महज 24 घंटे के भीतर देश के सबसे खूंखार माफियायों में शुमार अतीक अहमद का रुतबा और खौफ मिट्टी में मिल गया। तक़रीबन तीन दशकों तक जिस अतीक अहमद ने देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में दहशत का तांडव मचाया था वह आज हमेशा के लिए थम गया। अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद का आज वैधानिक तरीके से कफ़न-दफ़न कर दिया गया। पिता अतीक को भी प्रयागराज के कसारी-मसारी कब्रिस्तान के उसी जगह पर दफन किया गया जहाँ दो दिन पहले झांसी में एनकाउंटर में मारे गए उसके बेटे असद अहमद को दफन किया गया था।
माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की शनिवार को देर रात प्रयागराज में बाइक सवार तीन हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी। गोली मारने वाले सनी‚ लवलेश और अरुण मौर्य को घटना स्थल पर ही दबोच लिया गया। अतीक और अशरफ पर हमला उस समय हुआ जब पुलिस उन दोनों को मेडि़कल जांच के लिए कॉल्विन अस्पताल ले जा रही थी। एक पुलिसकर्मी भी गोलीबारी में घायल हो गया। अचूक सुरक्षा के बीच इन हत्याओं से नाराज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले की उच्चस्तरीय जांच के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग के गठन के निर्देश दिएहैं। दरअसल‚ इस प्रकार से कड़़ी पुलिस सुरक्षा में हत्याएं सरकार के इकबाल पर सवाल हैं। विपक्षियों को भी यह आरोप लगाने का मौका मिल गया है कि राज्य में भय का वातावरण बनाया जा रहा है। दुर्दांत अपराधी या दोषसिद्ध व्यक्ति को सजा देने का अधिकार अदालत को ही है। किसी अन्य को नहीं। इन हत्याओं के बाद लोगों का खेमों में बंटे नजर आना दुखद है। एक पक्ष इन हत्याओं में कुछ गलत नहीं देख रहा तो एक पक्ष का कहना है कि इस प्रकार अपराधियों की हत्या करके इंसाफ हुआ माना जाने लगेगा तो कानून और अदालतों का औचित्य ही नहीं रह जाएगा। अपराधी या आरोपी के पुलिस अभिरक्षा में मारे जाने को पुलिस की लापरवाही ही करार दिया जाएगा। योगी सरकार ने तत्काल कार्रवाई करते हुए इस बाबत पुलिस से जवाबतलबी की है। बहरहाल‚ यह सब तो किसी घटना के बाद की रस्मअदायगी जैसी कार्रवाई भर है। दरअसल‚ बढ़ते अपराध और बेखौफ अपराधियों के दुस्साहस से समाज इस कदर आजिज आ चुका है कि अपराध करने वालों को हर हाल में दंडि़त होते देखना चाहता है। अतीक और उसके भाई अशरफ की पुलिस अभिरक्षा में हत्या किए जाने को भी इसी कोण से ज्यादा देखा जा रहा है। बेशक‚ किसी भी अपराधी या माफिया से किसी भी सभ्य समाज की कोई सहानुभूति नहीं हो सकती‚ लेकिन कानून के शासन में किसी की सजा तय करना अदालत का काम है। अपराधी को सजा देने का अधिकार किसी अन्य व्यक्ति या संगठन को नहीं दिया जा सकता है। बेशक‚ किसी अपराधी के साथ हमदर्दी नहीं हो सकती। मगर सभ्य समाज में यह स्वीकार्य नहीं कि कोई व्यक्ति किसी अपराधी को अपने तइ दंडि़त करने पर ही आमादा हो जाए। इससे तो कानून का इकबाल ही जाता रहेगा और देश और समाज को अराजकता की स्थिति का सामना करना पड़़ सकता है।