सम्राट अशोक की जयंती के बहाने राष्ट्रीय लोक जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा आज अपनी नई राजनीति का आगाज करने जा रहे हैं। वो राजनीति जिसकी आग वे राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराजगी मोल ले कर आए हैं। 28 फरवरी 2023 को भितिहरवा से शुरू हुईं इस यात्रा में उन्होंने हमले के लिए जितने तीर इकठे किए हैं, वो मंगलवार को बापू स्मारक हाल में छोड़े जाने हैं। वैसे ,इतना तो सच है कि मंगलवार की भीड़ उपेंद्र कुशवाहा की इस नई राजनीति की नीव रखने जा रही है। यह नींव जितनी मजबूत होगी, इनकी राजनीति की उड़ान ऊंची और लंबी भी होगी।
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड को एक और बड़ा झटका लगा है. पिछले महीने उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार को बड़ा झटका दिया था तो इसी महीने मीना देवी ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया था और अब औरंगाबाद से जेडीयू के वरिष्ठ नेता और पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक प्रमोद चंद्रवंशी ने भी नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया है. माना जा रहा है कि प्रमोद चंद्रवंशी 2 अप्रैल को अमित शाह की रैली के दौरान भाजपा का दामन थाम सकते हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 2 अप्रैल को सासाराम और नवादा में सम्राट अशोक की जयंती पर सभा को संबोधित करने वाले हैं.
क्या है नाराजगी का कारण
नाराजगी की वजह भी सार्वजनिक है, बकौल उपेंद्र कुशवाहा ‘नीतीश कुमार ने लव कुश और अतिपिछड़ा की राजनीति को राष्ट्रीय जनता दल की गोद में रखने का काम किया है। वर्ष 2005 में राज्य के लव-कुश और अतिपिछड़े समाज ने नीतीश कुमार को जो ताकत सौंप कर सत्तासीन किया, नीतीश कुमार उस ताकत के प्रति वफादार नहीं रहे और जिम्मेदार भी नहीं। और तो और इस राजनीति को उन्होंने अपने लोगों के हाथ नहीं बल्कि जिसके विरुद्ध लव कुश और अतिपिछड़ों की राजनीतिक लड़ाई थी उन्हीं के गोद में रख जनमत का अपमान किया है।
इस आग की छटपटाहट ऐसी कि कुशवाहा ने आनन फानन में विरासत बचाओ यात्रा की नींव सिर्फ नीतीश की राजनीति की हवा निकालने के ध्येय से शुरू कर दी। पश्चिम चंपारण के बापू आश्रम से शुरू इस यात्रा के दौरान महात्मा गांधी, बतख मियां, जेपी, कर्पूरी ठाकुर, सूरज नारायण सिंह, फणीश्वरनाथ रेणु, जुब्बा साहनी, तिलका मांझी, श्रीकृष्ण सिंह, अब्दुल कयूम अंसारी, चंद्रशेखर उर्फ चंदू, दशरथ मांझी, बाबू जगजीवन राम, वीर कुंवर सिंह, शहीद निशान सिंह, डा लाल सिंह त्यागी व गुरुसहाय लाल सहित दर्जनों महापुरुषों के स्मारक पर माल्यार्पण कर नीतीश कुमार के विरुद्ध एक समा बांधने का काम किया।
बिहार की राजनीतिक धुरी
फिलहाल राज्य की राजनीति अभी कुशवाहा की धुरी के इर्द गिर्द घूम रही है। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि राज्य के दो बड़े दल यानी भाजपा और जदयू के प्रदेश अध्यक्ष कुशवाहा जाति से आए हैं। हद तो यह हो गई कि उपेंद्र कुशवाहा के जदयू से जाने के बाद बतौर डैमेज कंट्रोल जदयू के केंद्रीय संगठन में पांच और राज्य संगठन में प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा समेत कुल 24 लोगों को जगह दी गई है। उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार के इस डर की फसल को काटना चाहते हैं। वैसे भी राज्य की राजनीति में पांच कुशवाहों का वर्चस्व है। इस कड़ी में उपेंद्र कुशवाहा सबसे परिपक्व और संघर्ष करने वाले नेता है। दूसरा नाम भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी, तीसरा नाम भगवान सिंह कुशवाहा और चौथा नाम नागमणि और पांचवां नाम आलोक मेहता का आता है।