खासे विरोध के बावजूद ‘पठान’ फिल्म इतना क्यों चली कि उसने अब तक के सारे रिकार्ड तोड दिएॽ हमारा मानना है कि इसलिए इतना चली कि उसका विरोध आम लोगों को जमा नहीं। उन्हें इस विरोध में ‘अति’ नजर आई। यह घटना इस बात को भी सिद्ध करती है कि संकीर्णवादी ‘विरोध की कल्चर’ या ‘केंसिल कल्चर’ या ‘बहिष्कार कल्चर’ हर बार नहीं चलती। इसके पीछे शायद एक बडा कारण पीएम का कुछ पहले दिया गया वह वक्तव्य भी रहा जिसका आशय कुछ ऐसा था कि जरा–जरा सी बात पर बॉलीवुड को ‘डाउन’ करना‚ ‘विरोध’ करना उचित नहीं.‘पठान’ को हिट करने के पीछे ‘पठान’ की मारकेटिंग का भी हाथ रहा।
शुरुआती प्रोमो जहां खास रंग की बिकिनी पहने नायिका के चिपटने मटकने पर जोर देता था वहीं दूसरा प्रोमो देशभक्ति के भाव पर जोर देता था। इस प्रोमो में ‘पठान’ का हीरो कहता था कि कोई सिपाही नहीं कहता कि देश मुझे क्या दे सकता है बल्कि यही कहता है कि वह देश को क्या दे सकता है.इससे ठीक पहले ‘ब्रह्मास्त्र’ इस तरह की ‘विरोध कल्चर’ या ‘केंसिल कल्चर’ का शिकार बन चुकी थी। उसका विरोध भी कुछ हिंदू धार्मिक प्रतीकों की ‘अवमानना’ को लेकर किया गया था। यह विरोध कुछ देर टिका रहा। शायद इसी कारण वह उतनी ‘हिट’ न हो सकी या कहें उतनी ‘कमाई’ न कर सकी जितने की उम्मीद थी। उसके प्रोमो को देख कर कुछ लोगों को लगा कि वह उनके प्रतीकों का अपमान करता है। लेकिन लोग जल्दी ही समझ गए कि ‘ब्रह्मास्त्र’ का विरोध भी आम आदमी का विरोध न होकर कुछ लोगों का विरोध है।
यों भी हिंदू समाज मिजाज से अतिवादी नहीं है। फिर यह तथ्य कि जहां हिंदू समाज बहुमत में है वहीं किसी अल्संख्यक की तरह व्यवहार करे तो यह व्यवहार भी शोभा नहीं देता। जिस समाज में आप ही सब कुछ हैं‚ आपका वर्चस्व है‚ वहां अपने आप को ‘विक्टिम’ की तरह पेश करना जमता नहीं। जो गैर–अतिवादी माहौल बना ‘पठान’ इसी के कारण चली। ‘पठान’ के हिट होने के पीछे एक और कारण देखा जा सकता है‚ वह है बॉलीवुड पर तरह–तरह के हमलों का जारी रहना। पहले कुछ हीरो–हीरोइनों ने बॉलीवुड को कुछ इस तरह से परिभाषित करना शुरू किया जैसे वहां सिर्फ कुछ बडे नामों का ‘वर्चस्व’ हो या कुछ बडेÃ लोगों का ‘माफिया’ ही सब कुछ हिलाता–डुलाता हो। ये भी आरोप लगाए जाते रहे कि बॉलीवुड अक्सर हिंदू प्रतीकों का मजाक उडाता है जबकि अन्य धर्मों के प्रति उदार रवैया अपनाता है। फिर इसी बीच‚ कुछ दक्षिणी फिल्मों ने अपना जलवा दिखाया। पुष्पा द राइज‚ आरआरआर और केजीएफ ने अपने ‘बिग आइडियाज’ और ‘बिग प्रोडक्शन’ वाली फिल्में बनाकर हजारों करोड की कमाई करके बॉलीवुड की श्रेष्ठता को चुनौती दी। दक्षिणी फिल्म उद्योग के इस हमले के साथ अपने मीडिया के एक हिस्से ने भी प्रचारित करना शुरू किया कि बॉलीवुड के दिन गए। ‘दक्षिणी फिल्म उद्योग’ के पास ‘बिग आइडियाज’ वाली बडी–बडी फिल्में बनाने की क्षमता है। पुष्पा द राइज‚आरआरआर‚ केजीएफ आदि कुछ ऐसी ही बडी फिल्में रहीं जिनने ऑल इंडिया धूम मचाई और सबसे अधिक कमाई हिंदी क्षेत्र से की; आरआरआर का एक गाना तो ऑस्कर तक पहंचा। जाहिर है कि बॉलीवुड को लगातार निशाना बनाना और हीनतर बनाना भी आम हिन्दी जनता को न भाया होगा। उसने भी सोचा होगा कि हिन्दी वालों के पास एक बॉलीवुड ही है‚ जो दुनिया की तीसरे नंबर की बडी ‘कल्चरल इंडस्ट्री’ है। उसे नीचा करना अपने को ही नीचा करना है। अगर यह गिरी तो हिन्दी समाज भी हीन दिखेगा।
हमारा मानना है कि ‘पठान’ को पब्लिक ने ‘विद वेंजिएंस’ हिट किया। मानो उनको जवाब दे रही थी जो बात–बात पर बॉलीवुड को ब्लैकमेल करने लगते हैं‚ या जो बॉलीवुड को डाउनग्रेड़ करने लगते हैं कि अब तो बॉलीवुड गया.‘पठान’ को जनता ने शायद इसीलिए हिट किया और इसीलिए उसने कुछ ही समय में दक्षिणी फिल्मों की कमाई की बराबरी कर डाली। वह सवा हजार करोड रुपये से अधिक कमाने वाली पहली हिन्दी फिल्म बनी। कहने की जरूरत नहीं कि जिस ‘पठान’ को अपमानजनक बताया जा रहा था वही बॉलीवुड के लिए वरदान बनकर आया। ‘पठान’ को हिट करके जनता ने बता दिया कि ‘अतिवाद’ के दिन के गए।