आज के समय में जनता किसी नेता से सादगी और शुचिता की आस रख सकती हैॽ सादगी‚ ईमानदारी और नैतिक होने का जो अहसास देश के पहले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री कराते हैं‚ वैसा शायद अब देखने को नहीं मिलता है। क्योंकि सादगी मानवीय गुण है और उसका कोई मूल्य नहीं हो सकता। ये सारी बातें इसलिए कही जा रही है क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास की मरम्मत और उसकी साज–सज्जा पर लगभग ४५ करोड़़ रुûपये खर्चने का आरोप लगा है।
दरअसल‚ राजनीति को करीब से जानने वाले इस तथ्य से कतई हैरान नहीं होंगे कि आवास को सजाने और संवारने के लिए बिना सोचे–विचारे भारी धनराशि पानी की तरह बहायी जाती है। इस मामले में कमोबेश हरेक दल निर्मम होता है। हां‚ किसी के बारे में पता चल जाता है तो किसी के सरकारी रकम के दुरुपयोग की खबर किसी कोने में दबी रह जाती है। केजरीवाल इतने खुशनसीब नहीं रहे और उनकी फिजूलखर्ची की कहानी सरेआम हो गई। बहरहाल‚ केजरीवाल पर आरोपों की बौछार इसलिए हो रही है क्योंकि राजनीति की पूरी परिभाषा‚ उसके चाल–चलन–चरित्र को पूरी तरह पलट कर रखने का दावा और दंभ भरने का दावा यही करते थे। राजनीति में धारणा (नैरेटिव) का काफी अहम रोल होता है‚ लेेकिन कई बार धारा उल्टी भी बहती है। केजरीवाल अन्ना आंदोलन से राजनीति में पदस्थापित हुए। उन्होंने शुरुआत में ईमानदार होने और उससे भी बढ़कर राजनीति को ईमानदारी के साथ चलाने का वादा किया। मगर कहते हैं न ‘सियासत काजल की कोठरी के समान है’। विरला ही इसमें बे–दाग रह पाता है। अलबत्ता‚ केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी किसी तरह विपक्ष के ‘हमले’ से संभलते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ ओरोपों की मिसाइल मोड़़ दी है। प्रधानमंत्री के आवास पर ५०० करोड़़ रुपये खर्च करने का आरोप जड़़ दिया‚ मगर यह सब सिर्फ जुबानी जमा खर्च के समान है। केजरीवाल इसलिए बुरी तरह घिरते दिखते हैं क्योंकि राजनीति में बोलने या करने से ज्यादा दिखने का महत्व होता है। केजरीवाल की कथनी और करनी में भारी अंतर दिखता है। स्वाभाविक है वह निशाने पर भी ज्यादा रहेंगे। वैसे‚ होना तो यही चाहिए कि किसी भी नेता को एक तय रकम ही खर्च करने का अधिकार मिले। अनाप–शनाप खर्च से राजनीति तेजी से कुरूप होती जाएगी।