कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 (Karnataka Assembly Elections 2023) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) सत्ता विरोधी लहर (Anti Incumbency) के साथ-साथ बसवराज बोम्मई (Basavraj Bommai) सरकार पर भ्रष्टाचार (Corruption) के आरोपों से भी मुकाबला कर रही है. हालांकि संपूर्ण हिंदुत्व (Hindutva) मसलों से परहेज करते हुए बीजेपी ने मुसलमानों से 4 फीसदी आरक्षण लेकर उन्हें लिंगायत और वोक्कालिगा में बांटने का दांव चला है. इस उम्मीद के साथ इससे लिंगायत और वोक्कालिगा मतदाताओं को प्रभावित कर उन्हें अपनी तरफ खींचने में सफल रहेगी. हालांकि कर्नाटक में लगातार दो बार सत्ता हासिल करने किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए टेढ़ी खीर ही साबित हुआ है. ऐसे में बीजेपी ने अपने चुनावी अभियान की पूरा दारोमदार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi), सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास उद्घोष समेत केंद्र सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं पर ही केंद्रित किया है. जाहिर है बीजेपी कर्नाटक में सत्ता बरकरार रखने के लिए पूरी ताकत से लड़ रही है, जहां 10 मई को चुनाव होने हैं. इन चुनावों में बीजेपी की क्या संभावनाएं हैं? इसे कर्नाटक चुनावों में भाजपा की ताकत, कमजोरियों, अवसरों और खतरों के मद्देनजर देखते हैं.
ताकत: बीएस येदियुरप्पा
2013 में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने पार्टी से नाता तोड़ अपनी पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष (केजेपी) के बैनर तले चुनाव लड़ा. केजेपी ने राज्य के 224 विधानसभा क्षेत्रों में से 204 सीटों पर चुनाव लड़ा. जाहिर है केजेपी ने उस चुनाव में विशेष रूप से अच्छा प्रदर्शन नहीं किया और उसे सिर्फ छह विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई. यही नहीं, केजेपी का राज्य वार वोट शेयर 14 फीसदी ही था. फिर भी इसने भाजपा को भारी नुकसान पहुंचाया. ऐसे में बीजेपी को येदियुरप्पा के पार्टी में न होने की कीमत का एहसास हुआ और 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें वापस ले आया गया. 2013 के चुनावों के अनुभव के साथ यह कहा जा सकता है कि 2018 में भाजपा का प्रदर्शन और 2023 में उसकी संभावनाएं येदियुरप्पा के पार्टी में न होने से बहुत खराब होतीं.
कमजोरी: भाजपा के 201 प्रदर्शन में कुछ कमी
येदियुरप्पा के केसरिया पार्टी में वापस आ जाने और 2018 के चुनावों में सत्ता विरोधी लहर का लाभ उठाने के बावजूद भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल करने में विफल रही. 2008 से 2018 तक के परिणामों का उप-क्षेत्रीय विश्लेषण इस प्रश्न पर कुछ प्रकाश डाल सकता है. भाजपा ने तटीय और मध्य कर्नाटक में अपने प्रदर्शन में काफी सुधार किया है. इनमें पहला भाजपा का पारंपरिक गढ़ रहा है और दूसरे में लिंगायतों का वर्चस्व माना जाता है. यही वजह है कि येदियुरप्पा महत्वपूर्ण हैं. बीजेपी कांग्रेस के बॉम्बे और हैदराबाद कर्नाटक और जनता दल (सेक्युलर) के दक्षिणी कर्नाटक के पारंपरिक गढ़ों में पैठ बनाने में विफल रही है. यह कांग्रेस और जद (एस) की सीटों के मामले में एक महत्वपूर्ण न्यूनतम परिणाम हासिल करने की क्षमता थी, जिसने 2018 के परिणामों के बाद दोनों पार्टियों के बीच चुनाव बाद गठबंधन की नींव रखी.
अवसर: जद (एस) के गढ़ों में प्रवेश भाजपा को दे सकता है अप्रत्याशित लाभ
कांग्रेस और जद (एस) के बीच गठबंधन सत्ता को अपने पास बनाए रखने से अधिक प्रेरित था. इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि भाजपा दक्षिणी कर्नाटक क्षेत्र में व्यावहारिक रूप से गायब थी और यह कांग्रेस ही है, जो इस क्षेत्र में जद (एस) की एकमात्र विरोधी थी. 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और जद (एस) के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन इन विरोधाभासों के भार के तहत टूट गया और भाजपा इस चुनाव में सबसे बड़ी लाभार्थी बनकर उभरी. 2018 के विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों की तुलना से यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि भाजपा ने 2019 में दक्षिणी कर्नाटक क्षेत्रों में अपनी सीटों की हिस्सेदारी के क्रम में वृद्धि की है. यदि भाजपा जद (एस) की कीमत पर दक्षिणी कर्नाटक में अपने प्रदर्शन को दोहरा सकती है, तो यह आगामी चुनावों में बड़ी बढ़त हासिल करने के लिए मददगार साबित होगा.
जोखिमः क्या दलबदल से बीजेपी को होगा नुकसान
राज्य में बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है. इस वजह से कई दिग्गजों ने पार्टी से किनारा कर लिया है. पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी हाल ही में कांग्रेस में शामिल हो गए. ये दोनों लिंगायत समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और राज्य के बॉम्बे कर्नाटक क्षेत्र में काफी प्रभाव रखते हैं. जगदीश शेट्टार की अपने हुबली-धारवाड़ निर्वाचन क्षेत्र से जीत की प्रतिबद्ध क्षमता रही है. पिछले तीन चुनावों में उनकी जीत का अंतर कम से कम कुल पड़े मतों का 14 फीसद रहा है. हालांकि भाजपा की चुनावी संभावनाओं पर इन दलबदलों के प्रभाव का आकलन करना जल्दबाजी होगी, लेकिन उन्होंने निश्चित रूप से पार्टी के लिए जोखिम बढ़ा दिया है. यह कांग्रेस की ओर मतदाताओं को भेजने में भूमिका निभा सकता है, जो राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी है.