क्या भारत के विदेश नीति का अमेरीकीकरण हो रहा हैॽ क्या भारत अन्य देशों के साथ अपने संबंधों का निर्धारण इस आधार पर कर रहा है कि इससे अमेरिका के साथ इसके संबंधों पर कैसा असर पड़े़गाॽ विदेश नीति और राजनीतिक हलकों में इन दिनों विचारोत्तेजक बहस चल रही है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के बीच हालिया मुलाकात से इस बहस ने जोर पकड़़ा है। अमेरिकापरस्त राजनयिक‚ विश्लेषक और मीडि़या का एक वर्ग चीन और रूस के बीच गठबंधन के विस्तार को भारत के लिए खतरे की घंटी बता रहे हैं। उनका सुझाव है कि इस खतरे का सामना करने के लिए भारत को जल्द–से–जल्द अमेरिकी खेमे में शामिल हो जाना चाहिए। पूर्व विदेश सचिव श्याम शरण ने हाल में अपने एक लेख में कहा कि रूस अब चीन का जूनियर पार्टनर बन रहा है। उनके अनुसार चीन इस स्थिति में है कि वह रूस पर भारत को रक्षा सामग्री की आपूर्ति रोकने का दबाव ड़ाल सकता है। राजनयिकों और विश्लेषकों का दूसरा वर्ग इससे सहमत नहीं है।
इस संदर्भ में सबसे प्रभावी बौद्धिक हस्तक्षेप वरिष्ठ राजनयिक ड़ी बाला वेंकटेश वर्मा ने किया। समसामयिक विश्व घटनाक्रम पर उनके दो लेख शोध अध्येताओं के लिए उपयोगी संदर्भ सामग्री साबित हो सकते हैं। उनका कहना है कि स्वतंत्र विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्ततता के बारे में भारत के नीति निर्धारकों ने आत्म–विश्वास की कमी दिखाई देती है। विदेश मंत्रालय अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को तय करते समय सावधानी बरतता है कि इससे अमेरिका के साथ उसके बढ़ते संबंधों पर क्या असर पड़े़गा। भारत गुट–निरपेक्ष और विकासशील देशों की अगुवाई की बात करता है‚ लेकिन पिछले दो दशकों में उसने इन देशों के साथ संबंधों पर खास ध्यान नहीं दिया है। गुट–निरपेक्ष शिखर वार्ताओं में पिछले काफी वर्षों से किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने भाग नहीं लिया है। अभी हाल में इस नीति में कुछ बदलाव नजर आता है। जी–२० शिखर वार्ता के पहले भारत की ओर से ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) के साथ संवाद करने की पहल की गई। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि जी–२० शिखर वार्ता में भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बनेगा और उनके सरोकार वाले मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाएगा।
बाला वेंकटेश वर्मा ने सबसे महत्वपूर्ण बात भारत–चीन संबंधों को लेकर कही है। उन्होंने चौंकाने वाला निष्कर्ष रखा कि ‘भारत की चीन नीति का अमेरीकीकरण’ हो रहा है। उन्होंने आगाह किया कि चीन के साथ अपने संबंधों को अमेरिकी चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। वर्मा का यह कथन इसलिए महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी प्रशासन और नाटो सैन्य संगठन भारत को चीन के विरुद्ध एक मोर्चे के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश में हैं। यही कारण है कि अमेरिकी प्रचार तंत्र ने जिनपिंग और पुतिन की वार्ता को भारत–चीन सीमा विवाद से जोड़़ दिया है। अमेरिका की संसद में अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताने का प्रयास भी इसी धारणा को मजबूत करने के उद्देश्य से लाया गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि यह भारत चीन के बीच का मामला है। अरुणाचल प्रदेश भारत का अटूट हिस्सा है।
वेंकटेश वर्मा ने अपने आलेखों में जिनपिंग और पुतिन की वार्ता के संबंध में तीन निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने कहा कि रूस और चीन के बीच रणनीतिक सहयोग को बढ़ा–चढ़ा कर पेश नहीं किया जाना चाहिए। दूसरा‚ अमेरिका की शक्ति और सामर्थ्य को अधिक नहीं आंका जाना चाहिए कि वह यूरोप में रूस और एशिया में चीन इन दोनों मोर्चों पर निर्णायक साबित हो सकता है। उनका तीसरा निष्कर्ष भारत के बारे में है। रूस में भारत के राजदूत रहे वर्मा के अनुसार इन दोनों देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी बहुत आवश्यक है। दूसरी ओर भारत और अमेरिका के रणनीतिक लक्ष्य और सोच एक जैसी नहीं है। उन्होंने नीति निर्धारकों को आगाह किया कि वे चीन की चुनौती का सामना करने के लिए अमेरिका पर अधिक भरोसा करने की गलती न करें। कुल मिलाकर पीएम मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर को उनकी सलाह है कि स्वतंत्र विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्ततता कि आवश्यक शर्त है कि राष्ट्रीय हितों और प्रतिबद्धताओं के प्रति आत्म–विश्वास कायम रखा जाए।
रूस में भारत के राजदूत रहे वर्मा के अनुसार इन दोनों देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी बहुत आवश्यक है। दूसरी ओर भारत और अमेरिका के रणनीतिक लक्ष्य और सोच एक जैसी नहीं है। उन्होंने नीति निर्धारकों को आगाह किया कि वे चीन की चुनौती का सामना करने के लिए अमेरिका पर अधिक भरोसा करने की गलती न करें…….