सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने नया एफीडे़विट दाखिल किया है। इसमें सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का नजरिया मांगने को कहा गया है। केंद्र सरकार चाहती है‚ इस मामले में सुनवाई ही ना हो क्योंकि यह बहुत संवेदनशील मुद्दा है। इस पर अदालत का कहना है‚ यह कवायद आने वाली पीढियों के लिए हो रही है। जबकि याचिकाकर्ता चाहते हैं‚ सेम सेक्स मैरिज को भी कानूनी मान्यता मिले‚ क्योंकि यह उनका अधिकार है। शादी उनका मौलिक अधिकार हो ताकि उन्हें लांछनों से मुक्ति मिले। साथ ही‚ स्पेशल मैरिज एक्ट में उन्हें उचित पहचान मिले। हैट्रोसेक्सुअल ग्रुप के तौर पर वे मांग कर रहे हैं‚ पति–पत्नी की बजाय जीवन साथी शब्द का प्रयोग कर इसे जेंड़र न्यूट्रल बनाया जाए। वे चाहते हैं‚ उन्हें कमतर ना आंका जाए और दोयम दर्जे का बर्ताव ना हो। घरों में निजता बनी रहे। वे कह रहे हैं कि माना जाता है‚ हम सामान्य नहीं हैं यानी हम अल्पसंख्यक हैं तो हमारे अधिकार समान हैं। सरकार की दलील है कि उसे कानून व परंपराओें का भी ख्याल रखना है। वह मानती है कि इसे मान्यता देने से पर्सनल लॉ व सामाजिक मान्यताओं की तबाही हो सकती है। सरकार पहले ही कह चुकी है कि कानून बनाना अदालत का काम नहीं है। क्योंकि उसे लगता है कि इससे तलाक‚ भरण–पोषण‚ विरासत‚ गोद लेने सरीखी दिक्कतें आएंगी। चूंकि अपनी सरकारें सामाजिक मामलों‚ रीति–रिवाजों‚ मान्यताओं को लेकर हमेशा मध्यमार्ग तलाशती हैं। बहुसंख्य लोगों की सोच या उनके विचारों पर सीधा प्रहार करने से बचती है। हालांकि दुनिया के तमाम देश तेजी से सेम–सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दे रहे हैं। बावजूद इसके अपने यहां अभी इस पर खुल कर बात भी नहीं हो रही। यह सच है कि शादी सुरक्षा का भाव देती है‚ इससे दंपति सामाजिक व पारिवारिक तौर पर बंध जाता है। उत्तराधिकार‚ गोद लेना या सरोगेसी‚ टैक्स में छूट व सरकारी अनुकंपाओं के लिए भी शादी का बहुत महत्व है। हम बहुत परंपरावादी और परिवार वाले लोग हैं। हमारे लिए इस तरह के क्रांतिकारी बदलावों को अपना पाना आसान नहीं है। यह दुस्साहसिक साबित हो सकता है। मगर यह भी सच है कि निजता या व्यक्तिगत चुनाव का सम्मान करना सभ्य समाज के लिए जरूरी है। यह भी समझने की जरूरत है‚ गे असामान्य या बीमार लोग नहीं हैं। समाज और सरकार को लचीला रुख अपनाना ही होगा।
चुनाव सर्वेक्षण: हकीकत, भ्रम और वोटर की भूमिका
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