भाजपा ने उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में पहली बार बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। भाजपा का मानना है कि मुस्लिम समुदाय अब मोदी–योगी सरकार द्वारा किए गए कामों की चर्चा कर रहा है। यही कारण है कि मुस्लिम समुदाय में ‘सबका साथ–सबका विकास’ का नारा असर कर रहा है। सवाल है कि भाजपा का मुस्लिम उम्मीदवारों को बड़ी संख्या में निकाय चुनाव में उतारने का दांव क्या वास्तव में कोई गुल खिला पाएगाॽ निश्चित रूप से भाजपा के इस दांव से कुछ मुस्लिम वोट भाजपा के खाते में जाएंगी लेकिन इसमें अभी संदेह है कि अपेक्षानुरूप मुस्लिम वोट भाजपा को मिल पाएंगी।
गौरतलब है कि भाजपा ने निकाय चुनावों में ३९५ मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। इनमें 6 नगर पालिका परिषदों और ३२ नगर पंचायतों के अध्यक्ष प्रत्याशियों के अलावा नगर निगमों के १०० पार्षद प्रत्याशी शामिल हैं। २५७ मुस्लिम प्रत्याशी नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों के सदस्य पदों के लिए भी चुनाव मैदान में उतारे गए हैं। भाजपा का कहना है कि प्रधानमंत्री आवास योजना‚ राशन योजना और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं का लाभ अल्पसंख्यक समुदाय को भी पूरी तरह से पहुंचाया जा रहा है। सरकारी अस्पतालों में विभिन्न तरह की चिकित्सा सेवाओं का लाभ भी ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय ही उठा रहा है। पार्टी का मानना है कि इन योजनाओं से मिली सुविधाओं के कारण काफी हद तक अल्पसंख्यक समुदाय की वोट भाजपा को मिलेंगी। भाजपा के इस दावे से अलग अगर मुस्लिम समाज के बीच जाकर मुसलमानों को मिल रही इन सुविधाओं का व्यावहारिक विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि वास्तव में अल्पसंख्यकों को ये सुविधाएं मिल रही हैं। अगर अल्पसंख्यक समुदाय से यह सवाल किया जाए तो वह स्वयं भी यह स्वीकार करता है कि उन्हें सुविधाएं मिल रही हैं लेकिन भाजपा को वोट देने के सवाल पर ज्यादातर मुसलमान चुप्पी साध लेते हैं।
दरअसल‚ मुसलमानों को टिकट देने के मामले में भाजपा का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है। पहले कुछ उग्र भाजपा नेता यह कहते हुए भी सुने गए हैं कि हमें मुसलमानों के वोट ही नहीं चाहिए। कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में भी भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार गायब दिखते हैं। अगर उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा और लोक सभा चुनावों के भाजपा उम्मीदवारों पर नजर डाली जाए तो वहां भी मुस्लिम उम्मीदवार नदारद थे। अब भाजपा बताने की कोशिश कर रही है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता और बढ़ी है। अगर भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार जीतते हैं‚ तो समाज में यह संदेश पहुंचाना आसान हो जाएगा कि मुसलमान भी भाजपा के साथ हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही है‚ तो दूसरी तरफ बसपा की लोकप्रियता भी घटी है। ऐसे में भाजपा के सामने समाजवादी पार्टी ही बड़ी चुनौती है। भाजपा मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर सपा को बड़ी चुनौती देना चाहती है। हालांकि यह अभी भविष्य के गर्भ में है कि भाजपा सपा को चुनौती देकर मुसलमानों को भाजपा की तरफ खींचती है या नहीं। अभी तक भाजपा सरकार से विभिन्न सुविधाएं मिलने के बावजूद ज्यादातर मुसलमान भाजपा के लिए अच्छी राय नहीं रखते। वे यही सोचते हैं कि भाजपा जानबूझकर समाज में मुसलमानों के खिलाफ नफरत पैदा करने की कोशिश करती है। हालांकि भाजपा विश्वास दिलाने की कोशिश करती रही है कि मुसलमानों को सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर डरने की जरूरत नहीं है। लेकिन मुसलमान भाजपा पर विश्वास नहीं कर पा रहे।
वास्तविकता यह है कि मुस्लिम समुदाय भाजपा से अपना जुड़ाव महसूस नहीं करता। हालांकि ऐसा नहीं है कि मुसलमान भाजपा से बिल्कुल नहीं जुड़े हैं। व्यक्तिगत स्वार्थ या फिर किसी अन्य कारणों से बहुत कम मुसलमान भाजपा से जुड़े हैं। भाजपा की रणनीति है कि एक बार मुसलमानों का भाजपा से जुड़ने का प्रतिशत बढ़ जाएगा तो मुस्लिम समुदाय के बड़े तबके को आसानी से भाजपा के साथ जोड़ा जा सकेगा। पार्टी अच्छी तरह जानती है कि भले ही वह मुसलमानों को अपना वोटर न माने लेकिन भविष्य में बदली हुई परिस्थितियों में विभिन्न तरह की चुनौतियां बढ़ेंगी। ऐसे में अगर मुस्लिम वोटर भाजपा के साथ होगा तो इन चुनौतियों से आसानी से निपटा जा सकेगा। वैसे भी अब भाजपा हर वर्ग और समुदाय में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है। पिछले कुछ चुनावों में देखा गया है कि भाजपा को दलित समुदाय के वोट भी अच्छी खासी मात्रा में मिले। इसलिए अगर वह मुस्लिम वोटरों को साध लेगी तो एक तीर से दो निशाने लग जाएंगे। एक तो मुसलमानों से नफरत करने के आरोप का दाग धुल जाएगा; दूसरा‚ इस प्रक्रिया से भाजपा की ताकत भी बढ़ेगी। हालांकि मुस्लिम वोटरों को साधना व्यावहारिक रूप से इतना आसान नहीं है। देखना है कि निकाय चुनाव में भाजपा की बदली हुई रणनीति सफल हो पाती है‚ या नहीं।