2024 में लोकसभा चुनाव होने वाला है तो वहीं 2025 में बिहार में विधानसभा चुनाव होगा, इन दोनों ही चुनावों को लेकर सभी राजनीतिक पार्टी अपना पूरा जोर लगाती दिख रही है. वहीं, लोकसभा चुनाव को लेकर भी पूरे देश की नजर बिहार पर है. बिहार के सीएम नीतीश कुमार विपक्षी एकता को एकजुट करने की कवायद में लंबे समय से लगे हुए हैं. इसे लेकर हाल ही में सीएम ने दूसरी बार दिल्ली का दौरा किया और राजधानी पहुंचकर उन्होंने तमाम पार्टियों के दिग्गज नेताओं से मुलाकात की. जहां सीएम नीतीश कुमार ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के साथ ही राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से मिलकर विपक्षी एकता को मजबूत करने की पूरी कोशिश की तो दूसरी तरफ बीजेपी भी चुनाव को लेकर नए दांव पेंच खेलते नजर आ रहे हैं.
शाह और मांझी के मुलाकात के सियासी मायने
बता दें कि बिहार के महागठबंधन में जदयू, राजद, कांग्रेस, हम, वामपंथी सहित सात पार्टी शामिल हैं. वहीं हम पार्टी के नेता जीतनराम मांझी ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से दिल्ली में गुरुवार को मुलाकात की. इस मीटिंग के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. बता दें कि महागठबंधन में मांझी काफी सहज नहीं दिख रहे हैं. बता दें कि मांझी के कुल चार विधायक हैं. वहीं, उनके बेटे मौजूदा नीतीश सरकार में मंत्री के पद पर है. राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री मांझी अपने लिए कोई बड़ा पद चाह रहे हैं. इसके लिए वह बीजेपी से हाथ मिला सकते हैं.
चिराग और नित्यानंद राय की मुलाकात
शाह और मांझी के मुलाकात के बाद एलजेपी रामविलास के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की मुलाकात ने सियासी गर्माहट को बढ़ा दिया है. गुरुवार की देर शाम इन दोनों नेताओं की मुलाकात हुई. जिसके बाद से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि आगामी चुनाव में चिराग बीजेपी के साथ हाथ मिला सकते हैं. बता दें कि पिछले चुनाव में चिराग ने बीजेपी के लिए प्रचार प्रसार भी किया था, जिसमें पार्टी को जीत भी मिली थी. वहीं, बीजेपी की बात करें तो फिलहाल बिहार में पशुपति पारस की पार्टी एलजेपी ही उनके साथ है. आगामी चुनावों को लेकर बीजेपी भी कमर कस चुकी है.
पासवान और मांझी वोट की ताकत
बिहार में बीजेपी का पूरा फोकस कास्ट कांबिनेशन पर है क्योंकि भले ही बिहार में हर पार्टी की विकास की बात करें, लेकिन वहां आज भी जातीय वोट से ही किसी भी पार्टी की दिशा और दशा तय होती है. इसी वोट बैंक को मजबूत करने के लिए बीजेपी कई पार्टियों को अपने में मिलाने में जुटी हुई है. प्रदेश में दलित समुदाय की आबादी 16 प्रतिशत है, जिसमें करीब 70 फीसदी वोट बैंक सिर्फ पासवान, रविदास और मुसहर जाति का है. पासवान समाज की बात करें तो राज्य में उनकी हिस्सेदारी करीब 4.2 प्रतिशत है. वहीं, मांझी समाज की आबादी करीब 4 फीसदी है. दोनों ही जातियों का बिहार में बड़ा वोट बैंक है.
बिहार में जातीय समीकरण
इनके अलावा उपेंद्र कुशवाहा और वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी को भी बीजेपी अपने में शामिल करने की पूरी कोशिश कर रही है. बिहार में कुशवाह समुदाय की आबादी करीब 5-6 फीसदी है तो वहीं सहनी जाति की आबादी करीब 3-4 फीसदी है. इसी के साथ बीजेपी सर्वणों को भी खुश करने की कोशिश करती दिख रही है. बता दें कि दलितों के लिए विधानसभा में 38 सीटें और लोकसभा में 6 सीटें आरक्षित हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार की विपक्षी एकता को बीजेपी किस तरह से टक्कर दे पाती है और आगामी चुनाव कितना दिलचस्प हो पाता है.