इस बार फिल्म ‘आरआरआर’ के गीत ‘नाटु नाटु’ को २०२३ के मौलिक गीत के लिए ऑस्कर पुरस्कार मिला है। भारतीय सिनेमा जगत और खासकर तेलुगू फिल्म उद्योग को इससे बल मिला है। रविवार को डॉल्वी थिएटर के मंच पर जब संगीतकार एमएम कीरावानी ने इस गीत को पेश किया तो दर्शक समूह में आनंद की लहर दौड़ गई। मंच पर पुरस्कार लेते हुए संगीतकार कीरावानी ने कहा कि वह बचपन से मजदूरों के गाने सुनकर बड़े हुए हैं‚ और आज इस मंच पर ऑस्कर उनके ही कारण ग्रहण कर रहे हैं। ऑस्कर के अलावा इस गीत को गोल्डन ग्लोब और क्रिटिक च्वॉयस पुरस्कार भी मिला है।
जब यह गीत मंच पर पेश किया गया तो राहुल सिप्लीगुंज और के. भैरव ने अद्भुत नृत्य कला का प्रदर्शन किया। उनके नृत्य में ऊर्जा और पैरों के विलक्षण कलात्मक प्रदर्शन ने सभी दर्शकों का मन मोह लिया जबकि फिल्म ‘आरआरआर’ में नृत्य किया है जूनियर एनटीआर और रामशरण ने। इन दोनों ने ऑस्कर के मंच पर गाने के साथ नाचने से इंकार कर दिया और कहा कि उनके पास अभ्यास के लिए बहुत ही कम समय है‚ और वे ऑस्कर के मंच पर सहज महसूस नहीं कर पाएंगे। ‘नाटु नाटु’ गीत को लिखा है चन्द्रबोस ने। इसे स्वर दिया है काल भैरव और राहुल सिप्लीगुंज ने। उल्लेखनीय है कि हिन्दी फिल्म डैनी बॉटल निर्देशित ‘स्लमडॉग मिलिनेयर’ के गीत ‘जय हो’ को पहला अकादमी पुरस्कार मिला था। इस गीत को गुलजार ने लिखा था और संगीत एआर रहमान का था।
‘नाटु नाटु’ गाने को बनाने में उन्नीस महीने लगे। इसमें विभिन्न किस्म की धुनों का सम्मिश्रण है। यह गाना एक ही संगीत धुन की प्रस्तुति नहीं है। इस गीत की मुख्य अंतर्वस्तु व्यक्ति की निजी शक्ति‚ संघर्ष को तो अभिव्यंजित करती है। साथ ही‚ एक अन्य चीज को भी व्यक्त करती है और वह है तुमको जो करना है करो‚ दूसरों की आलोचना मत करो। सघन ऊर्जा के बहाने २७४ सेकेंड़ का यह गीत दर्शकों–श्रोताओं को बांधता है। साथ ही‚ संदेश देता है कि गाना सुनो‚ आनंद लो‚ समर्पण करो‚ विश्वास करो और सिरर्फ नृत्य करो‚ सोचना बाद में। यही इस गाने में अप्रत्यक्ष ढंग से संप्रेषित होने वाली राजनीति भी है जो बेहद चिंताजनक है। संदेश यह है सोचो मत‚ आनंद लो।
‘समर्पण करो‚ विश्वास करो और सोचो मत’ यह संदेश ही है‚ जिसने इस दौर में स्थानीय और भूमंडलीय स्तर पर चल रहे ‘सूचना–मीडिया प्रवाह’ के साथ अपनी संगति बिठाकर इस गीत ने व्यापक जनप्रियता हासिल की है। एक अन्य ग्लोबल संदर्भ है यूक्रेन का। यूक्रेन में फिल्म ‘आरआरआर’ और इस गीत की फाइनल शूटिंग अगस्त‚ २०२१ में हुई थी। इस फिल्म के गीत का चयन करते समय निर्णायक मंडल के दिमाग में यूक्रेन–रूस युद्ध का संदर्भ जरूर रहा होगा क्योंकि इस फिल्म की शूटिंग खत्म होने के कुछ ही महीने बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था। जो लोग सोच रहे हैं कि ऑस्कर ने सर्वश्रेष्ठ मौलिक गीत के कारण पुरस्कार दिया है‚ वे गलतफहमी के शिकार हैं। यूक्रेन–रूस युद्ध संदर्भ सबसे बड़ा कारक है। संदेश एक ही है सोचो मत‚ चुप रहो‚ आनंद लो। सवाल यह उठता है कि ऑस्कर पुरस्कार क्यों दिए जाते हैंॽ वे चाहते हैं कि आधुनिक परंपरागत कला रूपों का फिल्म उद्योग अधिकतम उपयोग करे। अमेरिका के प्रति वफादारी बनी रहे। कला का व्यापार के लिए जमकर उपयोग हो जिससे फिल्में करोड़ों का व्यापार करें।
ऑस्कर की प्रतिस्पर्धा में सांस्कृतिक शक्तियां शामिल हैं। उनकी जटिल और संश्लिष्ट प्रतिस्पर्धा के गर्भ से ही पुरस्कार के लिए चयन किया जाता है‚ यह संभव है कि ऑस्कर की दौड़ में शामिल लोग सांस्कृतिक शक्तियों की भूमिका से अनभिज्ञ हों। लेकिन असल में पुरस्कार की प्रक्रिया में किस तरह का सांस्कृतिक संघर्ष चला‚ उसे जानने में कई साल लग जाते हैं। इसके अलावा ऑस्कर पुरस्कार फिल्म के आने वाले सौंदर्य मानकों को भी निर्धारित करता है।आम तौर पर ऑस्कर में वे ही फिल्में चुनी जाती हैं‚ जिनमें पीढ़ियों का संघर्ष अभिव्यंजित हो। उनमें नया तत्व पुराने को अपदस्थ करता नजर आता है। इनमें नये स्टार सामने आते हैं‚ और कुछ दशकों के बाद वे ही बड़े स्टार के रूप में फिल्म जगत में प्रतिष्ठा अर्जित करते हैं। ऑस्कर पर श्वेत नस्लवादी राजनीति लंबे समय से वर्चस्व बनाए हुए है। बार–बार ऑस्कर से पुरस्कृत फिल्मों के प्रसंग में नस्लवादी नजरिए के सवाल उठे हैं। उल्लेखनीय है ऑस्कर में समय–समय पर केंद्रीय मसले बदलते रहे हैं। १९३० के दशक में जब सारी दुनिया भयानक मंदी से गुजर रही थी‚ ऑस्कर के केंद्र में मजदूर आंदोलन था और उस आंदोलन को बदनाम करने में ऑस्कर ने सक्रिय भूमिका निभाई। उस जमाने में मजदूरों ने ऑस्कर समारोह के बहिष्कार के लिए आंदोलन किए। असल में ऑस्कर पुरस्कार का बुनियादी अर्थ है कि सांस्कृतिक शक्ति किसके पास हैॽ यह शक्ति किनके पास रहनी चाहिएॽ इन दो सवालों पर ऑस्कर बार–बार नये तरीके‚ नये मसले और नये रूपों का इस्तेमाल करता रहा है। ऑस्कर का लक्ष्य है अमेरिका की सांस्कृतिक शक्ति और वर्चस्व को बरकरार रखना। उसकी सांस्कृतिक प्रतिष्ठा का परचम लहराना। कलाओं में क्रम नहीं होता। रैंक नहीं होती। छोटे–बड़े का भेद नहीं होता। लेकिन हॉलीवुड यह चाहता है कि उसका सांस्कृतिक वर्चस्व और प्रतिष्ठा सबसे ऊपर हों। उसके लिए ऑस्कर हर बार नई लIमण रेखा खींचता है। नये मानक पेश करता है।