सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने सोमवार को तलाक को लेकर अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर पति-पत्नी का रिश्ता इतना खराब हो चुका है कि अब सुलह की गुंजाइश ही न बची हो, तो कोर्ट भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत तलाक को मंजूरी दे सकता है। इसके लिए उन्हें फैमिली कोर्ट नहीं जाना होगा और न ही 6 महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं होगा।
कोर्ट ने कहा कि उसने वे फैक्टर्स तय किए हैं, जिनके आधार पर शादी को सुलह की संभावना से परे माना जा सकेगा। इसके साथ ही कोर्ट यह भी सुनिश्चित करेगा कि पति-पत्नी के बीच बराबरी कैसे रहेगी। इसमें मैंटेनेंस, एलिमोनी और बच्चों की कस्टडी शामिल है। कोर्ट ने यह आदेश 20 सितंबर 2022 को ही सुरक्षित रख लिया था।
6 महीने का समय हटाने को लेकर सुनवाई कर रही थी बेंच
जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, ए. एस ओका, विक्रम नाथ और जे. के महेश्वरी की संवैधानिक बेंच जिस मुद्दे के तहत सुनवाई कर रही थी, वह था कि हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13बी के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए अनिवार्य किया गया 6 महीने का समय हटाया जा सकता है या नहीं।
हालांकि सुनवाई के दौरान संवैधानिक बेंच ने इस मुद्दे पर सुनवाई करना तय किया कि शादी अगर पूरी तरह टूट चुकी है तो क्या इसे तलाक देने का आधार माना जा सकता है या नहीं। इसे लेकर कोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा कि अगर दंपती के तलाक के पिछले फैसले में जो भी शर्तें रखी गई हैं, अगर वे पूरी होती हैं तो आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए 6 महीने का इंतजार करना जरूरी नहीं होगा।
क्या था मामला ?
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस सवाल को लेकर सुनवाई की थी कि शीर्ष अदालत को को किसी शादी को सीधे रद्द करार देने का अधिकार है या उसे निचली अदालत के फैसले के बाद ही अपील सुननी चाहिए .
पिछले दो दशक से अधिक समय से सुप्रीम कोर्ट ने असाधारण रूप से टूटी हुई शादियों को रद्द करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत मिली विशाल शक्तियों का प्रयोग करता रहा है. हालांकि, सितंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार करने के लिए सहमत हो गया था कि क्या वह दोनों पार्टनर की सहमति के बिना अलग रह रहे जोड़ों के बीच विवाह को रद्द कर सकता है. 29 सितंबर, 2022 को पीठ ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.