राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होने के मामले को लेकर कहा जा सकता है कि दोनों तरफ से छोटी सी बात को बड़ा फसाना बना दिया गया। मोटे तौर पर देखें तो राहुल अपनी जनसभाओं में अक्सर ‘मोदी’ को चोर कहते रहे हैं। इसे सियासी बयान मानकर इसकी उपेक्षा की जा सकती थी , लेकिन अगर कोई इस मामले को लेकर कोर्ट में चला गया तो राहुल गांधी इससे भी निकल सकते थे। अगर वह कोर्ट में कह देते कि उनका इरादा पूरे मोदी समाज को आहत करने का नहीं था, किसी को चोट पहुंची तो खेद है, तो कोई भी कोर्ट आराम से इस मामले को खत्म कर देता। लेकिन राहुल अड़ गए कि माफी नहीं मांगूंगा। यह राहुल गांधी की फितरत है। हालांकि मैं मानता हूं किसी समाज से माफी मांगने से कोई छोटा नहीं होता। अब कोर्ट ने उन्हें 2 साल की सजा सुनाई तो कानून के मुताबिक राहुल की लोकसभा सदस्यता का खत्म होना लाजिमी था, पर सरकारी पक्ष की तरफ से भी इतनी जल्दबाजी दिखाने की जरूरत नहीं थी। इस पर 2-4 दिन इंतजार कर लेते तो कोई फर्क न पड़ता, कांग्रेस को इसे इतना बड़ा इश्यू बनाने का मौका न मिलता। कांग्रेस कोर्ट से सजा के खिलाफ स्टे ऑर्डर ले आती। मानहानि के मामलों में आमतौर पर ऐसा होता रहता है। दूसरी तरफ देखें तो बीजेपी की बात भी सही है कि सूरत की कोर्ट का फैसला आने के बाद राहुल गांधी तुरंत कोर्ट में क्यों नहीं गए। पवन खेड़ा के केस में कुछ ही घंटों में कांग्रेस के वकील सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे, उनको फौरन राहत भी मिल गई थी। तो क्या इसका मतलब ये लगाएं कि कांग्रेस ने जानबूझ कर इस मामले को बड़ा बनने दिया? क्या कांग्रेस को मोदी सरकार के खिलाफ एक और मुद्दे की तलाश थी जिसके आधार पर सभी विरोधी पार्टियों को इकट्ठा किया जा सके। आग दोनों तरफ से बराबर लगी है और बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं। बीजेपी का दावा है कि राहुल ने OBC समाज का अपमान किया और कांग्रेस का कहना है कि BJP राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से घबरा गई। असल में दोनों जानते हैं कि इन बातों का राहुल के मामले और उनकी सदस्यता जाने से कोई लेना देना नहीं है। अब चूंकि मामला सियासी हो गया है तो छोटी सी बात का फसाना तो बनेगा। जैसे किसी शायर ने लिखा है – बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी।
एलन मस्क की नजर ब्रिटेन की सियासत पर !
एलन मस्क डोनाल्ड ट्रंप का साथ देकर जो बाइडन का गेम फिनिश कर चुके हैं. अब उनकी नजर ब्रिटेन की...