समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सुनवाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार में ठन गई। मंगलवार को जब संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की तो केंद्र ने आपत्ति जताई। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वे याचिकाओं का दायरा समझना चाहते हैं। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पहले याचिकाकर्ता केंद्र के प्रिलिमनरी सबमिशन का जवाब दें। सीजेआई ने कहा कि मैं इंचार्ज हूं, मैं डिसाइड करूंगा। उन्होंने कहा कि ‘मैं किसी को यह बताने नहीं दूंगा कि इस अदालत की कार्यवाही कैसे चलनी चाहिए।’ इस पर एसजी ने कहा कि फिर हमें यह सोचने दीजिए कि सरकार को इस सुनवाई में हिस्सा लेना चाहिए भी या नहीं। जस्टिस एसके कौल ने कहा कि सरकार का यह कहना कि वह सुनवाई में हिस्सा लेगी या नहीं, अच्छा नहीं लगता। यह बेहद अहम मसला है। इतनी बहस के बाद मामले पर सुनवाई शुरू हुई। पढ़ें समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के सभी अपडेट्स
समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई : लाइव अपडेट्स
- मुकुल रोहतगी: अगर हमारे अधिकार हेटरोसेक्सुअल ग्रुप के समान हैं तो विवाह में भी समान अधिकार होना चाहिए। 2022 में अमेरिका ने सेम सेक्स मैरिज की वैधता सुरक्षित रखने को ‘रिस्पेक्ट ऑफ मैरिज’ एक्ट लागू किया… फिर दीपिका सिंह जजमेंट आया… क्वीर रिलेशनशिप को भी फैमिली यूनिट माना गया था।
- मुकुल रोहतगी: नवतेज जौहर केस में व्यवस्था दी गई थी कि अगर मूल अधिकारों का सवाल हो तो अदालत संसद के कानून बनाने का इंतजार नहीं कर सकती… हम बूढ़े हो रहे हैं और हमें विवाह में सम्मान चाहिए।
- सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी (याचिकाकर्ताओं के लिए) : हम एक ही लिंग के व्यक्ति हैं और समाज के हेटरोसेक्सुअल लोगों की तरह समान अधिकार रखते हैं। हम चाहते हैं कि यह घोषित किया जाए कि हमें विवाह का अधिकार है… इस अधिकार को राज्य विशेष विवाह अधिनियम के तहत मान्यता देगा और इस अदालत की घोषणा के बाद शादी को राज्य की मान्यता मिलेगी… क्योंकि 377 वाले फैसले के बाद भी हमें गलत नजरों से देखा जाता है।
बुनियादी महत्व का है मुद्दा
चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एस. के कौल, जस्टिस एस. रवींद्र भट, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं को 13 मार्च को पांच न्यायाधीशों की इस संविधान पीठ के पास भेज दिया था और कहा था कि यह मुद्दा ‘बुनियादी महत्व’ का है। इस मामले की सुनवाई और फैसला देश पर व्यापक प्रभाव डालेगा, क्योंकि आम नागरिक और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं।
‘सिर्फ विधायिका ही कानून बना सकती है’
केंद्र सरकार ने कहा कि विवाह सामाजिक वैधानिक संस्था है। इसे लेकर सिर्फ विधायिका ही कानून बना सकती है। याचिकाकर्ता ने जो भी सवाल उठाए हैं, उन्हें जनप्रतिनिधियों के विवेक पर छोड़ा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में गे कपल ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि होमोसेक्सुअल शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता दी जाए। याचिकाकर्ता सुप्रीयो चक्रवर्ती और अभय डांग ने कहा है कि हम 10 साल से कपल की तरह रह रहे हैं। हम शादी करना चाहते हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अंतरजातीय और अंतरधार्मिक शादियों की इजाजत देता है।
केंद्र से मांगा था जवाब
दो समलैंगिक जोड़ों ने विवाह करने के उनके अधिकार के क्रियान्वयन और विशेष विवाह कानून के तहत उनके विवाह के पंजीकरण के लिए संबंधित प्राधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध करते हुए अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 25 नवंबर को केंद्र से अपना जवाब देने को कहा था।
17 अप्रैल को केंद्र ने कहा था- कानून बनाना संसद का काम
केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दूसरा हलफनामा दाखिल किया था। सरकार ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज को वैध ठहराए जाने की डिमांड सिर्फ शहरी एलीट क्लास की है। कानून बनाए जाने पर आम नागरिकों के हित प्रभावित होंगे। सरकार ने कहा कि सभी धर्मों में विवाह का एक सामाजिक महत्व है। हिन्दू में विवाह को संस्कार माना गया है, यहां तक की इस्लाम में भी। इसलिए इन याचिकाओं को खारिज कर देना चाहिए। इस पर फैसला करना संसद का काम है। कोर्ट को इससे दूर रहना चाहिए।
केंद्र सरकार सेम सेक्स मैरिज कानून के विरोध में क्यों?
केंद्र सरकार सेम सेक्स मैरिज की अनुमति देने के खिलाफ है। इस पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। चार पॉइंट में समझें…
- केंद्र सरकार ने कहा था- भले ही सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 377 को डीक्रिमिनलाइज कर दिया हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि याचिकाकर्ता सेम सेक्स मैरिज के लिए मौलिक अधिकार का दावा करें।
- केंद्र सरकार ने सेम सेक्स मैरिज को भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ बताया है। केंद्र ने कहा कि समलैंगिक विवाह की तुलना भारतीय परिवार के पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों की अवधारणा से नहीं की जा सकती।
- कानून के मुताबिक भी सेम सेक्स मैरिज को मान्यता नहीं दी जा सकती, क्योंकि उसमें पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है। उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं। सेम सेक्स मैरिज में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को अलग-अलग कैसे माना जा सकेगा?
- कोर्ट में केंद्र ने कहा था कि समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से गोद लेने, तलाक, भरण-पोषण, विरासत आदि से संबंधित मुद्दों में बहुत सारी जटिलताएं पैदा होंगी। इन मामलों से संबंधित सभी वैधानिक प्रावधान पुरुष और महिला के बीच विवाह पर आधारित हैं।
कौन हैं याचिकाकर्ता कपल?
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं में एक याचिका हैदराबाद के समलैंगिक कपल सुप्रियो और अभय की है। कपल ने अपनी याचिका में कहा है कि दोनों एक दूसरे को एक दशक से ज्यादा वक्त से जानते हैं और रिलेशनशिप में हैं। इसके बावजूद शादीशुदा लोगों को जो अधिकार मिले हैं, उन्हें उन अधिकारों से वंचित रखा गया।