस कराया न ही इसे जनमत जानने हेतु भेजा। दो मिनट में यह संकल्प हडबडी में पारित किया गया। श्री सिन्हा ने कहा कि प्रथम चरण की जाति आधारित गणना पूरा कर लेने का दावा किया गया। फिर दूसरे चरण की गणना की शुरुआत की गई। मुख्य जाति और उसकी उपजाति को अलग–अलग कर उन्हें परेशान कर दिया गया। कई जातियों के संगठन और जनप्रतिनिधियों ने सरकार और मुख्यमंत्री को इन त्रुटियों का निवारण के लिए ज्ञापन भी दिया लेकिन निवारण हेतु कोई कार्रवाई नहीं हुई।
हाईकोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा ने कहा कि जातीय गणना बिहार सरकार का एक नीतिगत निर्णय है और संवैधानिक तौर पर कोई भी राज्य सरकार नीतिगत फैसला लेने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है। बिहार के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पारित होने के बाद जातीय गणना कराने का निर्णय हमारी सरकार ने लिया है। हम न्यायालय का सम्मान करते हैं। परंतु मेरा मानना है कि इस निर्णय पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। गरीबों के हित में यह निर्णय न्यायसंगत नहीं है। बिहार सरकार कानूनी प्रक्रिया के तहत हर लडाई लडने को तैयार है और सरकार अपने स्तर से सम्भावित विकल्पों की तलाश कर रही है। कोर्ट का यह फैसला अंतिम फैसला नहीं है। संघी मानसिकता वाले नफरती लोगों के द्वारा जातीय गणना के बारे में समाज में दुष्प्रचार किया जा रहा है जो कि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि सामाजिक संरचना की वजह से जो वर्ग आज शैक्षणिक‚ आर्थिक और सामाजिक रूप से पीछे रह गया है‚ सरकार उसे मुख्यधारा में जोडने के लिए जातीय गणना करवा रही है क्योंकि बिना पुख्ता जानकारी के सरकारी योजनाओं का कारगर क्रियान्वयन सम्भव नहीं है। किस वर्ग के लोगों की क्या सामाजिक स्थिति है‚ यह जाने बगैर उस समाज का कल्याण और उत्थान नहीं किया जा सकता है। हमारी सरकार शुरू से गरीब–गुरबों के लिए समर्पित रही है और अपनी जनहित की नीति पर अडिग होकर बिहारवासियों के हित में कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि कुछ लोग गरीब और दलित विरोधी नीतियों पर चल रहे हैं।
उन्हें इस बात डर सता रहा है कि अब जिन शोषित वर्गों की हकमारी सदियों से की जा रही थी अब जातीय गणना के साथ वो लोग अपने हक और अधिकार की आवाज बुलंद करना शुरू कर देंगे और एक जनजागृति का माहौल पैदा होगा।
जातीय गणना पर पटना हाई कोर्ट द्वारा लगाई गई तात्कालिक रोक का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। कोर्ट के फैसले पर यह टिप्पणी आरएलजेडी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने गुरुवार को किया। उन्होंने कहा कि सरकार के पास आंकडा नहीं है‚ यह सबको मालूम है। ऐसे में इस प्रकार के आंकडे की जरूरत है। जातीय जनगणना पर चल रही कानूनी लडाई में राज्य सरकार को चाहिए था कि पूरी तैयारी के साथ मुकदमा लडती। उन्होंने नीतीश सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि सरकार के सुस्त रवैया और नन सीरियस होने का परिणाम है कि ऐसा फैसला आया है। उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश सरकार से कडे शब्दों में मांग की कि अब तत्काल इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जाए। काम में रुचि लेकर इसे नीतीश सरकार सफल बनाए ताकि फैसला बदला जा सके।
उन्होंने कहा कि बिहार सरकार यह रवैया पहली बार नहीं दिखा है। राज्य सरकार पहले भी लापरवाह ढंग से काम करती रही है। बिहार की सरकार और नीतीश कुमार जो दूसरे राज्य में जाकर घूमते हैं और इसी कारण ये सब हुआ है। यह दिखाता है कि सरकार की कोई रुचि कोर्ट के किसी भी फैसले पर नहीं है‚ नीतीश कुमार ऐसी चीजों में रुचि नहीं रखते हैं। इसी कारण अब जातीय गणना पर पटना हाई कोर्ट ने रोक लगाने का आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि यह नीतीश सरकार की जवाबदेही थी कि वह कोर्ट को समझाती कि जातीय गणना का निर्णय संविधान के विरुद्ध नहीं है‚ लेकिन जो फैसला आया है उससे स्पष्ट है कि कुल मिलाकर राज्य सरकार की लापरवाही से यह हुआ है।