केंद्र सरकार ने LGBTQIA+ समुदाय के सामने आने वाले मुद्दों पर गौर करने के लिए केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने के लिए सहमत जताई है। समलैंगिक विवाह से जुड़ी एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज सुनवाई की है। इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने SC को अवगत कराया कि समलैंगिक जोड़े के सामने आने वाले मुद्दों को देखने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जाएगा। मेहता का कहना है कि याचिकाकर्ता सुझाव दे सकते हैं ताकि समिति इस पर काम कर सके।
केंद्र ने कहा- याचिकाकर्ता भी सुझाव दे सकते हैं और हम इन सुझावों को लेकर सकारात्मक हैं।
इससे पहले 27 अप्रैल को सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने वाली 20 याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि वे बताएं कि समलैंगिक जोड़ों की शादी को कानूनी मान्यता न दी जाए तो इससे उन्हें क्या-क्या फायदा होगा।
27 अप्रैल को ही 120 पूर्व अधिकारियों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेटर लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की। उन्होंने कहा कि भारत में अगर सेम सेक्स मैरिज पर कानून बन जाता है तो पूरे देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। यह लेटर लिखने वालों में रिटायर्ड जज, पूर्व IAS-IPS हैं।
इस मामले की सुनवाई CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की संवैधानिक बेंच कर रही है।
पिछली सुनवाई में SG तुषार मेहता की दलीलें दी थीं…
- स्पेशल मैरिज एक्ट केवल अपोजिट जेंडर वालों के लिए है। अलग आस्थाओं वालों के लिए इसे लाया गया। सरकार बाध्य नहीं है कि हर निजी रिश्ते को मान्यता दे। याचिकाकर्ता चाहते हैं कि नए मकसद के साथ नई क्लास बना दी जाए। इसकी कभी कल्पना नहीं की गई थी।
- सरकार को किसी रिश्ते को मान्यता देने में धीमा चलना होगा, क्योंकि इस स्थिति में वह सामाजिक और निजी रिश्ते के मंच पर होता है। देखा जाए तो अपोजिट जेंडरवालों में शादियों को नियंत्रित नहीं किया जाता है, लेकिन समाज को लगता है कि आप लोगों को किसी भी उम्र में और कई बार शादी की इजाजत नहीं दे सकते। ऐसी कई चीजें हैं।
- अपोजिट जेंडर वाले समलैंगिकों को दिए जाने वाले बेनिफिट की मांग सकते हैं। यह भी हो सकता है कि अपोजिट जेंडर वाले शादीशुदा अदालत में आएंगे और कहेंगे कि मुझे वही लाभ मिले जो समलैंगिक जोड़ों को मिलता है, क्योंकि मैं भीतर से हेट्रोसेक्शुअल (विषमलैंगिक) हो सकता हूं, लेकिन मुझे कुछ और लगता है…।
- पांच साल बाद क्या होगा, कल्पना करें। सेक्शुअल ऑटोनॉमी का हवाला देकर कोई अनाचार पर रोक लगाने वाले प्रावधानों को ही कोर्ट में चुनौती दे सकता है। इस पर CJI ने कहा कि ये तर्कसंगत नहीं है। कोई भी अदालत कभी भी इसका समर्थन नहीं करेगी।
- समलैंगिक विवाह की मान्यता की मांग करने वाले स्पेशल मैरिज एक्ट को दोबारा लिखवाना चाहते हैं। याचिकाकर्ता अपनी जरूरत देख रहे हैं। क्या कोई एक्ट ऐसा हो सकता है कि एक तरफ वह अपोजिट जेंडर पर लागू हो और दूसरी तरफ समलैंगिकों पर। इसका कोई मतलब नहीं हो सकता।