आईटी मंत्रालय ने सोशल मीडिया में सरकार रीति–नीति के संदर्भ मेंे तोड़़–मरोड करने वाली ‘फेक न्यूज’ को मॉनीटर करने वाली‚ उनका ‘फैक्ट चेक’ करने वाली और ‘यह फेक न्यूज है’ ऐसा बताने वाली और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से उनको हटाने का आदेश देने वाली एक ‘एक संस्था’ बनाने का इरादा किया है।
इसके पीछे सरकार का यह मानना रहा है कि सोशल मीडिया पर ऐसी बहुत सी ‘फेक न्यूज’ को जान–बूझकर गढा और प्लांट किया जाता है जो समाज और देश की सुरक्षा‚ एकता और अखंडता के भावों को ‘डिस्टर्ब’ करने वाली होती हैं। ऐसी ‘फेक न्यूज’ लोगों में खासी गलतफहमी फैलाती रहती हैं। लोग अनेक बार उनको सच समझ लेते हैं और यह सब उनके सोच–विचार को प्रभावित करता है। इसलिए ऐसी संस्था की जरूरत थी जो ऐसी ‘फेक न्यूजों’ का ‘फैक्ट चेक’ करके उनको एक्सपोज करे और जरूरत पडने पर उनको सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से हटवाए। ऐसी खबर का विवादास्पद होना स्वाभाविक था। वह हुई भी! एडीटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने इस खबर पर कुछ इस तरह से अपनी आपत्ति जताई है कि यह विचार अफसोसनाक है। इस व्यवस्था से सरकार को अपार अधिकार मिल जाते हैं। वह ऐसे किसी भी कंटेट (न्यूज) को हटा सकती है जिसे वह ‘फेक’ समझे.अगर हम गिल्ड के चिंता को कुछ आगे बढाएं तो कह सकते हैं कि इस व्यवस्था से ‘फैक्ट चेक’ करने वाली सरकारी संस्था ही ‘सत्य–असत्य’ का ‘अ्ष्ठिठान’ बन जाएगी और इस तरह सत्य स्वतंत्रता नहीं रह जाएगा।
इससे खबरों पर सरकारी अंकुश बढेगा! इससे अभिव्यक्ति की आजादी पर भी आंच आएगी.‘फेक्ट चेक’ करने की इस नई व्यवस्था का ‘विचार’ और उसका ‘विरोध’ साफ बताता है कि सोशल मीडिया में दिन–रात प्रसारित की जाती तरह–तरह की ‘फेक न्यूज’ का असर समाज पर तो होता ही है सरकार पर भी होता है। अलबत्ता‚ इतना तय है कि आज ‘फेक न्यूज’ अपने आप में एक ‘बडी ग्लोबल इंडस्ट्री’ है और इसे दिन–रात गढा और प्रसारित किया जाता है‚ जिसके जरिए नाना प्रकार की वैश्विक शक्तियां दूसरे समाज और देशों को हिलाने का और सरकारों को गिराने का भी काम करती हैं। इसका एक बडा प्रमाण मिस्र का ‘अरब ्प्रिरंग रिवोल्यूशन’ रहा‚ जिसे इसी तरह के सोशल मीडिया और ‘फेक न्यूज’ ने पैदा किया। इसी तरह की अमेरिका ने ‘फेक न्यूज इंडस्ट्री’ के जरिए इराक में ऐसे ‘जैविक हथियार’ का मिथक ईजाद किया जबकि वहां सब कुछ तहस–नहस करने के बाद एक भी जैविक हथियार नहीं मिला। कहने की जरूरत नहीं कि अपने यहां भी ‘फेक न्यूज इंडस्ट्री’ इसी तरह के झूठ को फैलाती रहती है। ‘डोकलाम’ हो या ‘पुलवामा’ हो या कहीं दंगे और उपद्रव की खबरें हों‚ ‘फेक न्यूज मेकर’ ऐसी खबरें गढते हैं‚ जो तेजी से फैलकर कुछ–का–कुछ गुल खिलाती हैं। ऐसे में ऐसी खबरों का ‘फैक्ट चेक’ तो जरूरी है। इस नई व्यवस्था के जरिए सरकार सिर्फ इतना करना चाहती है कि उसकी रीति–नीति और काम काज की खबरें जस–की–तस जनता तक पहुंजे और अगर उनको कोई तोड–मरोड कर पेश करता है ‘फेक’ बनाकर पेश करता है तो उसे सोशल मीडिया से हटवाया जा सके। जिन दिनों सोरोस और जाने कौन–कौन ‘ग्लोबल तत्व’ भारत में सत्ता पलटने का इरादा रखते हैं और वैसा खुलेआम कहते भी हों तब ‘फेक न्यूज इंडस्ट्री’ पर नजर न रखी जाए‚ ऐसा कैसे हो सकता हैॽ
इस कारण अगर सरकार‚ सरकार संबंधी खबरों के संदर्भ में ‘फेक न्यूज’ का इलाज करना चाहती है तो इससे किसी को क्या परेशानी हो सकती हैॽ यों‚ अपने यहां भी बहुत से स्वयं नियुक्त ‘फैक्ट चेकर’ हैं उनमेें से कई इनामी हैं‚ लेकिन वे ‘तटस्थ’ न होकर‚ किसी–न–किसी न्यस्त स्वार्थ के लिए काम करते दिखते हैं और बहुत से लोग ऐसों को ‘सत्य हरीश्चंद्र’ का अवतार मानते हैं। ऐसे ‘फैक्ट चेकरों’ को अवश्य सरकार के हस्तक्षेप से दिक्कत हो सकती है क्योंकि अब उनकी ‘फेकरी’ भी पकड जा सकती है! बहरहाल‚ हमारा मानना है कि परम सत्य तो सिर्फ ‘ईश्वर’ है। बाकी इस जीवन में कोई भी ‘सत्य’ एक ‘बनाया गया सत्य’ ही होता है‚ जिसे हर ‘सत्ता के संजाल’ (पावर नेटवर्क) अपने हित में दिन–रात बनाते और प्रसारित करते रहते हैं ताकि सब उस सत्ता को कबूल कर सकें। यह पिछली सत्ताओं के संदर्भ में सच था तो इस वक्त की सत्ता के लिए भी सच है! इस नई व्यवस्था के अनुसार अब सरकार तो फैक्ट चेक करेगी‚ लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि दूसरे न कर सकेंगे।