खेलों के बारे में आज लोगों की दिलचस्पी का आलम यह है कि फिल्म‚ म्यूजिक और फैमिली इंटरटेन्मेंट से ज्यादा आमदनी पेड स्पोर्ट्स चैनलों से हो रही है। बात भारत की करें तो बीते कुछ दशकों में खेल और खिलाडि़यों की पहचान के मामले में एक लोकतांत्रिक और विकेंद्रित चरित्र उभरा है। सुदूर इलाकों–कस्बों से खिलाड़ी राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में नाम कमा रहे हैं। इस पूरे बदलाव को अगर तारीखी सफरनामे में देखें तो कई विरोधाभासी तथ्य भी उभरते हैं। ॥ दिलचस्प है कि भारत एशियाड का पहला मेजबान रहा है। बावजूद इसके लंबे समय तक देश में कोई खेल संस्कृति नहीं उभर पाई। १९५१ के एशियाड के बाद हम उपलब्धियों के मामले में कैलेंडर में दो सालों की ही निशानदेही कर पाते हैं। १९७५ में अजितपाल सिंह की अगुआई में हॉकी विश्व कप में खिताबी जीत के बाद १९८३ में कपिल देव के नेतृत्व में क्रिकेट विश्व खिताब की यादें आज भी रोमांचित करती हैं। इसके बाद फिर एक शून्यता आई पर २००७ और २०११ में टी–२० और एकदिवसीय विश्व कप जीत ने भारतीय खेल इतिहास में दो नये सुनहरे अध्याय जोड़े।
खेलों के लिहाज से बीते पांच दशकों का लेखा जोखा लें तो इस दौरान ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन सराहनीय नहीं रहा। २०२० टोक्यो ओलंपिक पदक जीतने के मामले में भारत के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। भारत ने कई स्वर्ण पदक हासिल किए। पैरालंपिक खिलाडि़यों का प्रदर्शन भी ऐतिहासिक रहा। भारत ने इसमें आज तक के सर्वाधिक सात पदक हासिल किए वहीं पैरालंपिक में कुल १९ पदक पर खिलाडि़यों ने कब्जा किया। भारत के खेलों में सफलता की बात करें तो अब तक ८० प्रतिशत से अधिक प्रतिभावान खिलाडि़यों की जड़ें गांवों की मिट्टी में गहरी पैठ बनाए हुए हैं। खेल वैसे तो राज्य का विषय है‚ लेकिन केंद्र सरकार अपनी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से राज्य सरकारों को साथ लेकर देश भर के ग्रामीण इलाकों में आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराने में जुटी है।
आज स्थानीय प्रतिभाओं की पहचान के लिए देश भर में करीब ४०० खेलों इंडिया केंद्र काम कर रहे हैं। खेलों को अलग स्तर तक ले जाने के लिए अलग–अलग खेलों के विशेषज्ञों को लेकर ओलंपिक टास्क फोर्स का गठन किया गया है। टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम और खेलो इंडिया योजना के जरिए केंद्र सरकार निचले से उच्च स्तर तक और गांवों से शहरों तक खेलों के विकास के लिए काम कर रही है। २०२८ ओलंपिक में शीर्ष १० में जगह बनाने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकारें खेल सुविधाओं के विकास पर जोर दे रही हैं। इस दिशा में कई राज्यों ने बेहतरीन काम किए हैं। मसलन‚ खेल प्रदेश कहे जाने वाले झारखंड में फुटबॉल प्रतिभाओं को तैयार किया जा रहा। फीफा महिला वर्ल्ड़ कप अंडर १७ में झारखंड की चार खिलाडि़यों ने राष्ट्रीय टीम में शामिल होकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। रांची के खेलगांव में मिशन ओलंपिक को लेकर टैलेंटेड फुटबॉल खिलाडि़यों का ग्रुप १०० बनाया गया है। इसमें ५० लड़कियां और ५० लड़के शामिल हैं। इस दौरान खास तौर पर ओडिशा ने खुद को खेल राज्य के रूप में स्थापित कर लिया है। आज हॉकी के किसी ऑयोजन की बात होती है तो वैश्विक खिलाड़ी भी इसी राज्य के स्टेडियम में खेलना पसंद करते हैं। ओडिशा में हॉकी के अलावा‚ एथलेटिक्स के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की सबसे बेहतरीन सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं। हाल में हॉकी विश्व कप के सफल आयोजन का श्रेय भी इसी राज्य को जाता है। यहां बास्केटबॉल‚ कबड्डी‚ कुश्ती‚ टेबल टेनिस‚ जिम्नास्टिक‚ बेसबॉल‚ भारोत्तोलन‚ क्रिकेट‚ फुटबॉल और मुक्केबाजी की नर्सरी तैयार की जा रही है।
देश के सबसे बड़े सूबे और मेजर ध्यानचंद की धरती उत्तर प्रदेश ने भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में नई खेल नीति तैयार की है। मिशन ओलंपिक को ध्यान में रखते हुए प्रदेश के विभिन्न जिलों में हॉकी‚ तैराकी‚ वॉलीबाल‚ जिम्नास्टिक‚ एथलेटिक्स‚ फुटबॉल‚ बैडमिंटन‚ टेबल टेनिस‚ बास्केटबॉल‚ कबड्डी‚ कुश्ती‚ बॉक्सिंग‚ हैंड़बॉल‚ जूडो‚ बैडमिंटन और तीरंदाजी के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। विश्वस्तरीय कोच के साथ एथलीटों के डाइट पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। खेल को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार ने पदक विजेताओं के इनाम में भी बढ़ोतरी की है। इसी तरह विकास का मोदी मॉडल पेश करने वाले गुजरात ने अब खेलों में भारत को वैश्विक शक्ति बनाने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। वहां खेल महाकुंभ जैसे आयोजन किए जा रहे हैं। कह सकते हैं कि आजादी के बाद खेलों के विकास को लेकर भले ही सरकारों ने उदासीनता दिखाई हो‚ लेकिन अब ऐसा नहीं है। राज्यों के प्रयासों से लगता है कि मिशन ओलंपिक को लेकर देश ने जो सपना संजोया है‚ वह साकार होने की राह पर है।